एक टूटे हुए छाते आत्मकथा हिंदी निबंध | Ak Tute Hue Chate Ki Atmakatha Essay Hindi

 

एक टूटे हुए छाते आत्मकथा हिंदी निबंध | Ak Tute Hue Chate Ki Atmakatha Essay Hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम एक टूटे हुए छाते आत्मकथा इस विषय पर हिंदी निबंध जानेंगे। मैं एक पुराना छाता हूँ। किसी समय मैं बहुत काम का था। लेकिन आज यहाँ अँधेरे कोने में पड़ा-पड़ा धूल खा रहा हूँ। मेरी ओर कोई नजर उठाकर भी नहीं देखता।


मेरा जन्म पाँच साल पहले हुआ था। छाते के एक कारखाने में तीलियों को जोड़कर मेरा ढाँचा तैयार किया गया। फिर उसमें स्टील की चमचमाती डंडी लगाई गई। एक कारीगर ने उस डंडी में एक सुंदर मूठ जड़ दी। फिर काले रंग का मुलायम कपड़ा चढ़ाकर मुझे छाते का रूप दे दिया गया। वाह ! क्या निराली शान थी मेरी !


कारखाने से मुझे एक बडी दुकान में बेचने के लिए भेज दिया गया। मेरे साथ मेरे और भी कई भाई थे। कोई लंबी डंडीवाले थे, कोई छोटी डंडीवाले और कोई रंगबिरंगे। एक दिन जोरों की बरसात हुई। एक आदमी भीगता हुआ दुकान में घुसा। 


उसने कई छाते देखे। पर पता नहीं क्यों, उसे मैं ही पसंद आया। उसने मुझे खरीद लिया। बरसात अब भी हो रही थी। बाहर आकर उसने मुझे खटाक से तान दिया। मैंने पहली बार बरसात में भीगने का मजा लिया। मुझे पाकर मेरा मालिक बहुत खुश था।


मेरा मालिक बहुत शौकीन था। उसके साथ मैं बहुत घूमा। मैंने उसके साथ-साथ बाजार, मेले, बड़े-बड़े होटलों तथा सिनेमाघरों की जी भरकर सैर की। एक शाम मेरा मालिक मुझे पानवाले की दुकान पर लेकर गया। उसने पनवाड़ी से पान बँधवाया। 


मुझे दीवार के सहारे टिकाकर वह जेब से पैसे निकालने लगा। इतने में मौका देखकर एक दुबला-पतला आदमी मुझे लेकर खिसक गया। मुझे बहुत बुरा लगा, पर करता क्या? उसने मुझे चोर-बाजार में ले जाकर बेच दिया। वहाँ से एक फेरीवाले ने मुझे खरीदा। उसने बरसात के पूरे मौसम में मेरा खूब इस्तेमाल किया। 


बरसात खत्म होने पर मैंने सोचा कि अब मुझे छुट्टी मिल जाएगी। पर मेरी उम्मीद पर पानी फिर गया। अब फेरीवाला धूप से बचने के लिए मेरा उपयोग करने लगा। फेरीवाले ने दो साल में मेरा हुलिया बिगाड़ दिया। मेरा कपड़ा कई जगह से फट गया है। 


मेरी कई तीलियाँ भी टूट गई हैं। अब मैं फेरीवाले के किसी काम का नहीं रहा। अब वह दूसरा छाता ले आया है। मुझे उसने टूटे-फूटे सामान के साथ बाँधकर कोठे पर फेंक दिया है। अब मैं यहाँ पड़ा-पड़ा धूल खा रहा हूँ। ऐसी जिंदगी भला किस काम की? मैं इस जीवन से जल्दी से जल्दी छुटकारा पाना चाहता हूँ।


फिर भी मैं बहुत संतुष्ट हूँ। मेरा जन्म सेवा करने के लिए हुआ था। मैंने सेवा करने में कोई कसर नहीं रखी। मुझे उम्मीद है, भगवान मेरे साथ न्याय अवश्य करेगा। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।