बस स्थानक पर आधा घंटा | BUS STOP PAR EK GHANTA HINDI ESSAY

 

 बस स्थानक पर आधा घंटा | BUS STOP PAR EK GHANTA HINDI ESSAY

नमस्कार दोस्तों आज हम बस स्थानक पर आधा घंटा इस विषय पर निबंध जानेंगेशहर में एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए प्राय: बस का उपयोग होता है। इससे बस स्थानक पर हमेशा मानवों का मेला-सा लगा रहता है। इच्छित बस पाने के लिए कभी-कभी आधे घंटे तक तपश्चर्या करनी पड़ती है।


शनिवार की शाम थी वह ! मैं घूमने निकल पड़ा था। चलते-चलते बस-स्थानक पर जा पहुँचा। दूर से ही खड़े हुए लोगों की लंबी कतार दिखाई पड़ रही थी। हर उम्र के और हर तरह के लोग उस कतार में खड़े थे। उसमें सूट-बूट पहने हुए लोग थे, कुर्ता-टोपी पहने व्यापारी थे और मैले कुचैले कपड़ोंवाले मजदूर भी थे। 


गंभीर गृहिणियाँ और युवतियाँ भी उसमें थीं। कुछ स्त्रियाँ अपने छोटे बच्चों के साथ थीं। कोई समाचारपत्र या कहानी की पुस्तिका पढ़ रहा था। कुछ बूढ़े बातचीत में डूबे हुए थे। 'कतार' में कुछ बच्चे शरारत कर रहे थे। सचमुच, लोगों का यह जमघट दर्शनीय था।


बस-स्थानक पर एक-दो भिखमँगे भी घूम रहे थे। वे बार-बार सलाम करके पैसे माँग रहे थे। अखबारवाला 'आज की ताजा खबर' का नारा लगाते हुए वहाँ से गुजर रहा था। खिलौनेवाला और चनेवाला तो वहाँ से हटने का नाम ही न लेता था। सचमुच, बस-स्थानक की चहल-पहल देखते ही बनती थी।


थोड़ी देर के बाद ५ नंबर की बस आ पहँची। यात्री बस में घुसने लगे। एक, दो, तीन, चार और पाँच। 'रुक जाना', 'पीछे दूसरी गाडी आती है' - यह कहते हुए बस-कंडक्टर ने घंटी बजा दी और बस चल पड़ी। एक यात्री ने दौड़कर बस पकड़नी चाही, पर बेचारा फिसल पड़ा। कुछ मिनट और बीते, पर दूसरी गाड़ी नहीं आई। कुछ देर के बाद दो बसें


एकसाथ आईं, पर बिना रुके ही घंटी की आवाज के साथ चल दीं। लोग बेचैन हो उठे। कुछ यात्री रिक्शा या टैक्सी में बैठकर चल दिए। लोगों की कतार तो कुछ कम हुई, पर उनकी बेचैनी और परेशानी बहुत बढ़ गई थी! ॐ इतने में एक खाली बस आ पहुँची। 


यात्रियों की कतार 'भीड़' बन गई। धक्कमधक्का करते हुए सभी यात्री बस में चढ़ गए। यह सुनहला अवसर मैं अपने हाथ से कैसे जाने देता? आखिर तपश्चर्या का फल जो मिला था। मैं भी उस बस में सवार हो गया। बस चल पड़ी, तब पता चला कि एक यात्री की जेब कट गई थी। सचमुच, बस-स्थानक पर आधे घंटे में ही मानवजीवन का रोचक, रोमांचक और ज्ञानप्रद अनुभव हो जाता दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताएगा। 

निबंध  2

बस स्थानक पर आधा घंटा | BUS STOP PAR EK GHANTA HINDI ESSAY



यातायात के आधुनिक साधनों में बस का बहुत महत्त्व है। शहरों में तो आने-जाने का मुख्य साधन बस ही है। इसीलिए बसों में यात्रियों की बहुत भीड़ होती है। कभी-कभी तो इच्छित बस मिलने में आधे-आधे घंटे का समय निकल जाता है।


कल मुझे अपने एक मित्र के घर जाना था। मैं बस स्टैंड पर कतार में खड़ा हो गया। मुझे १३० नंबर की बस पकड़नी थी। वैसे उस स्टैंड पर कई और नंबरों की बसें भी रुकती थीं। काफी देर हो गई, पर बस नहीं आई। मैं बड़ी उत्सुकता से कतार में खड़े लोगों के हावभाव देखने लगा। 


कतार में बूढ़े, जवान, बच्चे, स्त्रियाँ सभी प्रकार के लोग थे। स्त्रियाँ महंगाई की बातें कर रही थीं। एक यात्री हाथ में अखबार लिये पढ़ रहा था। दो बूढ़े एक-दूसरे का हालचाल पूछ रहे थे। कालेज में पढ़नेवाले दो छात्र हँसीमजाक में व्यस्त थे। 


मेरे पीछे खड़ा बच्चा अपनी माँ से खिलौना खरीदने की जिद कर रहा था। माँ बच्चे को डाँट रही थी। एक भिखारी हाथ में कटोरी लिये भीख माँग रहा था। इस बीच कई बसें आती रहीं। बस आते ही यात्री बस पकड़ने दौड पडते। इससे बार-बार कतार टूट जाती थी। कभी-कभी धक्कामुक्की भी हो जाती थी।


कुछ लोग अपनी इच्छित बस आती न देख टैक्सी में बैठकर चले गए। क्या करते बेचारे, बस के भरोसे कब तक खड़े रहते? तभी १३० नंबर की बस आ गई। यात्री भागकर उसमें चढ़ने लगे। एक बुढ़िया बस में ठीक से चढ़ भी न पाई थी कि कंडक्टर ने घंटी बजा दी। 



बुढ़िया जैसे-तैसे बस में चढ़ तो गई, पर कंडक्टर पर खूब बरसी। आखिरकार कंडक्टर को बुढ़िया से माफी माँगनी पड़ी। तब कहीं जाकर बुढ़िया का गुस्सा शांत हुआ। बस भले देर से आई, पर उसमें भीड़ नहीं थी। मैं आराम से अंदर जाकर बैठ गया। सचमुच, बस स्टैंड पर बस के इंतजार में आधा घंटा बिताना बहुत रोचक अनुभव है।