भारत के उद्योग हिंदी निबंध | Bharat Ke Udyog Hindi Nibandh

 

भारत के उद्योग हिंदी निबंध | Bharat Ke Udyog Hindi Nibandh

नमस्कार  दोस्तों आज हम  भारत के उद्योग इस विषय पर निबंध जानेंगे। एशिया और यूरोप के बाजारों में इनकी अच्छी बिक्री हो जाती थी और अरब के देशों में तो लोग भारतीय माल के लिए लालायित रहते थे। चीन, जापान, श्रीलंका, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो आदि देशों में भारतीय माल की बहुत खपत थी। देश के अन्दर भी धनी वर्ग इन वस्तुओं का बहुत शौकीन धा। इन उद्योगों को यहाँ राजा-महाराजाओं का संरक्षण प्राप्त था।


भारतीय उद्योग शनैः शनै समाप्त हो गए और दो सौ वर्षों में तो बिल्कुल ही समाप्त हो गए। इसमें अंग्रेजों का स्वार्थ छिपा हुआ था, वे इंग्लैंड का बना हुआ माल भारतवर्ष में मनमानी कीमत पर बेचते थे, जिससे उनके देश का उद्योग बढ़ता था। महात्मा गान्धी के स्वदेशी आन्दोलन के फलस्वरूप विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार हुआ अर्थात् भारतवर्ष में विदेशी वस्तुओं की बिक्री कम हो गई। भारतवर्ष की बेकारी की समस्या को दूर करने के लिए महात्मागाँधी ने लघु


कुटीर उद्योग-धन्धों पर बहुत बल दिया। अंग्रेजों को जब लगा कि उनके माल की खपत भारत में कम होती जा रही है, तो उन्होंने भारत में ही कपड़े और चीनी की बडी मिलें खोल दीं। अब वे दूसरे रूप में भारत का पैसा इंग्लैण्ड भेजने लगे।


स्वतन्त्र भारत के प्रमुख उद्योग 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतन्त्र हो गया। स्वाधीनता के पश्चात् देश ने औद्योगिक क्षेत्र में आश्चर्य जनक प्रगति की है। देश में बहमुखी विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई गईं। इनमें बड़े-बड़े उद्योगों को स्थापित करने की योजनाएँ बनीं। 


नदियों पर बाँध बाँधने का काम आरम्भ हुआ। भाखड़ा बाँध, तुंगभद्रा बाँध, फरक्का बाँध, गोदावरी बाँध, कोसी बाँध तथा नर्मदा की योजनाओं से बिजली अधिक मात्रा में मिलने लगी। परिणामस्वरूप देश के लिए उद्योग बढ़ने लगे। कई नए उद्योग आरम्भ हो गए। 


सर्वप्रथम सिन्दरी में खाद का बड़ा कारखाना स्थापित हुआ जिससे खाद्यान्नों में सहायता मिली। इस समय भारत के प्रमुख उद्योग-सूती वस्त्र उद्योग, जूट उद्योग, चीनी उद्योग, लोहा-इस्पात उद्योग, सीमेंट उद्योग आदि हैं।


भारतवर्ष सूत्री वस्त्रों के उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। भारत में सूती वस्त्र बनाने की पहली मिल मुम्बई में सन् 1845 ई० में खोली गई। धीरे-धीरे यह उद्योग सारे देश में फैल गया। आजकल भारत में 1000 से अधिक मिलों में प्रतिवर्ष लगभग 980 करोड़ मीटर कपड़ा तैयार किया जाता है।


भारत की आर्थिक व्यवस्था में जूट उद्योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस समय देश में लगभग 115 जूट मिले हैं, जिनमें लगभग 13-14 करोड़ टन से भी अधिक जूट का सामान तैयार होता है। यद्यपि भारत को कच्चा जूट बांग्लादेश आदि देशों से आयात करना पड़ता है।

 

इस उद्योग में लगभग चार लाख नागरिक लगे हुए हैं। इस उद्योग से भारतवर्ष को विदेशी मुद्रा सबसे अधिक मात्रा में प्राप्त होती है। चीनी उद्योग भारत के बड़े उद्योगों में से एक है। अंग्रेजी शासन में भारत में विदेशों से चीनी आती थी। परन्तु इस समय हम चीनी उद्योग में स्वाबलम्बी ही नहीं अपितु चीनी का निर्यात भी करते हैं।


इस उद्योग से भारत वर्ष में बेरोजगारी और बेकारी की समस्या काफी सीमा तक हल हुई है। सन् 1980-81 में देश में चीनी का रिकार्ड उत्पादन हुआ था और सन् 1996 में उससे भी तिगुना हुआ है। चीनी के अधिकतर कारखाने उत्तर-प्रदेश व बिहार में स्थित हैं। देश की असंख्य जनता इस उद्योग से अपना जीवन-निर्वाह कर रही है। 


देश की समृद्धि के लिए लोहा और इस्पात बहुत ही आवश्यक हैं। भारतवर्ष में, सबसे पहले सन् 1907 में टाटा आयरन एण्ड स्टील वर्क्स की स्थापना हुई थी, इसके बाद यह उद्योग तेजी से बढ़ता गया। दूसरी पंचवर्षीय योजना में भिलाई, राउरकेला और दुर्गापुर में लोहे और इस्पात के तीन बड़े-बड़े कारखाने स्थापित किए गए। 


भारत से इस्पात का बहुत बड़ी मात्रा में निर्यात किया जाता है, जिससे देश को काफी विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है सीमेंट के क्षेत्र में भारत अब आत्मनिर्भर हो गया है। यह उद्योग उत्तरोत्तर विकास की ओर बढ़ रहा है। इस उद्योग में 80,000 व्यक्ति काम करते हैं। सीमेंट के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि हो रही है। 


सन् 1957 में 53 लाख टन, 1958 में 60 लाख टन, 1959 में 65 लाख टन सीमेंट का उत्पादन हुआ था। सीमेंट के उत्पादन में वृद्धि के फलस्वरूप भारत में भवन-निर्माण भी पर्याप्त मात्रा में हुआ है। सन् 1979 तक यह उत्पादन 120 लाख टन पहुँच चुका है। 


सन् 1982 से भारत सरकार ने सीमेंट की बिक्री पर से नियन्त्रण समाप्त कर दिया है। इसके अतिरिक्त आज के परमाणु युग में भारत ने भी ट्राम्बे में परमाणु भट्टी प्रारम्भ की है।


अन्य उद्योग भारत में प्रमुख उद्योगों के अतिरिक्त अन्य उद्योग स्थापित हैं, जिनमें निम्नलिखित कुछ विशेष हैं-कोयला उद्योग, कागज उद्योग, मशीन उद्योग, वायुयान, रेल इन्जिन व जलयान बनाने के उद्योग आदि हैं। कोयला आज के जीवन की नितान्त आवश्यकता है। 


छोटे से छोटे काम से लेकर बड़े से बड़े काम में इसकी उपयोगिता है। आज तक भारतवर्ष में प्रतिवर्ष प्राय: 3 करोड़ 80 लाख टन कोयला निकाला जाता था। भारत में कागज का पहला कारखाना मध्यप्रदेश के 'नेपा नगर' में सन् 1955 में स्थापित किया गया था। 


ब्रिटिश काल में कागज हमारे देश में विदेशों से आता था परन्तु अब इसका उत्पादन भारत में होने लगा है। वायुयानों का निर्माण बंगलौर में हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स नाम के कारखाने में किया जाता है। इस विशाल कारखाने में पुराने तथा नये प्रकार के वायुयान बनाये जा रहे हैं। 


रेल इन्जिन बनाने का सबसे बड़ा कारखाना चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स है, जो समस्त एशिया में सबसे विशाल कारखाना है। भारत सरकार ने इसकी स्थापना 1959 में की थी। इसी प्रकार रेल के डिब्बे बनाने का कारखाना पैराम्बर में खोला गया है। 


देश में जलयान बनाने के कारखाने विशाखापतनम, कोचीन, पश्चिमी बंगाल (गार्डन बीच) तथा मुम्बई (मझगाँव) में स्थापित हैं। इसके अतिरिक्त अनेक बड़े-बड़े कारखाने स्थापित किए गए जिनमें कपड़े सिलने की मशीनें, साइकिल तथा रेल के इंजिनों के पुर्जे बनने लगे। गुड़गाँव में मारुति (कार) उद्योग लिमिटेड स्थापित है। राँची, कानपुर, खड़गपुर और कलकत्ता में शस्त्रों का निर्माण करने के कारखाने लगे हैं।


उपसंहार-पंचवर्षीय योजनाओं में भारत के उद्योगों ने आशातीत उन्नति की है। आज भारत यंत्रों और पुर्जा, युद्ध सामग्रियों, दैनिक जीवन के उपयोग और उपभोग की वस्तुओं का निर्माण ही नहीं कर रहा है अपितु अब वह इस स्थिति में है कि वह संसार के विकासशील देशों को सभी वस्तुओं का निर्यात भी कर रहा है। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।



शब्दार्थ-संरक्षण = निगरानी, देखरेख; बहमुखी = चारों ओर का; उत्तरोत्तर = क्रमशः, एक के पीछे एक ; नितान्त = बिल्कुल; आशातीत = उम्मीद के अनुसार।