अस्पताल में एक घंटा हिंदी निबंध | aspatal me ek ghanta nibandh in hindi

 

अस्पताल में आधा घंटा हिंदी निबंध | aspatal me ek ghanta nibandh in hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम अस्पताल में एक घंटा इस विषय पर निबंध जानेंगे। जिंदगी के अनेक रूप हैं। जिंदगी घरों-परिवारों में हैं। जिंदगी होटलों, क्लबों और थियेटरों में है। जिंदगी मेलों-बाजारों में है। इनके सिवाय जिंदगी का एक दर्दभरा स्वरूप भी है। 



जिसे हम अस्पतालों में देखते हैं। कुछ दिन पहले मेरा एक मित्र कार-दुर्घटना में जख्मी हो गया था। उसके सिर और बाएँ हाथ में चोट आई थी। उसे कस्तूरबा गाँधी अस्पताल में दाखिल किया गया था। एक दिन शाम को मैं उसे देखने अस्पताल गया।


अस्पताल की इमारत सुंदर और शानदार है। उसके विशाल प्रांगण में हरी-भरी और सँवारी हुई लॉन है। आसपास फूलों की आकर्षक क्यारियाँ हैं। फाटक के सामने एक फव्वारा है। फव्वारे के निकट एक ऊँचे चबूतरे पर कस्तूरबा गाँधी की प्रतिमा है।


मित्र जनरल वार्ड में था। मुझे देखकर उसने उठने की कोशिश की, पर मैंने उसे मना कर दिया। मैं उसके सिरहाने पड़े स्टूल पर बैठ गया। मैंने उसकी हालत के बारे में पूछा। उसकी तबीयत अब धीरे-धीरे सुधर रही थी। मैंने उसे अपने साथ लाए हुए फल दिए और कुछ देर उससे बातें की। वहाँ दूसरे मरीजों के पास भी उनके मुलाकाती आए हुए थे।


जनरल वार्ड में कुल ४५ पलंग थे। वहाँ तरह-तरह के मरीज थे। किसी के सिर में पट्टी बँधी हुई थी। किसी के हाथ-पैर पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था। एक मजदूर का हाथ मशीन की चपेट में आ गया था। बारह-तेरह वर्ष का एक लड़का पतंग उड़ाते-उड़ाते छज्जे से गिर गया था। उसके पाँव की हड्डी टूट गई थी। कुछ मरीज को ग्लूकोज चढ़ाया जा रहा था। वहाँ कई ऐसे मरीज थे जिन्हें देखकर हृदय भर आता था। महिला दर्दी के लिए अलग वार्ड था।


 कुछ देर बैठकर मैंने मित्र से बिदा ली। मैं जनरल वार्ड से बाहर आया। सामने ऑपरेशन थियेटर था। उसमें एक स्त्री-मरीज को ऑपरेशन के लिए स्ट्रेचर पर ले जाया जा रहा था। वहाँ दो डॉक्टर और कुछ परिचारिकाएँ थीं। मैंने एक्स-रे विभाग भी देखा। उसमें बड़ी-बड़ी आधुनिक मशीनें रखी हुई थीं। दुर्घटना-विभाग में सड़क दुर्घटनाओं में घायल मरीज थे। उनमें से कइयों को खून चढ़ाया जा रहा था।


अस्पताल में डॉक्टरों और परिचारिकाओं की चुस्ती-फुर्ती देखते ही बनती थी। दूध जैसे श्वेत गणवेश में सजी और मरीजों की सेवा में व्यस्त परिचारिकाएँ दया की देवियों जैसी लगती थीं। मैंने डॉक्टरों को मरीजों की जाँच करते हुए और परिचारिकाओं को आवश्यक सूचनाएँ देते हुए देखा। किसी-किसी दर्दी के पास कई डॉक्टर एकत्रित होकर सलाह-मशविरा कर रहे थे।


मुलाकातियों के कारण अस्पताल में बड़ी भीड़ थी। अपने-अपने मरीज के लिए कोई फल और कोई खाना लाया था। कुछ मुलाकाती अपने मरीजों के लिए उनका मनपसंद अखबार या पत्रिका लाए थे। जिन मरीजों की हालत सुधर रही थी, उनके स्वजन प्रसन्न थे। 


गंभीर स्थितिवाले मरीजों के स्वजनों के चेहरों पर उदासी और चिंता थी। मुलाकात का समय पूरा होने पर घंटी बजी और मुलाकाती अस्पताल से बिदा होने लगे। मैं भी बाहर आया। अस्पताल की गतिविधियों को देखते-देखते पता ही न चला कि एक घंटा कब और कैसे बीत गय दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताएगा।