भारत में विदेशी पूंजी हिंदी निबंध |Bharat Me Videshi Punji Hindi Nibandh

 

भारत में विदेशी पूंजी हिंदी निबंध |Bharat Me Videshi Punji Hindi Nibandh

 नमस्कार  दोस्तों आज हम भारत में विदेशी पूंजी इस विषय पर निबंध जानेंगे।प्रस्तावना-भारत में विदेशी पूँजी की समस्या एक गम्भीर समस्या बन गई। विरोधी पक्ष निरन्तर यह कहता रहता है कि विदेशी पूँजी प्रायः अर्थव्यवस्था को खोखला कर रही है। जब कि सत्ता पक्ष इस तर्क को मानने के लिए तैयार नहीं है। अर्थशास्त्रियों में इस सम्बन्ध में हमेशा विवाद रहा है। 


विदेशी पूँजी के पक्ष में और विपक्ष में अनेक सम्बन्धित कारण प्रस्तुत किये जाते हैं। इन पर विचार करने से पहले हमारे लिये यह आवश्यक होगा कि हम भारत में विदेशी पूँजी की स्थिति पर पूर्ण रूप से दृष्टि डालें।


भारत में विदेशी पूँजी की मात्रा-एक अनुमान के अनुसार निजी औद्योगिक क्षेत्र में विदेशी पूँजी का नियोजन लगभग 2450 करोड़ रुपये का है। इसमें 35 प्रतिशत भाग ब्रिटेन, 26 प्रतिशत अमरीका और 8.5 प्रतिशत भाग जर्मनी का है। इस समय भारत में 750 कम्पनियां अत्यन्त उच्चकोटि की हैं।


भारत में कुछ सहायक संयुक्त उपक्रम के आधार पर भी सहयोग प्राप्त किया गया है। 1957 ई० से 1979 ई० तक 27 वर्ष के काल में 5700 संयुक्त उपक्रम की स्थापना की स्वीकृति भारत सरकार द्वारा की जा चुकी थी। भारत में बहुराष्ट्रीय निगम भी कार्य कर रहे हैं।


1978 ई० में भारत में 871 कम्पनियां थीं। भारत सरकार की नीति बहुराष्ट्रीय निगमों का राष्ट्रीयकरण करने की थी। अभी तक 690 कम्पनियों ने अपनी पूँजी में से 40 प्रतिशत हिस्सा विदेशी कर दिया है। लगभग 110 कम्पनियों को 15 प्रतिशत पर बने रहने की नियुक्ति दी गयी है।


भारत में विदेशी पूँजी के रूप-भारत में विदेशी पूँजी के तीन रूप देखने को मिलते हैं-(1) निजी विदेशी विनियोजक, (2) अन्य देशों की सरकार द्वारा भारत सरकार को ऋण एवं (3) कई अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा ऋण।भारत में निजी विदेशी विनियोजकों की मात्रा लगातार कम होती जा रही है, परन्तु अन्य देशों और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा दिये गये ऋणों की मात्रा में वृद्धि हुई है।


विदेशी पूँजी के पक्ष से सम्बन्धित कारण भारत एक विकासशील देश है और यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रयोग नहीं हो पाया है। भारत में आन्तरिक बचतों का अभाव है। तकनीकी ज्ञान का भी अभाव है तथा व्यावसायिक जोखिम उठाने की क्षमता भी बहुत कम है। 


यहाँ पूँजी व मशीनों का अभाव के कारण विदेशी पूँजी और सहायता आवश्यक हो जाती है। भारत में विदेशी पूँजी के प्रयोग से प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन किया गया है और उसके फलस्वरूप आधुनिकीकरण को तीव्र गति प्राप्त हुई है। विदेशी पूँजी एवं सहायता से विदेशी तकनीकी ज्ञान से भी बढ़ोत्तरी हुई है। 


औद्योगिक कुशलता में भी वृद्धि है और देश की जनता को सस्ती एवं टिकाऊ वस्तुओं की प्राप्ति हो सकी है। विदेशी पूँजी रोजगार के अवसरों को उपलब्ध कराने में भी महत्वपूर्ण सिद्ध हुई है।


भारत में यद्यपि कुछ आधारभूत उद्योग के निर्माण किए जा चुके हैं, परन्तु अभी भी ऐसे उद्योगों की स्थापना की आवश्यकता है। इन उद्योगों की स्थापना में अधिक मात्रा में पूँजी का विनियोजन किया जाना सम्भव नहीं है। विदेशी पूँजी उनकी स्थापना में सहायक सिद्ध होती है और भारत को इसकी तीव्र आवश्यकता है।


भारत का विदेशी व्यापार कई वर्षों से असन्तुलित है और नियोजन के फलस्वरूप अब भी आयात अधिक होने की सम्भावित आशंका है। विदेशी सहायता और पूँजी भुगतान असन्तुलन को कम करके सन्तुलन में लाने के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुई है। 


आवश्यक वस्तुओं की प्राप्ति के लिये भी विदेशी पूँजी आवश्यक हो जाती है। विदेशी पूँजी एवं सहायता से मुद्रास्फीति को कम करने में भी सहायता मिलती है। विदेशी पूँजी के विपक्ष से सम्बन्धित कारण-विद्वानों का एक वर्ग ऐसा है कि जो विदेशी पूँजी एवं सहायता को खतरनाक मानता है।


विदेशी पूँजी राजनैतिक पराधीनता अथवा हस्तक्षेप को पैदा कर देती है। भारत-पाकिस्तान के संघर्ष के समय अमरीका ने भारत पर दबाव डाला यह सब विदेशी पूँजी का परिणाम ही हुआ। विदेशी पूँजी और सहायता पर औद्योगिक निर्भरता देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक होती है।


प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों, नानावती और अंजीरिया का मानना है कि विदेशी पूँजी और सहायता ने भारत की आर्थिक नीतियों को परोक्ष रूप से प्रभावित किया है। विदेशी पूँजी और सहायता के कारण भारत की विदेशों पर आर्थिक निर्भरता बढ़ गई है।



विदेशी पूँजी के लिए हमें कुछ विशेष नियमों का पालन करना पड़ता है और इससे विदेशी निर्भरता बढ़ती है। विदेशी पूँजी जब लौटानी होती है, तो इससे अर्थव्यवस्था पर भारी प्रभाव पड़ता है। इस सहायता से स्थापित उद्योगों के कारण राष्ट्रीय उत्पादकता में कमी होती है और वह अपने क्षेत्र में प्रतियोगिता के फलस्वरूप टिक नहीं पाती है।


विदेशी सहायता से स्थापित उपक्रमों द्वारा उच्च पदाधिकारियों की नियुक्ति में भेदभाव बढ़ता गया है। महत्वपूर्ण तकनीकी पदों पर विदेशी अधिकारी नियुक्त होते हैं। विदेशी पूँजी के सम्बन्ध में यह भी कहा गया है कि यह देश के व्यवस्थित विकास में बाधक सिद्ध हुई है। 


भारत में विदेशी पूँजी के सहयोग के कारण आर्थिक शक्ति का केन्द्रीकरण हुआ है। उपसंहार-विदेशी पूँजी की सहायता देश के लिये आवश्यक है और इसलिये इसका उपयोग आवश्यक रूप से करना चाहिए, किन्तु इसे काम में लाने से कई हानियां या खतरे भी हैं।


अतः विदेशी पूँजी और सहायता का प्रयोग करते समय उनके विषय में आवश्यक सावधानी बरतनी चाहिए जिससे यह उचित नियन्त्रण में रहे और देश को हानि न पहुंच सके तथा देश की राजनीतिक और आर्थिक नीतियों पर कोई बुरा प्रभाव न पड़े। इस प्रकार विदेशी पूँजी सहयोग से भारत को अनेक लाभ होते हैं और साथ ही हानि भी होती है।दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।