कलाई घड़ी की आत्मकथा हिंदी निबंध | Autobiography of wrist watch in essay hindi

 

 कलाई घड़ी की आत्मकथा हिंदी निबंध | Autobiography of wrist watch in essay hindi 


नमस्कार  दोस्तों आज हम  कलाई घड़ी की आत्मकथा इस विषय पर हिंदी निबंध जानेंगे। मैं मेज के खाने में पड़ी हुई एक कलाईघड़ी हूँ। अब तक मैं समय बताती रही हूँ। आज मैं अपने बारे में कुछ बताना चाहती हूँ।


मेरा जन्म आज से पंद्रह साल पहले बंगलौर में घड़ियों के एक कारखाने में हुआ था। उस कारखाने में बहुत-से कारीगर काम करते थे। कारखाने में अनेक मशीनें थीं। उन मशीनों से मेरे अलग-अलग पुर्जे बनाए गए। 


फिर उन पुों को सही ढंग से जोड़ दिया गय और मैं बन गई एक सुंदर कलाईघड़ी। उस समय मेरी चमक-दमक देखते ही बनती थी। मेरे साथ मेरी बहुत-सी बहनें भी थीं।


कारखाने से हमें एक दूकान में लाया गया। वहाँ हमें अच्छी तरह सजाकर रखा गया। एक दिन एक युवक दूकान में आया। उसने कई कलाईघड़ियाँ देखीं। पर उसे कोई पसंद न आई। तभी उसकी नजर मुझपर पड़ी। पता नहीं मुझमें ऐसा क्या था कि मैं उसे पसंद आ गई । 


मेरी कीमत अधिक थी, फिर भी उसने मुझे खरीद लिया और अपनी बाईं कलाई पर मुझे बाँध लिया। मुझे देख-देखकर वह बहुत खुश हो रहा था। मुझे भी बाहर की खुली दुनिया देखकर बहुत अच्छा लग रहा था।


मैं अपने आप चलनेवाली घड़ी थी। मैं बिल्कुल सही समय बताती थी। वह युवक मुझे बहुत चाहता था। मेरे कारण वह अपने दफ्तर में ठीक समय पर पहुँच जाता था। इसलिए उसकी कंपनी में उसे अच्छा मान-सम्मान मिलता था।


एक बार किसी समारोह का आयोजन था। शायद वह पुरस्कार वितरण समारोह था। उस कार्यक्रम में उस युवक को पुरस्कार में एक सुंदर विदेशी कलाईघड़ी मिली। वह अब उसे ही पहनने लगा और मुझे अपने छोटे भाई को दे दिया। 


छोटा भाई मुझे पहनकर क्रिकेट और फुटबाल जैसे खेल खेलता था। उस समय मैं कई बार घायल हो जाती थी। तब घड़ीसाज मुझे ठीक कर देता था। अब मैं बहुत थक गई हूँ। बार-बार की मरम्मत ने अब मुझे किसी काम का नहीं छोड़ा है। 


मैं महीनों से मेज के इस खाने में पड़ी हुई हूँ। कोई मेरी सुधि तक नहीं लेता। पता नहीं, मेरे भाग्य में अब क्या लिखा है? दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।