केबल टीवी के समाज पर प्रभाव हिंदी निबंध | cable TV ke samaj par prabhav par hindi essay
नमस्कार दोस्तों आज हम केबल टीवी के समाज पर प्रभाव इस विषय पर निबंध जानेंगे। संचार माध्यमों ने सदैव सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक परिवर्तनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। मुद्रण माध्यम जहाँ औपनिवेशिक विस्तार की सबसे बड़ी जरूरत थी, वही यह उपनिवेशवाद के विरोध का भी सबसे बड़ा हथियार बना।
आज संचार नव-उपनिवेशवाद के विस्तार और विरोध का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है-इलेक्ट्रॉनिक माध्यम। एक चित्र, एक हजार शब्दों के बराबर होता है। ऐसी स्थिति में यह किसी भी अन्य माध्यम की तुलना में बहुत प्रभावी है।
जहाँ ये माध्यम राष्ट्र और उनके वासियों के सांस्कृतिक अहम् को क्षत-विक्षत करते हैं, वहीं यह माध्यम सरकारी नियन्त्रण में जनशिक्षण का सबसे प्रखर साधन है।
हॉलीवुड तथा वॉल स्ट्रीट जैसे हमलों से भारत जैसा अल्पविकसित देश क्या अपनी सांस्कृतिक सम्पदा की सुरक्षा कर सकेगा? ऐसी स्थिति में भारत में बहुराष्ट्रीय कम्पनियां केबिल टी०वी० द्वारा सांस्कृतिक तौर पर जो विस्फोट करेंगी, वह अकल्पनीय है।
ज्ञातव्य है कि भारत में मध्यवर्ग का तेजी से विस्तार हो रहा है। इसी कारण सभी परराष्ट्रीय उपभोक्ता माल बनाने वालों की नजर देश में निर्मित होने वाले इस उपभोक्ता बाजार की तरफ है।
दरअसल आज के युग में माध्यमों की प्राणशक्ति ही विज्ञापनों में निहित होती है। निर्माता द्वारा विज्ञापन को पकड़ना और पकड़े रखने में ही उसके कार्यक्रम की सफलता है, क्योंकि विज्ञापन, दर्शकों की संख्या यानि व्यूअरशिप रेटिंग पर निर्भर करते हैं।
यह तय-सी बात है कि दर्शकों की संख्या बजाय उद्देश्यपरक कार्यक्रमों के हल्के-फुल्के मनोरंजक कार्यक्रमों में अधिक होगी। अतः दर्शक, केबिल टी०वी० द्वारा प्रसारित विदेशी हल्के-फुल्के कार्यक्रमों में अधिक दिलचस्पी लेता है।
विश्व के प्रमुख केबिल टी०वी० । स्टार टी०वी०-यह वास्तव में हांगकांग का एक संगठन है जिसका पूरा नाम है-“सैटेलाइट टेलीविजन फॉर एशियन रीजिमन (S.T.A.R.), जो हांगकांग की हच विजन नामक संस्था से सम्बद्ध है।
यह संस्था एशिया-सैट नामक उपग्रह के द्वारा एशिया के दक्षिणी क्षेत्री तक लगभग 40 देशों में टी०वी० कार्यक्रम प्रसारित कर रहा है। स्टार टी०वी० ने बी०बी०सी० की समाचार सेवा को पूरे एशिया में फैला दिया है। इसके द्वारा इंग्लैंड से प्रसारित कार्यक्रम को भारत तक पहुँचाने में एक सेकंड से अधिक नहीं लगता।
भारत में इसके कार्यक्रम डिश एंटिना द्वारा ग्रहण किये जाते हैं जो सी० बैड पर भारत में प्रसारित हो रहे हैं। स्टार टी०वी० अपने कार्यक्रमों का प्रसारण भारत में मुफ्त कर रहा है और अपना खर्च विज्ञापनकर्ताओं से पूरा करता है।
स्टार टी०वी० का प्रसारण 5 चैनलों पर हो रहा है-(i) एम०टी०वी० (Music T.V.), (ii) प्राइम स्पोर्ट्स, (ii) बी०बी०सी० वर्ल्ड सर्विस, (vi) इंटरटेनमेंट तथा (v) चाइनीज चैनल। यह भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बड़े सैटेलाइट टी०वी० प्रसारण के रूप में कार्य कर रहा है जो रूसी उपग्रह को किराये पर लेकर 8-10 घंटे का हिन्दी कार्यक्रम देने का प्रयास कर रहा है। स्टार टी०वी० के लुभावने कार्यक्रमों की चमक से भारतीय दर्शक चौंधिया गया है।
केबिल प्रसारणों ने एक सुलभ रास्ता खोल दिया है, वह है सिगरेट और शराब के विज्ञापन-जिन पर अंकुश लगा पाना सरकार के लिये मुश्किल है।
अभी तक के विज्ञापनों के प्रभाव के तमाम सामाजिक सर्वेक्षण यही बताते हैं कि स्त्रियों को उपभोक्ता वस्तु की तरह प्रस्तुत करने, अपराध और नशे की लत बढ़ाने और नैतिक-सामाजिक मूल्यों के हनन में इन्हीं विज्ञापनों का सबसे बड़ा हाथ रहा है,
यही नहीं इन उत्पादनों का विज्ञापन बजट किसी भी अन्य उत्पादन के विज्ञापन बजट के मुकाबले ज्यादा होता है।इसी कारण जहाँ सरकारी सामाजिक विज्ञापन अपेक्षाकृत छोटे बजट और सामान्य प्रस्तुति वाले होते हैं,
वहीं ये विज्ञापन अधिक भव्य और संप्रेषणीय होते हैं। इन्हीं कारणों से प्रसारण निर्माताओं को कार्यक्रम निर्माण हेतु पर्याप्त आर्थिक आपूर्ति कर सकते हैं।
अतः देश को ऐसे माध्यमों की जरूरत है जो आंचलिक आवश्यकताओं व उनकी संस्कृति के अनुकूल हों, किन्तु संस्कृति की भागीरथी अब ऊपर से ही बहेगी। हां यह जरूर है कि उच्च संस्कृति नामक यह माल गांव-गांव, कस्बे-कस्बे में दिखाया जाएगा। इस माल में जनशिक्षण के तत्वों को समाविष्ट करा पाना सरकारी बूते से बाहर है।
इन विज्ञापनों का प्रभाव सबसे अधिक बच्चों व गृहिणियों पर देखने को मिलता है। लोग बहुराष्ट्रीय कृत्रिम आकर्षक उपभोक्ता वस्तुओं की ओर टूट पड़ रहे हैं। कृत्रिम आकांक्षाएँ जग जाने से नागरिकों में भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है।
भारत में केबिल टेलीविजन के आक्रमण का असर कई क्षेत्रों में दिख रहा है, पर बच्चों की मानसिकता से यह सबसे ज्यादा खिलवाड़ कर रहा है। सरकारी दूरदर्शन केबिल की लोकप्रियता से घबराया हुआ है, पर स्कूली बच्चे इसके चलते अपनी पढ़ाई और खेलों का आनंद ही भूल गए हैं।
बच्चे अब उतना नहीं खेलते। अपनी दिलचस्पी की दूसरी चीजों के लिए भी केबिल उन्हें समय नहीं दे रहा। माँ-बाप को भी केबिल यह जानने की फुरसत नहीं देता कि बच्चे क्या कर रहे हैं, क्या देख रहे हैं और क्या सीख रहे हैं, बच्चे अकेले पड़ गए हैं।
बच्चे, टी०वी० पर दिखाने वाली बातों को अपने जीवन में उतार रहे हैं। वे सीरियलों और फिल्मों के पात्रों की तरह बात करने की कोशिश करते हैं, उनके संवाद रट लेते हैं, वैसी ऐक्टिंग और वैसी ही कहानियाँ गढ़ते हैं। उनके गीत भी उन्हें याद रहते हैं।
केबिल टी०वी० से यह संकट इसलिए कई गुना बढ़ गया कि वह विदेशी टी०वी० को घरों में ले आया। दूसरी बातों के लिए केबिल बच्चों को समय की छूट नहीं दे रहा। ऐसे कई उदाहरण हैं कि जब चार-पांच साल के किसी बच्चे से कविता सुनाने को कहा तो उसने टी०वी० विज्ञापनों की तुकबंदियाँ सुनानी शुरू कर दी।
सारी कोशिश यह है कि बच्चे टी०वी० से दूर हटें और अपने वातावरण के प्रति उनमें संवेदनशीलता आए। लेकिन बावजूद इस सबके केबिल टी०वी० का जाल तोड़ पाना इतना आसान नहीं है।
अतः सरकार को चाहिए कि दूरदर्शन पर अच्छे धारावाहिकों एवं अन्यान्य कार्यक्रमों हेतु अच्छे निगमों और कम्पनियों को अनुबन्धित किया जाये जो लोकप्रिय एवं आकर्षक कार्यक्रम तैयार कर सकें, ताकि दर्शक केबिल टी०वी० के कार्यक्रमों को देखना ही भूल जायें।
दूसरा, यदि बच्चों को टी०वी० या केबिल टी०वी० पर अच्छे सूचनात्मक एवं ज्ञानवर्धक कार्यक्रम दिखाए जाएं तो उन पर पड़ने वाले कुप्रभाव को कम किया जा सकता है।
बच्चों को यह भी अहसास कराने की आवश्यकता है कि उनके लिए क्या और कितना देखना जरूरी है, ताकि वे अपना खेलने और पढ़ने का पर्याप्त समय निकाल सकें।
इसीलिए आवश्यकता है बच्चों को समय नियोजन सिखाने की, ताकि वे अपने समय को सभी कार्यों हेतु बांटकर काम करें। फिर भी आशा यह है कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम ही एक दिन इस नव सांस्कृतिक उपनिवेशवाद के खिलाफ सबसे कारगर हथियार साबित होगा।दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।