बेरोजगारी पर निबंध | berojgari par nibandh


नमस्कार  दोस्तों आज हम बेरोजगारी इस विषय पर निबंध जानेंगे।  बेरोजगारी प्रस्तावना-बेरोजगारी आज भारतीय युवा वर्ग की सबसे बड़ी समस्या है। भारत देश में प्रथम पंचवर्षीय योजना के अन्त तक बेरोजगारों की संख्या मात्र 10 लाख थी, जो कि अब बढ़कर 4 करोड़ 51 लाख 75 हजार तक पहुंच गई है। इस प्रकार पिछले समय अन्तराल से यह संख्या निरन्तर वृद्धि की ओर अग्रसर है। इस समय सबसे अधिक बेरोजगारी पश्चिम बंगाल में है। उसके बाद क्रमशः तमिलनाडु, बिहार, महाराष्ट्र, केरल, उत्तर प्रदेश और चेन्नई है। सबसे अधिक बेरोजगार महिलाएं केरल में हैं एवं इसके बाद पश्चिम बंगाल में हैं। सरकारी आँकडों के अनुसार सन 2000 के आगे आने वाले समय में देश में बेरोजगारों की संख्या लगभग करोड़ तक पहुँच जायेगी।


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बेरोजगारी का अर्थ-जो व्यक्ति किसी प्रकार के उत्पाद कार्य में लगे हए नहीं होते, बेरोजगार कहलाते हैं-इसी प्रकार उन सभी व्यक्तियों के साथ-साथ जो मजदूरी की प्रचलित दरों से कुछ कम मजदूरी है वे लोग भी बेरोजगारी की सूची में आ जाते हैं। जिसकी सम्पन्नता के कारण काम करने में रुचि नहीं अथवा जो निर्धन होते हुए भी काम के स्थान पर दूसरों पर आश्रित या बोझ बने रहते हैं, वे भी बेरोजगार कहलाते हैं। हमें बेरोजगारी की अवधारणा को केवल कार्यशील जनसंख्या तक ही सीमित रखना होगा।

बेरोजगारी की समस्या-भारत में बेरोजगारी की समस्या बहुत फैल चुकी है। यह समस्या मूलतः पूँजीगत और अन्य साधनों की कमी का परिणाम है। शहरों में इस समस्या से जूझने वाला वर्ग मुख्यतः औद्योगिक श्रमिकों तथा शिक्षित बेरोजगार युवकों का है तो ग्रामीण समाज में ह समस्या कषि तथा सम्बन्धित उद्योगों से जड़े मजदूरों की है। ग्रामीण क्षेत्रों में एक समस्या गप्त या अदृश्य बेरोजगारी की भी है। इस समस्या का मूल कारण भूमि का स्थिर आकार और उस पर लगातार बढ़ती श्रम-शक्ति का असन्तुलन है। प्रकट रूप में तो कृषि एवं सहयोगी क्षेत्रों से जुड़ा हर व्यक्ति कार्यरत है, 

परन्तु व्यवहार में जमीन से जुड़े हर व्यक्ति के पास पर्याप्त कार्य नहीं है। इस प्रकार ग्रामीण आबादी का एक बड़ा भाग अदृश्य या गुप्त बेरोजगारी की समस्या से ग्रसित है।
लेकिन आज एक तरफ उच्च शिक्षा में योग्यतम छात्रों को सीमित रखने की बात कही जाती है तो दूसरी तरफ प्रतिदिन नये-नये कॉलेजों तथा विश्व-विद्यालयों की स्थापना की जा रही है, जो कभी और किसी भी तरह भी देश को गौरवशाली नहीं बना सकता।

अतः आज इस पूरी शिक्षा पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन करने की जरूरत है तथा व्यवसायीकरण का कठोरता से पालन करने की भी। शिक्षा जगत के ठेकेदारों पर पाबन्दी लगानी भी आवश्यक है, क्योंकि आज इन्होंने शिक्षा को अपने हक में व्यावसायिक बना रखा है। क्लर्क पैदा करने वाली इस शिक्षा पद्धति को व्यावहारिक तथा समयानुकूल बनाने की समय की बहुत बड़ी माँग है।

गरीबों की बेरोजगारी का कारण-बेरोजगारी की इस भयंकर समस्या से सबसे अधिक गरीब लोग ग्रसित है। अमीर लोग नौकरी पेशा अर्जित करने में अधिक सक्षम हैं। उनके पास साधन हैं, अच्छी शिक्षा है और फिर मेल-मिलाप है। पिछले 25 वर्षों से प्रौद्योगिकी का सहारा लेकर हमने कम्प्यूटरों, इलेक्ट्रॉनिक्स साधनों के सहारे प्रगति की है। अब आवश्यकता इस बात की है कि आगामी वर्षों में आर्थिक नीतियों में कार्य के अधिकार को सम्मिलित कर अधिकाधिक रोजगार प्रदान करने की दिशा में कदम उठाये जायें।

 इसमें भूमिहीन मजदूरों छोटे किसानों, महिलाओं एवं शहर में रहने वाले गरीब व्यक्तियों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। इस समस्या पर काबू पाने के लिए श्रम-प्रधान उद्योगों को प्राथमिकता तथा पूँजी-प्रधान उद्योगों पर नियन्त्रण आवश्यक है। ब्रेड, बिस्कुट, पैन, जैम, साबुन, जैली, रेजर, ब्लैड, अचार, आदि अन्य छोटे-मोटे सामानों के उत्पादन में कुटीर तथा सहायक उद्योगों से बढ़ावा मिलना चाहिए। दैनिक उपयोग वाली वस्तुओं की कम्पनियों की छुट्टी अति आवश्यक है।

सरकारी सहयोग एवं प्रयास-सरकार ने छठी पंचवर्षीय योजना में पहली बार बेरोजगारी उन्मूलन को लक्ष्य बनाया, जिसके तहत 50 लाख परिवारों में रोजगार के अवसर सृजित किये गये। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक में रोजगार गारण्टी योजना शुरू की गई है। वर्तमान में जारी प्रमुख सरकारी रोजगार कार्यक्रम हैं
(1) शहरी गरीबों के लिए नेहरू रोजगार योजना। (2) शिक्षित बेरोजगारों के लिए रोजगार योजना। (3) प्रधानमन्त्री रोजगार योजना।

प्रतीक्षारत संख्या इससे जूझने के लिए प्रयासरत है, तभी एक बड़ी संख्या इससे जुड़कर चुनौती की ओर बढ़ा देती है। अतः असरदार नीति के बिना सारी नीतियाँ तथा योजनाएँ इस समस्या के निदान में असफल सिद्ध हो रही हैं।
उपसंहार-देश के नीति-निर्धारकों को यह ध्यान होगा कि बेरोजगारी उन्मूलन की दिशा में उठाये गये कदम के लिए नहीं, वरन् इस कठिन समस्या से जूझने के लिये उद्देश्य तैयार किये जायें। 

उनका यह फर्ज बनता है कि एक ऐसी समिति तैयार करें, जो बेरोजगारी की समस्या से जूझती और अनजाने में कुण्ठा, विवाद एवं असुरक्षा की भावना का युवा पीढ़ी को अधिकाधिक राष्ट्र-निर्माण में शामिल रखने की क्षमता रखती हो। साथ ही नवयुवाओं को इसे नियति न समझकर इससे जूझते हुए स्वरोजगार की मानसिकता उत्पन्न कर उन्नति की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।

berojgari ki samasya par nibandh NO 2


हमारा आधुनिक भारत अनेक समस्याओं से जूझ रहा है, उनमें बेरोजगारी एक प्रमुख समस्या है, क्योंकि राष्ट्र निर्माण में युवकों की अहम् भूमिका है और यदि युवा पीढ़ी अपनी क्षमता के अनुरूप रोजगार पाने में असफल रहती है, तो राष्ट्र की प्रगति मन्द पड़ जाएगी।

बेरोजगारी अथवा बेकारी का अभिप्राय मांग और पूर्ति में असंतुलन से है। यह हमारे आधुनिक समाज की एक उपज है। प्राचीन भारत में इस तरह की समस्या का कोई प्रमाण नहीं मिलता। प्राचीन भारत में वर्ण-व्यवस्था में पैतृक व्यवसाय को अपना लिया जाता था, जिससे बेरोजगारी उत्पन्न ही नहीं होती थी। लेकिन अब शिक्षा का प्रसार तथा वर्ण-व्यवस्था के भंग हो जाने से पैतृक व्यवसाय को साधारणतया घृणा की दृष्टि से देखा जाता है।

 पुत्र अपने पिता के व्यवसाय को अपनाने को तैयार नहीं होता। लेकिन सब को रोजगार मिलना आसान हीं है।
भारत में बेरोजगारी की समस्या का आरम्भ अंग्रेजों के आगमन के साथ ही शुरू हो गया। अंग्रेज़ 'सोने की चिड़िया' कहलाने वाले भारत की समृद्धि की चकाचौंध से हैरत में पड़ गये थे। अंग्रेजों के साथ अन्य विदेशी जातियां डच, पुर्तगाली, स्पेनिश, फ्रांसिसी आदि आईं। अन्य विदेशी कुछ समय बाद भारत से प्रस्थान कर गए, किन्तु अंग्रेजों ने स्थायी रूप से भारत पर पैर जमा लिए।

 अपने शासन-काल में अंग्रेजों ने भारत की जड़ें खोखली कर दीं। भारत का कच्चा माल इंग्लैंड भेजा तथा वहां से तैयार माल मंगवाकर भारतीय बाजारों में बहुतायत कर दी। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय उद्योग-धन्धे नष्ट हो गये और अनेक भारतीय कारीगर बेकार हो गये। इसके अतिरिक्त लार्ड मैकाले ने ऐसी शिक्षा पद्धति आरम्भ की जिससे सस्ते क्लर्क उत्पन्न हो सकें। उसने भारतीय नागरिकों में बाबूगिरी को ऐसी प्रवृत्ति कूट-कूट कर भर दी, जिससे वे हाथ से काम करना अपनी तौहीन समझने लगे। इसका परिणाम यह है बेरोजगारों की कतार लम्बी होती जा रही है और उसका दूसरा छोर नज़र ही नहीं आ रहा है।

भारत में करोड़ों बेरोजगार अपना नाम रोजगार कार्यालय में दर्ज कराये बैठे हैं। इनमें से कई निजी क्षेत्र में कार्य करते हैं, परन्तु सरकारी नौकरी की आस लगाये बैठे हैं। अनेक बेरोजगार ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपना नाम रोजगार कार्यालय में दर्ज नहीं करवाया है। इसलिए भारत में बेरोजगारों की संख्या जान पाना कठिन हैं। बेरोजगारी के कई रूप देखने को मिलते हैं। एक वर्ग उन लोगों का है जो शिक्षित हैं, प्रशिक्षित भी हैं लेकिन रोजगारहीन हैं। दूसरा वर्ग अशिक्षित, अर्धशिक्षित व्यक्तियों का है। 

तीसरे वर्ग में वे लोग आते हैं जिन्हें वर्ष में कुछ महीने ही काम मिलता है। इस तरह की अर्ध-बेकारी ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलती है। गांवों में कृषक छ: मास तक बेकार रहते हैं। गांवों में कुटीर एवं लघु उद्योग के पतन के कारण बेकारी भी बढ़ गई है। चौथा वर्ग असंतुष्ट वर्ग है जिन्हें काम तो मिलता है पर योग्यता के अनुरूप नहीं।
बेरोजगारी का मूल कारण तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या है। प्रति वर्ष लाखों नये चेहरे रोजगार कार्यालय में जाकर अपना नाम दर्ज कराते हैं। इन लोगों के लिए रोजगार का प्रबन्ध करना भारत जैसे निर्धन देश की सामर्थ्य से बाहर है।

हमारी शिक्षा प्रणाली भी कम उत्तरदायी नहीं है, जिसमें कलम के बाबू तो मिलें पर देश के कर्णधार नहीं। ग्रामीण जनता का शहर के लिए मोह भी बेरोजगारी को स्थायित्व प्रदान काता है। भारत में लगातार सीमा पार से घुसपैठ भी बेरोजगारों की कतार लम्बी कर रही है। मशीनीकरण से भी बेकारी बढ़ी है। एक मशीन अकेले ही सैकड़ों आदिमियों का काम निबटा देती है। मशीनीकरण से लघु-उद्योग भी चौपट हो गये हैं। शासन की दुर्व्यवस्था भी बेकारी का प्रमुख कारण हैं।

बेरोजगारी हमारे देश को दीमक की तरह चाट रही है। इस समस्या के कारण ही अन्य समस्याएं जैसे अनुशासनहीनता, भ्रष्टाचार, अराजकता, आतंकवाद आदि उत्पन्न हो रहे हैं। जैसा कि कहा गया है, "खाली दिमाग शैतान का घर।" एक बेकार व्यक्ति न केवल अपना आत्मविश्वास खो देता है अपितु परिवार और समाज पर भी बोझ बनता है, उसमें आक्रोश एवं व्यवस्था के प्रति विद्रोह का भाव भी पैदा हो जाता है जिसके वशीभूत होकर वह समाज विरोधी कार्यों में भी जुट सकता है और व्यसनों का शिकार भी हो सकता है। बेकार युवा-वर्ग स्वार्थी राजनीतिज्ञों द्वारा आतंकवादी गतिविधियों के लिए भी आसानी से प्रयुक्त किया जा सकता है।

बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए भारत सरकार ने शिक्षा का व्यावसायीकरण किया। जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए परिवार नियोजन कार्यक्रम का जोर-जोर से प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। कुटीर उद्योग-धन्धों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। बेरोजगारी रोकने के लिए समय-समय पर अनेक योजनाओं की घोषणा की गई। युवकों के लिए बैंकों से धन की व्यवस्था की गई जिससे रोजगार के अवसर पैदा हों। आर्थिक-उदारीकरण की नीति से भी नए-नए रोजगार के अवसर पैदा हुए। भारत सरकार के अथक प्रयासों के बाद भी यह समस्या कम नहीं हो रही है। अगर इस समस्या का समाधान करना है तो जनता की मनोवृत्ति बदलती होगी। शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी पाना न होकर बौद्धिक विकास माना जाए।

 एक स्तर तक बौद्धिक विकास के बाद व्यक्ति को रोजगार प्राप्ति के लिए अपनी बौद्धिक क्षमता के अनुसार प्रयास करना चाहिए। लोगों को श्रम का महत्व समझना चाहिए। लोगों को यह समझना चाहिए कि परिश्रम से प्राप्त रोटी में जो आनन्द है, वह पकी पकायी रोटी में नहीं। झुठा स्वाभिमान छोड़ना होगा और अपनी जमीन पर रहकर वहां की स्थिति के अनुसार काम करना होगा। शहरों की ओर भागने की प्रवृत्ति छोड़नी होगी। श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करते हुए अनावश्यकतालेबन्दियों, हड़तालों आदि पर नियन्त्रण लगाना होगा। मजदूर यूनियनों को अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार करना होगा।

एक से बढ़ कर एक राष्ट्रीय लक्ष्य जनता के समक्ष रखना होगा जिसके अनुरुप देश पूरे उत्साह, लगन एवं धैर्य से आगे बढ़े। यदि हमने अपनी क्षमताओं का समझ-बूझ के साथ प्रयोग किया तो बेरोजगारी की समस्या कुछ समय में मिट जाएगी और हमारा देश महाशक्ति के रूप में उभरेगा।


berojgari par nibandh in hindi 

 NIBANDH 3 

आजादी मिलने के बाद हमारे देश को अनेक समस्याओं से जूझना पड़ा। उनमें से एक प्रमुख समस्या बेरोजगारी की थी। हमारे देश को आजादी मिले पचास वर्ष से अधिक हो गए, फिर भी बेरोजगारी की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। इतना ही नहीं, यह दिनोदिन और भयानक रूप धारण करती जा रही है। 


वैसे तो विश्व के सभी देशों में, चाहे वे विकसित हों या विकासशील, बेरोजगारी की समस्या मौजूद है, पर भारत में तो यह सर्वत्र व्याप्त हो गई है।



विडंबना यह है कि हमारे देश के बेरोजगारों में शिक्षित व्यक्तियों की संख्या अशिक्षितों की अपेक्षा अधिक है। जो अशिक्षित हैं, वे तो मेहनत-मजदूरी करके अपना जीवन-निर्वाह कर लेते हैं, किंतु शिक्षित व्यक्ति अपने लिए उचित नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटकते ही रह जाते हैं। इनमें कुछ उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति भी होते हैं।



 बेरोजगारी के फलस्वरूप, ये लोग धोखा-धड़ी, तस्करी आदि गैर कानूनी कामों की ओर मुड़ जाते हैं, जिससे अपराध बढ़ते हैं।



हमारे देश में बेरोजगारी का प्रमुख कारण जनसंख्या की असीमित वृद्धि है। जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया के देशों में हमारे देश का दूसरा स्थान है। सन '०१ की जनगणना के अनुसार हमारे देश की जनसंख्या १ अरब २ करोड ७० लाख है। यह जनसंख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है।



इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए नौकरियों की व्यवस्था करना या रोजगार के अवसर जुटाना असंभव-सा हो गया है।

बेरोजगारी का एक अन्य कारण हमारे देश की त्रुटिपूर्ण शिक्षा-पद्धति भी है। यद्यपि समय-समय पर इस शिक्षा-पद्धति में संशोधन किए जाते रहे हैं, किंतु वे अपर्याप्त ही सिद्ध हए हैं। 




बेरोजगारी की समस्या को हल करने के उद्देश्य से पाठ्यक्रम में रोजगारपरक शिक्षा को स्थान तो जरूर दिया गया है, लेकिन उस पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। इसलिए हमारे स्कूलों और कॉलेजों से लाखों की संख्या में ऐसे विद्यार्थी निकल रहे हैं, जो डिग्रीधारी तो हैं, लेकिन उद्योग अथवा व्यवसाय के क्षेत्र में उनकी उपयोगिता शून्य के बराबर है।



बेरोजगारी का एक कारण हमारे देश की पंचवर्षीय योजनाओं में समुचित नियोजन की कमी भी है। इन योजनाओं में शिक्षा और रोजगार के बीच संबंध स्थापित करने पर उचित ध्यान नहीं दिया गया। नतीजा यह हुआ है कि उच्च शिक्षा प्राप्त डॉक्टर, इंजीनियर आदि इतनी बड़ी संख्या में तैयार हो गए हैं कि उन सबके लिए नौकरियों अथवा रोजगार की व्यवस्था करना बहुत कठिन हो गया है।



 इसके अतिरिक्त, इन उपाधिधारियों ने श्रम का महत्त्व भी नहीं समझा है। कोई छोटा मोटा काम करने की अपेक्षा ये लोग बेकार रहना अच्छा समझते हैं। तकनीकी क्षेत्र में भी नई-नई जानकारियों और विशेषज्ञता की माँग होने के कारण आंशिक रूप से बेकारी आई है, लेकिन वह शीघ्र ही दूर हो जानेवाली है।



आज शहरों की ही तरह गाँवों में भी बेरोजगारी ने उग्र रूप धारण कर लिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है। इसके कारण गाँवों में सबको रोजगार मिलना बहुत कठिन हो गया है। खेती में आधुनिक कृषि-यंत्रों का प्रयोग बढ़ रहा है। इससे भी गाँवों में बेकारों की संख्या बढ़ी है।




 गाँवों में बेकारी दूर करने के लिए, सरकारी स्तर पर या सामाजिक संस्थाओं द्वारा सुनियोजित कार्यक्रम भी नहीं चलाए जाते।



बेरोजगारी की समस्या हल करने के लिए देश की जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित' करना बहुत जरूरी है। इसके लिए प्रभावी ढंग से परिवार नियोजन के कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि विकास को प्रधानता देनी चाहिए तथा अधिकाधिक संख्या में रोजगार के अवसर जुटाने चाहिए।



कुटीर उद्योगों तथा लघु उद्योगों को अधिक से अधिक प्रोत्साहन देना चाहिए और शिक्षा को रोजगारपरक बनाना चाहिए। इसके अलावा शिक्षित व्यक्तियों को श्रम का महत्त्व समझाना चाहिए, जिससे उन्हें श्रम करने में लज्जा का अनुभव न हो। 



जो उद्योग घाटे में चल रहे हैं, उन्हें बंद करने या मजदूरों की छंटनी करने के स्थान पर मजदूरों को उन उद्योगों के संचालन में भागीदार बनाना चाहिए। इससे वे उदयोग चलते रहेंगे और मजदूर बेकार नहीं होने पाएँगे। उपर्युक्त उपायों का अवलंबन करने से हमारे देश की बेरोजगारी की समस्या कछ हद तक हल हो सकती है।

बेरोजगारी पर निबंध | berojgari par nibandh

 

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नमस्कार  दोस्तों आज हम बेरोजगारी इस विषय पर निबंध जानेंगे।  बेरोजगारी प्रस्तावना-बेरोजगारी आज भारतीय युवा वर्ग की सबसे बड़ी समस्या है। भारत देश में प्रथम पंचवर्षीय योजना के अन्त तक बेरोजगारों की संख्या मात्र 10 लाख थी, जो कि अब बढ़कर 4 करोड़ 51 लाख 75 हजार तक पहुंच गई है। इस प्रकार पिछले समय अन्तराल से यह संख्या निरन्तर वृद्धि की ओर अग्रसर है। इस समय सबसे अधिक बेरोजगारी पश्चिम बंगाल में है। उसके बाद क्रमशः तमिलनाडु, बिहार, महाराष्ट्र, केरल, उत्तर प्रदेश और चेन्नई है। सबसे अधिक बेरोजगार महिलाएं केरल में हैं एवं इसके बाद पश्चिम बंगाल में हैं। सरकारी आँकडों के अनुसार सन 2000 के आगे आने वाले समय में देश में बेरोजगारों की संख्या लगभग करोड़ तक पहुँच जायेगी।


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बेरोजगारी का अर्थ-जो व्यक्ति किसी प्रकार के उत्पाद कार्य में लगे हए नहीं होते, बेरोजगार कहलाते हैं-इसी प्रकार उन सभी व्यक्तियों के साथ-साथ जो मजदूरी की प्रचलित दरों से कुछ कम मजदूरी है वे लोग भी बेरोजगारी की सूची में आ जाते हैं। जिसकी सम्पन्नता के कारण काम करने में रुचि नहीं अथवा जो निर्धन होते हुए भी काम के स्थान पर दूसरों पर आश्रित या बोझ बने रहते हैं, वे भी बेरोजगार कहलाते हैं। हमें बेरोजगारी की अवधारणा को केवल कार्यशील जनसंख्या तक ही सीमित रखना होगा।

बेरोजगारी की समस्या-भारत में बेरोजगारी की समस्या बहुत फैल चुकी है। यह समस्या मूलतः पूँजीगत और अन्य साधनों की कमी का परिणाम है। शहरों में इस समस्या से जूझने वाला वर्ग मुख्यतः औद्योगिक श्रमिकों तथा शिक्षित बेरोजगार युवकों का है तो ग्रामीण समाज में ह समस्या कषि तथा सम्बन्धित उद्योगों से जड़े मजदूरों की है। ग्रामीण क्षेत्रों में एक समस्या गप्त या अदृश्य बेरोजगारी की भी है। इस समस्या का मूल कारण भूमि का स्थिर आकार और उस पर लगातार बढ़ती श्रम-शक्ति का असन्तुलन है। प्रकट रूप में तो कृषि एवं सहयोगी क्षेत्रों से जुड़ा हर व्यक्ति कार्यरत है, 

परन्तु व्यवहार में जमीन से जुड़े हर व्यक्ति के पास पर्याप्त कार्य नहीं है। इस प्रकार ग्रामीण आबादी का एक बड़ा भाग अदृश्य या गुप्त बेरोजगारी की समस्या से ग्रसित है।
लेकिन आज एक तरफ उच्च शिक्षा में योग्यतम छात्रों को सीमित रखने की बात कही जाती है तो दूसरी तरफ प्रतिदिन नये-नये कॉलेजों तथा विश्व-विद्यालयों की स्थापना की जा रही है, जो कभी और किसी भी तरह भी देश को गौरवशाली नहीं बना सकता।

अतः आज इस पूरी शिक्षा पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन करने की जरूरत है तथा व्यवसायीकरण का कठोरता से पालन करने की भी। शिक्षा जगत के ठेकेदारों पर पाबन्दी लगानी भी आवश्यक है, क्योंकि आज इन्होंने शिक्षा को अपने हक में व्यावसायिक बना रखा है। क्लर्क पैदा करने वाली इस शिक्षा पद्धति को व्यावहारिक तथा समयानुकूल बनाने की समय की बहुत बड़ी माँग है।

गरीबों की बेरोजगारी का कारण-बेरोजगारी की इस भयंकर समस्या से सबसे अधिक गरीब लोग ग्रसित है। अमीर लोग नौकरी पेशा अर्जित करने में अधिक सक्षम हैं। उनके पास साधन हैं, अच्छी शिक्षा है और फिर मेल-मिलाप है। पिछले 25 वर्षों से प्रौद्योगिकी का सहारा लेकर हमने कम्प्यूटरों, इलेक्ट्रॉनिक्स साधनों के सहारे प्रगति की है। अब आवश्यकता इस बात की है कि आगामी वर्षों में आर्थिक नीतियों में कार्य के अधिकार को सम्मिलित कर अधिकाधिक रोजगार प्रदान करने की दिशा में कदम उठाये जायें।

 इसमें भूमिहीन मजदूरों छोटे किसानों, महिलाओं एवं शहर में रहने वाले गरीब व्यक्तियों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। इस समस्या पर काबू पाने के लिए श्रम-प्रधान उद्योगों को प्राथमिकता तथा पूँजी-प्रधान उद्योगों पर नियन्त्रण आवश्यक है। ब्रेड, बिस्कुट, पैन, जैम, साबुन, जैली, रेजर, ब्लैड, अचार, आदि अन्य छोटे-मोटे सामानों के उत्पादन में कुटीर तथा सहायक उद्योगों से बढ़ावा मिलना चाहिए। दैनिक उपयोग वाली वस्तुओं की कम्पनियों की छुट्टी अति आवश्यक है।

सरकारी सहयोग एवं प्रयास-सरकार ने छठी पंचवर्षीय योजना में पहली बार बेरोजगारी उन्मूलन को लक्ष्य बनाया, जिसके तहत 50 लाख परिवारों में रोजगार के अवसर सृजित किये गये। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक में रोजगार गारण्टी योजना शुरू की गई है। वर्तमान में जारी प्रमुख सरकारी रोजगार कार्यक्रम हैं
(1) शहरी गरीबों के लिए नेहरू रोजगार योजना। (2) शिक्षित बेरोजगारों के लिए रोजगार योजना। (3) प्रधानमन्त्री रोजगार योजना।

प्रतीक्षारत संख्या इससे जूझने के लिए प्रयासरत है, तभी एक बड़ी संख्या इससे जुड़कर चुनौती की ओर बढ़ा देती है। अतः असरदार नीति के बिना सारी नीतियाँ तथा योजनाएँ इस समस्या के निदान में असफल सिद्ध हो रही हैं।
उपसंहार-देश के नीति-निर्धारकों को यह ध्यान होगा कि बेरोजगारी उन्मूलन की दिशा में उठाये गये कदम के लिए नहीं, वरन् इस कठिन समस्या से जूझने के लिये उद्देश्य तैयार किये जायें। 

उनका यह फर्ज बनता है कि एक ऐसी समिति तैयार करें, जो बेरोजगारी की समस्या से जूझती और अनजाने में कुण्ठा, विवाद एवं असुरक्षा की भावना का युवा पीढ़ी को अधिकाधिक राष्ट्र-निर्माण में शामिल रखने की क्षमता रखती हो। साथ ही नवयुवाओं को इसे नियति न समझकर इससे जूझते हुए स्वरोजगार की मानसिकता उत्पन्न कर उन्नति की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।

berojgari ki samasya par nibandh NO 2


हमारा आधुनिक भारत अनेक समस्याओं से जूझ रहा है, उनमें बेरोजगारी एक प्रमुख समस्या है, क्योंकि राष्ट्र निर्माण में युवकों की अहम् भूमिका है और यदि युवा पीढ़ी अपनी क्षमता के अनुरूप रोजगार पाने में असफल रहती है, तो राष्ट्र की प्रगति मन्द पड़ जाएगी।

बेरोजगारी अथवा बेकारी का अभिप्राय मांग और पूर्ति में असंतुलन से है। यह हमारे आधुनिक समाज की एक उपज है। प्राचीन भारत में इस तरह की समस्या का कोई प्रमाण नहीं मिलता। प्राचीन भारत में वर्ण-व्यवस्था में पैतृक व्यवसाय को अपना लिया जाता था, जिससे बेरोजगारी उत्पन्न ही नहीं होती थी। लेकिन अब शिक्षा का प्रसार तथा वर्ण-व्यवस्था के भंग हो जाने से पैतृक व्यवसाय को साधारणतया घृणा की दृष्टि से देखा जाता है।

 पुत्र अपने पिता के व्यवसाय को अपनाने को तैयार नहीं होता। लेकिन सब को रोजगार मिलना आसान हीं है।
भारत में बेरोजगारी की समस्या का आरम्भ अंग्रेजों के आगमन के साथ ही शुरू हो गया। अंग्रेज़ 'सोने की चिड़िया' कहलाने वाले भारत की समृद्धि की चकाचौंध से हैरत में पड़ गये थे। अंग्रेजों के साथ अन्य विदेशी जातियां डच, पुर्तगाली, स्पेनिश, फ्रांसिसी आदि आईं। अन्य विदेशी कुछ समय बाद भारत से प्रस्थान कर गए, किन्तु अंग्रेजों ने स्थायी रूप से भारत पर पैर जमा लिए।

 अपने शासन-काल में अंग्रेजों ने भारत की जड़ें खोखली कर दीं। भारत का कच्चा माल इंग्लैंड भेजा तथा वहां से तैयार माल मंगवाकर भारतीय बाजारों में बहुतायत कर दी। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय उद्योग-धन्धे नष्ट हो गये और अनेक भारतीय कारीगर बेकार हो गये। इसके अतिरिक्त लार्ड मैकाले ने ऐसी शिक्षा पद्धति आरम्भ की जिससे सस्ते क्लर्क उत्पन्न हो सकें। उसने भारतीय नागरिकों में बाबूगिरी को ऐसी प्रवृत्ति कूट-कूट कर भर दी, जिससे वे हाथ से काम करना अपनी तौहीन समझने लगे। इसका परिणाम यह है बेरोजगारों की कतार लम्बी होती जा रही है और उसका दूसरा छोर नज़र ही नहीं आ रहा है।

भारत में करोड़ों बेरोजगार अपना नाम रोजगार कार्यालय में दर्ज कराये बैठे हैं। इनमें से कई निजी क्षेत्र में कार्य करते हैं, परन्तु सरकारी नौकरी की आस लगाये बैठे हैं। अनेक बेरोजगार ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपना नाम रोजगार कार्यालय में दर्ज नहीं करवाया है। इसलिए भारत में बेरोजगारों की संख्या जान पाना कठिन हैं। बेरोजगारी के कई रूप देखने को मिलते हैं। एक वर्ग उन लोगों का है जो शिक्षित हैं, प्रशिक्षित भी हैं लेकिन रोजगारहीन हैं। दूसरा वर्ग अशिक्षित, अर्धशिक्षित व्यक्तियों का है। 

तीसरे वर्ग में वे लोग आते हैं जिन्हें वर्ष में कुछ महीने ही काम मिलता है। इस तरह की अर्ध-बेकारी ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलती है। गांवों में कृषक छ: मास तक बेकार रहते हैं। गांवों में कुटीर एवं लघु उद्योग के पतन के कारण बेकारी भी बढ़ गई है। चौथा वर्ग असंतुष्ट वर्ग है जिन्हें काम तो मिलता है पर योग्यता के अनुरूप नहीं।
बेरोजगारी का मूल कारण तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या है। प्रति वर्ष लाखों नये चेहरे रोजगार कार्यालय में जाकर अपना नाम दर्ज कराते हैं। इन लोगों के लिए रोजगार का प्रबन्ध करना भारत जैसे निर्धन देश की सामर्थ्य से बाहर है।

हमारी शिक्षा प्रणाली भी कम उत्तरदायी नहीं है, जिसमें कलम के बाबू तो मिलें पर देश के कर्णधार नहीं। ग्रामीण जनता का शहर के लिए मोह भी बेरोजगारी को स्थायित्व प्रदान काता है। भारत में लगातार सीमा पार से घुसपैठ भी बेरोजगारों की कतार लम्बी कर रही है। मशीनीकरण से भी बेकारी बढ़ी है। एक मशीन अकेले ही सैकड़ों आदिमियों का काम निबटा देती है। मशीनीकरण से लघु-उद्योग भी चौपट हो गये हैं। शासन की दुर्व्यवस्था भी बेकारी का प्रमुख कारण हैं।

बेरोजगारी हमारे देश को दीमक की तरह चाट रही है। इस समस्या के कारण ही अन्य समस्याएं जैसे अनुशासनहीनता, भ्रष्टाचार, अराजकता, आतंकवाद आदि उत्पन्न हो रहे हैं। जैसा कि कहा गया है, "खाली दिमाग शैतान का घर।" एक बेकार व्यक्ति न केवल अपना आत्मविश्वास खो देता है अपितु परिवार और समाज पर भी बोझ बनता है, उसमें आक्रोश एवं व्यवस्था के प्रति विद्रोह का भाव भी पैदा हो जाता है जिसके वशीभूत होकर वह समाज विरोधी कार्यों में भी जुट सकता है और व्यसनों का शिकार भी हो सकता है। बेकार युवा-वर्ग स्वार्थी राजनीतिज्ञों द्वारा आतंकवादी गतिविधियों के लिए भी आसानी से प्रयुक्त किया जा सकता है।

बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए भारत सरकार ने शिक्षा का व्यावसायीकरण किया। जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए परिवार नियोजन कार्यक्रम का जोर-जोर से प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। कुटीर उद्योग-धन्धों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। बेरोजगारी रोकने के लिए समय-समय पर अनेक योजनाओं की घोषणा की गई। युवकों के लिए बैंकों से धन की व्यवस्था की गई जिससे रोजगार के अवसर पैदा हों। आर्थिक-उदारीकरण की नीति से भी नए-नए रोजगार के अवसर पैदा हुए। भारत सरकार के अथक प्रयासों के बाद भी यह समस्या कम नहीं हो रही है। अगर इस समस्या का समाधान करना है तो जनता की मनोवृत्ति बदलती होगी। शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी पाना न होकर बौद्धिक विकास माना जाए।

 एक स्तर तक बौद्धिक विकास के बाद व्यक्ति को रोजगार प्राप्ति के लिए अपनी बौद्धिक क्षमता के अनुसार प्रयास करना चाहिए। लोगों को श्रम का महत्व समझना चाहिए। लोगों को यह समझना चाहिए कि परिश्रम से प्राप्त रोटी में जो आनन्द है, वह पकी पकायी रोटी में नहीं। झुठा स्वाभिमान छोड़ना होगा और अपनी जमीन पर रहकर वहां की स्थिति के अनुसार काम करना होगा। शहरों की ओर भागने की प्रवृत्ति छोड़नी होगी। श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करते हुए अनावश्यकतालेबन्दियों, हड़तालों आदि पर नियन्त्रण लगाना होगा। मजदूर यूनियनों को अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार करना होगा।

एक से बढ़ कर एक राष्ट्रीय लक्ष्य जनता के समक्ष रखना होगा जिसके अनुरुप देश पूरे उत्साह, लगन एवं धैर्य से आगे बढ़े। यदि हमने अपनी क्षमताओं का समझ-बूझ के साथ प्रयोग किया तो बेरोजगारी की समस्या कुछ समय में मिट जाएगी और हमारा देश महाशक्ति के रूप में उभरेगा।


berojgari par nibandh in hindi 

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आजादी मिलने के बाद हमारे देश को अनेक समस्याओं से जूझना पड़ा। उनमें से एक प्रमुख समस्या बेरोजगारी की थी। हमारे देश को आजादी मिले पचास वर्ष से अधिक हो गए, फिर भी बेरोजगारी की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। इतना ही नहीं, यह दिनोदिन और भयानक रूप धारण करती जा रही है। 


वैसे तो विश्व के सभी देशों में, चाहे वे विकसित हों या विकासशील, बेरोजगारी की समस्या मौजूद है, पर भारत में तो यह सर्वत्र व्याप्त हो गई है।



विडंबना यह है कि हमारे देश के बेरोजगारों में शिक्षित व्यक्तियों की संख्या अशिक्षितों की अपेक्षा अधिक है। जो अशिक्षित हैं, वे तो मेहनत-मजदूरी करके अपना जीवन-निर्वाह कर लेते हैं, किंतु शिक्षित व्यक्ति अपने लिए उचित नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटकते ही रह जाते हैं। इनमें कुछ उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति भी होते हैं।



 बेरोजगारी के फलस्वरूप, ये लोग धोखा-धड़ी, तस्करी आदि गैर कानूनी कामों की ओर मुड़ जाते हैं, जिससे अपराध बढ़ते हैं।



हमारे देश में बेरोजगारी का प्रमुख कारण जनसंख्या की असीमित वृद्धि है। जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया के देशों में हमारे देश का दूसरा स्थान है। सन '०१ की जनगणना के अनुसार हमारे देश की जनसंख्या १ अरब २ करोड ७० लाख है। यह जनसंख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है।



इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए नौकरियों की व्यवस्था करना या रोजगार के अवसर जुटाना असंभव-सा हो गया है।

बेरोजगारी का एक अन्य कारण हमारे देश की त्रुटिपूर्ण शिक्षा-पद्धति भी है। यद्यपि समय-समय पर इस शिक्षा-पद्धति में संशोधन किए जाते रहे हैं, किंतु वे अपर्याप्त ही सिद्ध हए हैं। 




बेरोजगारी की समस्या को हल करने के उद्देश्य से पाठ्यक्रम में रोजगारपरक शिक्षा को स्थान तो जरूर दिया गया है, लेकिन उस पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। इसलिए हमारे स्कूलों और कॉलेजों से लाखों की संख्या में ऐसे विद्यार्थी निकल रहे हैं, जो डिग्रीधारी तो हैं, लेकिन उद्योग अथवा व्यवसाय के क्षेत्र में उनकी उपयोगिता शून्य के बराबर है।



बेरोजगारी का एक कारण हमारे देश की पंचवर्षीय योजनाओं में समुचित नियोजन की कमी भी है। इन योजनाओं में शिक्षा और रोजगार के बीच संबंध स्थापित करने पर उचित ध्यान नहीं दिया गया। नतीजा यह हुआ है कि उच्च शिक्षा प्राप्त डॉक्टर, इंजीनियर आदि इतनी बड़ी संख्या में तैयार हो गए हैं कि उन सबके लिए नौकरियों अथवा रोजगार की व्यवस्था करना बहुत कठिन हो गया है।



 इसके अतिरिक्त, इन उपाधिधारियों ने श्रम का महत्त्व भी नहीं समझा है। कोई छोटा मोटा काम करने की अपेक्षा ये लोग बेकार रहना अच्छा समझते हैं। तकनीकी क्षेत्र में भी नई-नई जानकारियों और विशेषज्ञता की माँग होने के कारण आंशिक रूप से बेकारी आई है, लेकिन वह शीघ्र ही दूर हो जानेवाली है।



आज शहरों की ही तरह गाँवों में भी बेरोजगारी ने उग्र रूप धारण कर लिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है। इसके कारण गाँवों में सबको रोजगार मिलना बहुत कठिन हो गया है। खेती में आधुनिक कृषि-यंत्रों का प्रयोग बढ़ रहा है। इससे भी गाँवों में बेकारों की संख्या बढ़ी है।




 गाँवों में बेकारी दूर करने के लिए, सरकारी स्तर पर या सामाजिक संस्थाओं द्वारा सुनियोजित कार्यक्रम भी नहीं चलाए जाते।



बेरोजगारी की समस्या हल करने के लिए देश की जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित' करना बहुत जरूरी है। इसके लिए प्रभावी ढंग से परिवार नियोजन के कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि विकास को प्रधानता देनी चाहिए तथा अधिकाधिक संख्या में रोजगार के अवसर जुटाने चाहिए।



कुटीर उद्योगों तथा लघु उद्योगों को अधिक से अधिक प्रोत्साहन देना चाहिए और शिक्षा को रोजगारपरक बनाना चाहिए। इसके अलावा शिक्षित व्यक्तियों को श्रम का महत्त्व समझाना चाहिए, जिससे उन्हें श्रम करने में लज्जा का अनुभव न हो। 



जो उद्योग घाटे में चल रहे हैं, उन्हें बंद करने या मजदूरों की छंटनी करने के स्थान पर मजदूरों को उन उद्योगों के संचालन में भागीदार बनाना चाहिए। इससे वे उदयोग चलते रहेंगे और मजदूर बेकार नहीं होने पाएँगे। उपर्युक्त उपायों का अवलंबन करने से हमारे देश की बेरोजगारी की समस्या कछ हद तक हल हो सकती है।