भूकंप पीड़ित की आत्मकथा पर निबंध | BHUKAMP PIDIT KI ATMAKATHA ESSAY IN HINDI

 

भूकंप पीड़ित की आत्मकथा पर निबंध | BHUKAMP PIDIT KI ATMAKATHA ESSAY IN HINDI

नमस्कार  दोस्तों आज हम भूकंप पीड़ित की आत्मकथा इस विषय पर हिंदी निबंध जानेंगे। अकसर लोग छोटे-छोटे दुखों का रोना रोते हैं। जरा-सी तकलीफ पड़ते ही हिम्मत हार जाते हैं। लेकिन हमने जो विपत्ति भोगी है, शायद ही किसी ने भोगी हो। 


३० सितंबर, १९९३ की वह रात भुलाए नहीं भूलती। इस रात को हमारे इलाके में भयानक भूकंप आया था।भारी संख्या में लोग बेघर हो गए। जो शाम को अच्छे-खासे खाते-पीते थे, रातभर में सब कुछ गँवा बैठे।


मेरा घर महाराष्ट्र के लातूर जिले के खिल्लारी गाँव में है। मेरा परिवार छोटा, पर सुखी था। लक्ष्मी के समान मेरी पत्नी थी। फूल जैसे दो बच्चे थे। पंद्रह वर्ष का राजू और बारह वर्ष की शुभांगी। कितने होनहार थे दोनों ! खेती भी गुजर-बसर के लिए काफी थी। 


एक दुधारू भैंस थी। खूब दूध देती थी। महीने भर में काफी घी इकट्ठा हो जाता था। इससे मुझे अच्छा पैसा मिल जाता था। गाँव के लोग मेरे सुख से ईर्ष्या करते थे। २९ सितंबर को गणेश विसर्जन था। दिन भर के थके हुए लोग रात को चैन की नींद सो रहे थे। तभी आधी रात के समय धरती हिल उठी। 


सारे गाँव में कोहराम मच गया। गाँव के सभी मकान गिर गए। चारों ओर मलबा-ही-मलबा फैल गया। उसके बाद क्या हुआ, मुझे नहीं मालूम ! आँख खुली, तो मैंने अपने को शिबिर में पाया। लोगों ने बताया कि मुझे बेहोशी की हालत में मलबे से निकाला गया था। 


मेरा पूरा परिवार भूकंप का शिकार बन गया था। यह सुनकर मैं चीख पड़ा था। पर क्या करता? यह आपदा तो पूरे गाँव पर आई थी। कौन किसको हिम्मत बँधाता? समूचा गाँव श्मशान-भूमि बन गया था। लेकिन सरकार ने तुरंत राहत कार्य शुरू कर दिया। सरकारी कर्मचारी खाने का सामान और दवाइयाँ लेकर पहुंच गए। 


देश के हर भाग से सहायता पहुँचने लगी। लोग हमारे दुख में हाथ बँटाने दौड़ पड़े। अब हम असहाय नहीं थे। सारा देश हमारी मदद कर रहा था। आज मेरा गाँव नए सिरे से बस गया है। गाँव के लोगों को छोटे-छोटे मकान मिल गए हैं। ये बहुत सुविधाजनक हैं। 


अब लोग फिर से अपनी गृहस्थी जमाने में लग गए हैं। यह देशवासियों की सहानुभूति के कारण ही संभव हो पाया है। मुझे भी रहने के लिए मकान मिल गया है। पेट भरने के लिए अनाज भी मेरे पास है। पर मेरा परिवार मुझसे सदा के लिए बिछुड़ गया है। वह मुझे अब कभी नहीं मिल पाएगा। शायद मेरी तकदीर में यही लिखा था। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।