एक टूटी हुई ऐनक की आत्मकथा हिंदी निबंध | AK TUTI HUE AINAK KI AATMKTHA HINDI NIBANDH
नमस्कार दोस्तों आज हम एक टूटी हुई ऐनक की आत्मकथा इस विषय पर हिंदी निबंध जानेंगे। एक ऐनक को बोलते हुए देखकर अचरज मत कीजिए। दिल जब भर आता है, तो वाणी अपने आप फूट पड़ती है। मुझे फेंकने के पहले आप मेरी रामकहानी तो सुन लीजिए।
मेरी उम्र दस वर्ष की हो चुकी है। मेरा जन्म मुंबई के एक बड़े कारखाने में हुआ था। वहाँ दिनभर मशीनों की खटखट गूंजती रहती थी। मैं प्लास्टिक की एक सुंदर फ्रेम के रूप में बनकर तैयार हुई। मेरे साथ मेरी सैकड़ों बहनें भी तैयार की गई थीं। एक दिन हमें चश्मे की एक दुकान में भेज दिया गया।
वहाँ मुझे शो-केस में रख दिया गया। मैं वहाँ बहुत खुश थी। अपने भाग्य पर इतरा रही थी। तभी एक सेठजी वहाँ चश्मा बनवाने के लिए आए। मैं उन्हें पसंद आ गई। सेठजी ने कीमत चुकाकर मुझे खरीद लिया। दुकानदार ने कुछ ही दिनों में मुझमें दो गोल काँच बिठा दिए। अब तो मेरी सुंदरता देखते ही बनती थी।
मेरे मालिक सेठजी मुझसे कसकर काम लेते थे। सुबह मुझे आँखों पर लगाकर वे अखबार पढ़ते थे, डाक में आई चिट्ठियाँ पढ़ते, अपने बही-खाते का हिसाब-किताब देखते। वे एक-एक आँकड़े पर घंटों नजर गड़ाए रहते। इसके कारण मैं थक जाती थी।
जब घर से बाहर निकलते तो मुझे आँखों पर लगाना न भूलते। एक तरह से मैं सेठजी की जीवन संगिनी बन गई थी। सेठानी से भी ज्यादा वे मेरा ख्याल रखते थे। लेकिन जीवनभर मैं उनका साथ न निभा सकी। एक दिन सेठजी मुझे पलंग पर रखकर हाथ-मुँह धोने चले गए। इसी बीच उनके शरारती पोते ने मुझ पर जोर से पैर रख दिया।
मेरा अंग-अंग चरमरा गया। मेरा एक तरफ का काँच टूट गया। मेरी एक टाँग टूट कर अलग हो गई। सेठजी बहुत नाराज हुए। पर तोड़नेवाला उनका अपना पोता जो ठहरा ! क्या करते? मन मार कर रह गए।
सेठजी ने अब एक नया चश्मा बनवा लिया है। यह मुझसे भी ज्यादा सुंदर है। मुझे अब कचरे के डिब्बे में फेंक दिया गया है। मगर मुझे अपने भविष्य की जरा भी चिंता नहीं है। जो जन्म लेता है, एक दिन मरता जरूर है। मैं भी मिट्टी में मिल जाऊँगी। पर मेरी निःस्वार्थ सेवा का आदर्श सदा अमर रहे, यही मेरी आखिरी तमन्ना है। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।