सह शिक्षा पर हिंदी निबंध | Coeducation Essay in Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम सह शिक्षा इस विषय पर निबंध जानेंगे। प्रस्तावना-समाज एवं शिक्षा हमेशा आपस में सम्बंध रखते आये हैं, क्योंकि समाज की पूर्ति शिक्षा के माध्यम से ही होती है। संक्षेप में कहा गया है कि शिक्षा एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा समाज अपनी आकांक्षाओं को स्वरूपों में ढालता है।
पुरुष एवं नारी की सहकारिता एवं शिक्षा सामाजिक व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिये पुरुष एवं नारी दोनों के मध्य सहकारिता होना आवश्यक है। सामाजिक संस्था; जैसे-परिवार चलाने के लिये पुरुष एवं नारी (स्त्री) में सहकारिता की भावना आवश्यक है,
भारतीय समाज का एक कथन यह भी है कि-“गृहस्थी की स्त्री व पुरुष पहिये के समान कार्य करते हैं अतः समाज में स्त्री-पुरुष गाड़ी के पहियों के समान हैं, अगर एक पहिया भी हट जाये तो परिवार नामक गाड़ी व्यर्थ है।
(1) भारतीय समाज में नारी का स्थान आजकल के युग में नारी पुरुषों से हर क्षेत्र में होड़ ले रही हैं। एक प्रकार से इन विचारों को लेकर चलना भारतीय समाज के विकास में बाधक है विशेषतः स्वतन्त्रता युग में स्त्री शिक्षा पर ध्यान दिया गया जबकि पराधीन भारत में नारी शिक्षा में बहुत कम रुचि ली जाती थी।
अतः सदियों के पिछड़ेपन और जड़ता से मुक्ति के लिये समकालीन शिक्षा का महत्त्व और भी बढ़ गया है। पिछले डेढ़ सौ वर्षों में स्त्रियों की शिक्षा में एक असाधारण विकास हो गया है जो आज के युग में जीवन की एक सर्वाधिक स्पष्टता दर्शाता है।
(2) सह-शिक्षा अधिक लोकप्रिय नहीं भारतीय समाज में यौन विभेदों की परिस्थितियों को महत्त्पूर्ण स्थान दिया जाता है। लड़के-लड़कियों को स्कूल, कॉलिजों में परस्पर मिलते-जुलते देखकर लोग उन पर गलत व्यंग्य निकालते हैं एवं उन्हें शक की नजरों से देखते हैं तथा इसे आचरणहीनता बताते हैं।
आजकल नारी पुरुष के समरूप है। अगर भारतीय समाज में नारी को पूर्ण रूप से सहशिक्षा देना नहीं स्वीकार किया तो हो सकता है, दूसरे देशों के मुकाबले भारत हर क्षेत्र में ही पिछड़ा रह जाये।
प्रश्न उठता है कि नारी शिक्षा समाज में इतनी लोकप्रिय क्यों नहीं जितनी कि पुरुष शिक्षा? अधिकतर सिनेमा, उपन्यासों में पश्चिमी पक्षों का ही वर्णन किया जाता है जो कि पुरुष एवं स्त्री मिलन के नकारात्मक पक्ष हैं, जो सामाजिक कुरीतियों को बढ़ावा देने के साथ-साथ समाज में आचरणहीनता दर्शाते हैं। महत्त्वपूर्ण भूमिका के ज्ञान के अभाव के कारण भी भारतीय समाज में सहशिक्षा अधिक लोकप्रिय नहीं हो पा रही है।
(3) सहशिक्षा असम्भव-भारत को आजादी मिलनोपरान्त नारी-शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया। इसमें भी एक प्रणाली आरम्भ की गयी जिसे सहशिक्षा का नाम दिया गया। सहशिक्षा ऐसी प्रणाली है जिसमें लड़के एवं लड़कियाँ एकसाथ शिक्षा प्राप्त करते हैं।
आजकल भी बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों, इंजीनियरिंग कॉलेजों एवं मेडिकल कॉलेजों में सह-शिक्षा की पूर्ण व्यवस्था है, परन्तु लड़कियों के परिजनों को यह पसन्द नहीं कि उनकी लड़की लड़कों के साथ पढ़ें वे अपनी लड़कियों को महिला विद्यालयों में प्रवेश दिला देते हैं जहाँ उनकी उच्च शिक्षा असम्भव है, अतः परिजनों के विचारों से तो सह-शिक्षा असम्भव ही है।
(4) सह-शिक्षा बिना जीवन में अकेलापन आज के रूढ़िवादी समाज की बेड़ियों को काटने के लिये सह-शिक्षा एक मात्र साधन है। समाज में रहने के साथ-साथ सह-शिक्षा भी आवश्यक हो गई है। लड़के एवं लड़कियों को शुरू से न मिलने पर उनमें कुण्ठा जन्म लेती है।
युवावस्था में आने पर अनेक समस्याओं का जन्म होता है, साथ ही यौन दमन की कुण्ठा मानसिक विकास को भी प्रभावित कर उसके व्यक्तित्व को दोषपूर्ण बना देती है। इसी प्रकार से सह-शिक्षा बिना जीवन अधूरा-सा दिखाई पड़ता है। जीवन में अकेलापन-सा महसूस होता है। अतः व्यक्ति के अच्छे कल एवं विकास के लिए सह-शिक्षा प्रचलन का कार्य करती है।
(5) सह-शिक्षा एवं यौन ज्ञान में सम्बन्ध भारत में यौन चर्चा एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है, जैसे कि किशोरावस्था में आने पर युवा वर्गों को यौन का ज्ञान न होने पर सह-शिक्षा उनके लिये अभिशाप सिद्ध होती है। यदि पुरुष एवं नारी को यौन शिक्षा के बारे में पहले से ही ज्ञान हो तो उन्हें सह-शिक्षा का सहारा की न लेना पड़े।
युवक एवं युवतियां प्रेम और सम्बन्धों में पड़ने के बजाय मैत्री भाव में पड़ जाते हैं जिस कारण सह-शिक्षा का वे कोई लाभ नहीं उठा पाते। अतः सह-शिक्षा के पठन के साथ-साथ विद्यालयों में यौन शिक्षा के पठन की व्यवस्था भी होनी आवश्यक है। जिस कारण युवा वर्ग को शिक्षा के साथ अपने परस्पर दायित्व भी सीखने को मिलेंगे।
(6) सह-शिक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण-सह-शिक्षा आज के युग में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका रखती है। जगह-जगह इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज आदि में सह-शिक्षा का प्रबन्ध है जहाँ पुरुष एवं स्त्री दोनों ही अपनी शिक्षा ग्रहण करते हैं एवं इन कॉलेजों से ही वे आगे चलकर अपनी जीवन की राहज बना लेते हैं एवं युवा वर्ग खास तौर पर सह-शिक्षा को ही अधिक पसन्द करते हैं, क्योंकि सह-शिक्षा एक भारत का महत्त्वपूर्ण अंग हो गई है।
उपसंहार-सामाजिक जीवन में सह-शिक्षा लेने के साथ-साथ मनुष्य को अपने गृहस्थ के जीवन के बारे में पहले से अंदाज हो जाता है आगे क्या होगा? साथ ही जो झिझक यौन भेदों में उनमें पायी जाती है वह भी सह-शिक्षा अत्यन्त आवश्यक है। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।