सिक्के की आत्मकथा पर निबंध | Autobiography of a Coin in Hindi Essay

 

 सिक्के की आत्मकथा पर निबंध | Autobiography of a Coin in Hindi Essay 

नमस्कार  दोस्तों आज हम  सिक्के की आत्मकथा इस विषय पर हिंदी निबंध जानेंगे। मैं बहुत मामूली, परंतु बहुत कीमती चीज हूँ । मैं बिना पैरों के चलता हूँ। मेरे गोलमटोल रूप पर दुनिया फिदा हो जाती है। मेरी आवाज से अधिक मीठा कोई संगीत नहीं है ! आपने मुझे पहचाना? जी हाँ, मैं एक रुपए का सिक्का हूँ।


मेरा जन्म आज से कुछ साल पहले नाशिक की सरकारी टकसाल में हुआ था। बहुत कष्टमय था मेरा वह समय । कई धातुओं को गलाकर उनका गरम-गरम रस एक साथ मिला दिया गया। उसे साँचों में ढाला गया। 


साँचे में ढलते समय ही मुझपर एक ओर राष्ट्रचिह्न, देश का नाम और साल अंकित किया गया। दूसरी ओर एक छोटे परिवार के चित्र के साथ परिवार नियोजन का संदेश अंकित किया गया। उस दौरान मुझे बड़ी पीड़ा हुई। 


हाँ, बनने के बाद अपने चमचमाते रूप पर मैं खुद मुग्ध हो गया।टकसाल से बाहर आते ही मैं सफर पर निकल पड़ा। तब देश में आज जैसी महँगाई नहीं थी। बाजार में मेरा मान-सम्मान था। तब से आज तक मैं हाथोंहाथ यात्रा कर रहा हूँ। इस जीवनयात्रा में मुझे तरह-तरह के लोग मिलते रहे हैं। मैंने कंजूसों को भी देखा है और उदार दिलवालों को भी। 


मैं सत्यनारायणजी की कथा में भी चढ़ाया गया हूँ और सैकड़ों बार मैं होटलों में भी पहुंच चुका हूँ। मैंने मंदिर देखे हैं और शराबघर भी। मैंने गरीबों की गरीबी और अमीरों की अमीरी दोनों को बहुत करीब से देखा है। 


इतने बरसों में मेरी कीमत भी बहुत घट गई है। फिर भी मेरे प्रति लोगों के आकर्षण में कोई कमी नहीं आई है। अब तो मैं बहुत घिस गया हूँ। मेरी चमक-दमक भी चली गई है। लोग मुझे लेने में भी हिचकिचाते हैं! दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।