पृथ्वी सम्मेलन 2002 हिंदी निबंध | Earth Summit 2002 Hindi Essay

 

पृथ्वी सम्मेलन 2002 हिंदी निबंध |  Earth Summit 2002 Hindi Essay

नमस्कार  दोस्तों आज हम पृथ्वी सम्मेलन 2002  इस विषय पर निबंध जानेंगे।पृथ्वी का समग्र पर्यावरण बहुत तेजी से क्षरित हो रहा है, जल, थल, वायु, अन्तरिक्ष सभी प्रदूषण की पीड़ा से कराह रहे हैं। वायुमण्डल में बढ़ती गैसों; जैसे सल्फर डाइ-ऑक्साइड व नाइट्रोजन डाइ-ऑक्साइड के कारण वर्षा का स्वरूप अम्ल वर्षा का होता जा रहा है, जिससे सूक्ष्म जीव व वनस्पतियाँ बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं। 


हरित गृह गैसों की बढ़ती मात्रा पृथ्वी के तापमान में वृद्धि कर रही है, जिससे हिमनद पिघल रहे हैं, नदियाँ सूख रही हैं, समुद्र का जल-स्तर बढ़ता जा रहा है। वैश्विक मौसम परिवर्तन का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखने लगा है। वर्षा वाले स्थानों में सूखा तथा सूखे वाले स्थानों में बाढ़ के नजारे दिखने लगे हैं।


पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधन समाप्त हो रहे हैं। इससे भावी पीढ़ी की आवश्यकताएँ कैसे पूरी होंगी इस पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। विश्व समुदाय आज एक ऐसा रामबाण वाक्यांश हो गया है जिसकी आड़ में अमेरिकन व पश्चिमी देश अपनी कार्यवाहियों को तार्किक जामा पहना रहे हैं। 


हटिंगटन यह अनुभव पूरा विश्व समुदाय जोहान्सबर्ग सम्मेलन के दौरान भी महसूस करता रहा। संयुक्त राष्ट्र संघ की अगुवायी में पृथ्वी के समग्र पर्यावरण पर सम्मेलनों के माध्यम से व्यापक विचार-विमर्श करने की शुरूआत तीन दशक पूर्व 1972 में स्टाकहोम सम्मेलन से हुई। इसमें 21 सिद्धान्तों व 151 कार्यक्रमों पर सहमति हुई। 


1992 में ब्राजील के शहर में पृथ्वी । सम्मेलन आयोजित हुआ। इस सम्मेलन के सहयोग व उत्साहभरे माहौल में विश्व के लगभग सभी देशों सहित 130 राष्ट्र प्रमुखों ने शिरकत की। रियो का शीर्षक था-पृथ्वी बचाओ सम्मेलन। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित पृथ्वी II सम्मेलन टिकाऊ विकास पर विश्व सम्मेलन शीर्षक के साथ दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहान्सबर्ग में आयोजित हुआ।


सम्मेलन 26 अगस्त, 2002 से 4 सितम्बर, 2002 तक पर्यावरण से सम्बन्धित विभिन्न मुद्दों पर व्यापक विचार-विमर्श होता रहा। इसमें 10,000 गैर सरकारी संगठनों, व्यापारिक संगठनों समेत लगभग 200 देशों व 103 राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया। 


जोहान्सबर्ग का दस दिवसीय सम्मेलन नारेबाजी प्रदर्शन, विरोधी आशंकाओं, आशाओं, उपेक्षाओं, अमीरी-गरीबी, विकसित-विकासशील, उत्तर-दक्षिण, सहमति व असहमति के मध्य झूलता रहा। सम्मेलन की खेमेबन्दी व गुटबाजी में एक तरफ अमेरिकी अगुवायी में विकसित एवं औद्योगिक देश तो दूसरी तरफ भारत सहित तमाम विकासशील एवं गरीब देश नजर आये। 


सम्मेलन में ग्रीन पीस, वर्ल्ड वाइड फण्ड फारनेचर, वर्ल्डवाच इंस्टीट्यूट, फैन्ड्स ऑफ अर्प जैसी पर्यावरण सम्बद्ध संस्थाओं ने उत्साहपूर्ण शिरकत की, परन्तु व्यापारिक संगठनों के बढ़ते प्रभाव के चलते उनकी आवाज कमोबेश नक्कारखाने में तूती की आवाज जैसी साबित हुई।


सम्मेलन का प्रमुख उद्देश्य टिकाऊ विकास हासिल करना था। क्योंकि टिकाऊ विकास एक वृहद् अवधारणा है जिसको इसके अन्तर्गत आने वाले कई क्षेत्रों में मानक उपलब्धियाँ हासिल करके ही साकार किया जा सकता है। सम्मेलन में चर्चा के क्षेत्र से जल व स्वच्छता, ऊर्जा, स्वास्थ्य, कृषि, रसायन, जैव विविधता, मत्स्य संसाधन, गरीबी, वित्तीय सहायता, विभेदनकारी व्यवस्था आदि। लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफी अन्नान द्वारा सुझाये गये पाँच क्षेत्रों में


व्यापक विचार-विमर्श हुआ। ये क्षेत्र हैं जल व स्वच्छता, ऊर्जा, कृषि, जैवविविधता एवं पारिस्थितिकी. जिसे संक्षेप में बेहाब कहा गया। सम्मेलन में कुछ मुद्दों पर विवाद व गतिरोध बना रहा। ये मुद्दे विभिन्न देशों की जिम्मेदारी या उत्तरदायित्व से जुड़े हैं। 


ये मुद्दे हैं-लक्ष्य व समयबद्धता, सामान्य परन्तु विभेदनकारी व्यवस्था, नये व अतिरिक्त वित्त, व्यापारिक जिम्मेदारी, वैश्विकरण व व्यापार। व्यापक विचार-विमर्श के उपरान्त कार्ययोजना घोषित की गयी। इसमें विभिन्न क्षेत्रों में जो आश्वासन विभिन्न देशों द्वारा दिये गये हैं उनका विवरण निम्नलिखित है


(1) जल व स्वच्छता के क्षेत्र में यह कहा गया कि साफ पानी व स्वच्छता सम्बंधी सुविधाओं से वंचित लोगों की संख्या सन् 2015 तक आधी कर दी जायेगी। यूरोपीय देशों द्वारा सम्मेलन में लक्ष्य को पूरा करने के लिए “जीवन के लिए जल” परियोजना को एशिया व अफ्रीका में चलाने की पहल की। 


अमेरिका द्वारा इस क्षेत्र में निवेश हेतु 97 करोड़ डॉलर उपलब्ध कराने की घोषण की गयी। ऊर्जा के उपयोग को लेकर सर्वाधिक विवाद रहा। यद्यपि यह माना गया कि आधुनिक ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल, ऊर्जा दक्षता व नवीनीकरण ऊर्जा स्रोतों; जैसे, पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा आदि के अनुप्रयोग को बढ़ाने की जरूरत है; परन्तु अमेरिकी दबाव में कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया जा सका। 



(3) स्वास्थ्य के क्षेत्र में कहा गया है कि वर्ष 2020 तक रसायनों के उत्पादन व प्रयोग को मनुष्यों व पर्यावरण के लिए सुरक्षित बनाया जायेगा। गरीब देश स्वास्थ्य के मामले में अपने यहाँ एड्स जैसे रोगों की सस्ती दवा उपलब्ध करा सकेंगे। इसमें पेटेंट सम्बन्धी WTO का कानून बाधा नहीं बनेगा। 


उल्लेखनीय है कि विश्व की 40% बीमारियाँ पर्यावरण के नष्ट होने से हो रही हैं। (4) कृषि-क्षेत्र में कहा गया कि वैश्विक पर्यावरण सुविधा की सहायता से रेगिस्तानीकरण की प्रक्रिया को रोका जायेगा। अमेरिका ने पहल की कि वह 2003 तक टिकाऊ कृषि कार्यक्रमों पर 9 करोड़ डॉलर का निवेश करेगा। 


उल्लेखनीय है कि विकसित देशों द्वारा अपने किसानों को करीब 350 अरब डॉलर सब्सिडी मिल रही है। गरीब तथा विकासशील देश इसको समाप्त करने की माँग कर रहे हैं जिससे विश्व बाजार में उनके कृषिगत उत्पात पैंठ बना सकें।


जैवविविधता व पारिस्थितिकी प्रबन्धन के अन्तर्गत अनेक लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं। सम्मेलन में माना गया कि पारस्परिक ज्ञान व जैव सम्पदा पर स्थानीय लोगों का हक है अतः उनसे सम्बद्ध जीन सम्पदा या ज्ञान के उपयोग से उसको भी लाभान्वित होना अनिवार्य है। 


जोहन्सबर्ग सम्मेलन की खास उपलब्धि गरीबी उन्मूलन को गम्भीर चुनौती मानना व इसके उन्मूलन हेतु 'विश्व एकजुटता कोष' बनाने की सहमति को माना जा रहा है। सभी देशों ने पृथ्वी के संसाधनों को भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित करने की रणनीति पर वर्ष 2005 तक अमल शुरू करने पर सहमति जताई।


सम्मेलनों में आपने भाषण के दौरान कोफी अन्नान ने माना था कि यह उम्मीद करना कि हमें वह सब इस सम्मेलन से मिल जायेगा जो कुछ हम चाहते हैं। जरूरत से ज्यादा आशा करना होगा। सम्मेलन के अन्त में उनकी बात अक्षरक्षः साबित हुई। 


सम्मेलनों की कुछ खास उपलब्धियाँ अवश्य रहीं, परन्तु बढ़ती पर्यावरण समस्याओं को हल करने में पर्याप्त नहीं हैं। एक अन्य पहलू जो लोगों को पूरे सम्मेलन के दौरान हार्दिक कष्ट पहुँचाता रहा था, जोहान्सबर्ग सम्मेलन में 'रियो भावना' का दिखाई न देना। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।