दहेज एक कुप्रथा हिंदी निबंध | Dahej Ek Kupratha Essay In Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम दहेज एक कुप्रथा इस विषय पर निबंध जानेंगे। प्रस्तावना-भारत देश में आज भी कुछ कुप्रथायें जीवित हैं। आधुनिक समाज इन कुप्रथाओं से इस प्रकार लगाव रखता है जिस प्रकार मनुष्य भोजन के बिना जीवित नहीं रह सकता। कहने के लिये तो हम 21वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं, परन्तु अपने विचारों के क्षेत्र में हम पीछे ही रह गये हैं।
यह सत्य है कि पहले सती प्रथा, बेमेल विवाह एवं बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं को खत्म कर नारी को ऊँचा ओहदा दिया गया परन्तु आधुनिक युग में दहेज की जड़ें काफी फैल चुकी हैं।
आजकल के युग में दहेज सम्बन्धी घटनायें सुनने को मिलती हैं। जिनमें दहेज हत्या तो एक आम बात हो गयी है। आखिरकार ये सब क्यों होता है? इसके पीछे कौन जिम्मेदार है? सरकार इस क्षेत्र में कोई कठोर कानून क्यों नहीं बनाती है?
(1) दहेज द्वारा धनी बनने की लालसा वास्तविक तौर पर दहेज के पीछे धनी बनने की लालसा वर पक्ष को अधिक ही रहती है। दहेज मिलने पर वह एक ही झटके में अमीर बन जाते हैं। भौतिक वस्तुयें वर पक्ष को धनी बनने के लिये दहेज जैसे अपराध के लिये प्रेरित करती हैं। जिसके फलस्वरूप उनमें एक कुण्ठा जाग्रत होती है।
इस कुण्ठा को शान्त करने के लिये वह दहेज का सहारा लेते हैं। शादी का मतलब आजकल सुख-सम्पन्न गृहस्थी से नहीं रह गया है, अपितु घर भरने से रह गया है।
(2) दहेज का भयानक रूप-दहेज का रूप इतना भयानक हो चुका है कि इस रूप की कल्पना आज से सौ वर्ष पहले भी मनुष्य नहीं कर सकता। जब वर पक्ष पर्याप्त दहेज पाने के बाद भी अपना मुँह बंद नहीं करता और दहेज प्राप्त करने के लिये वधू से उसके माता-पिता पर दबाव डलवाता है तो माता-पिता वधू की की बातों पर ध्यान नहीं देते, तो वधू के पास आत्महत्या के सिवाय कोई रास्ता नहीं रह जाता है।
अभी तक दहेज के मामलों में वर पक्ष को ही दोषी ठहराया जाता है। यह सत्य है कि दहेज प्रथा को बढ़ाने के पीछे वर पक्ष का ही हाथ होता है; किन्तु इस कुप्रथा को बढ़ाने के पीछे कन्या पक्ष का भी कम हाथ नहीं होता। प्रायः कन्या पक्ष अपने से ऊँचे और धनी परिवार में कन्या का रिश्ता करने के इच्छुक रहते हैं।
अपनी इस इच्छा को अंजाम देने के लिये वे स्वयं ही दहेज का प्रस्ताव रख देते हैं। जैसा कि आपने देखा होगा कि क्लर्क पिता भी अपनी कन्या के लिये इंजीनियर या डॉक्टर लड़का आदि तलाश करता है। चाहे उनके खानदान में भले ही कोई इस पद पर न हो लेकिन अपने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये वह कई गलत निर्णय ले बैठता है, जिससे जीवन भर माता-पिता तो पछताते ही हैं साथ में लड़की को स्वयं भोगने के लिये छोड़े देते हैं।
आजकल विवाह तो एक व्यवसाय का रूप ले चुका है। बहुत-से कन्या पक्ष वाले वर पक्ष को महँगे एवं प्रचलित सामान देने में वे अपनी शान समझते हैं। इससे समाज के अन्य लोगों में भी दहेज लेने व देने की लालसा जाग्रत होती है, जो कि समाज के लिये घातक सिद्ध होती है।
इन सबका मुख्य कारण है स्त्री जाति की पराधीनता, जिसने हमारे समाज की यह दशा कर दी है। यही कारण है कि कन्या पक्ष अपने को सदैव हीन ही समझता रहता है। लड़की को वधू के रूप में अपनाकर वर पक्ष लड़के को दामाद के रूप में स्वीकार करके उस पर कोई एहसान करते हैं, बल्कि वे दोनों पक्ष तो एक सुखद समझौता जिसे दो व्यक्ति का जीवन भर के लिये स्वीकार करते हैं। जिसमें न कोई ऊँचा होता है न ही कोई नीचा।
(3) दहेज के कारण बढ़ते अपराध दहेज एक कुप्रथा है इससे आज का मानव अत्यधिक प्रभावित हो चुका है। दहेज के कारण अनेकों अपराध बढ़ते जा रहे हैं जिनमें दहेज हत्या मुख्य कारण है। दहेज हत्या एक महापाप है, क्योंकि इसमें वधू पक्ष वधू एवं वर के लिये अपनी इच्छा से सामान देता है, परन्तु फिर भी वर पक्ष की हवस बढ़ती रहती है वह गाड़ी, टी०वी०, स्कूटर आदि की माँग वधू पक्ष से शादी के बाद करता है।
वधू अपने माता-पिता के पास वर पक्ष की माँग रखती है। वधू पक्ष गरीबी के कारण वह सामान उपलब्ध नहीं करा पाता और वर पक्ष वधू को जलाकर या फाँसी देकर मार देता है इसी तरह दहेज न देने वाला वधू पक्ष वधू को वर पक्ष के यहाँ (ससुराल) भेज देता है।
वर पक्ष उस वधू की बीमा कराकर उसे मार कर अपने दहेज की वसूली कर लेते हैं। सरकार को इन अपराधों के खिलाफ कदम उठाना चाहिये। (4) दहेज नियन्त्रण हेतु उपाय-दहेज नियन्त्रण हेतु आवश्यकता इस बात की है कि कन्या पक्ष हीन भावना से एकदम मुक्त हो।
वर पक्ष से उनका व्यवहार नम्र एवं श्रेष्ठ होना तो चाहिये ही अपितु खुशामद अथवा लेन-देन की भावना नहीं होनी चाहिये, क्योंकि इससे वर पक्ष कन्या पक्ष को ऊँचा समझकर उससे दहेज की माँग कर ही बैठता है। आगे चलकर वर पक्ष विवाह के समय बाईक, स्कूटर, टी०वी०, कूलर आदि की माँग करे कि इससे पहले ही कन्या पक्ष को स्वयं पर नियन्त्रण रखना चाहिये।
आजकल केवल माता-पिता ही नहीं कन्या भी दहेज के मामले में हस्तक्षेप कर इस कप्रथा को और अधिक बढ़ावा दे रही है। कुछ कन्यायें विवाह की बेला में मग्न होकर पिता को पिता न समझकर एक मोटी आसामी समझने लगती हैं। ये कन्यायें अक्सर पिता के लाड-प्यार का नाजायज फायदा उठा लेती हैं।
इसी प्रकार से कुछ लड़कियाँ दहेज के एकदम खिलाफ होती हैं। यह सत्य हे कि पिछले कुछ दशकों से स्त्रियों में काफी बदलाव आया है। इस कुप्रथा को रोकने के लिये लड़कियों को दहेज के खिलाफ कदम उठाने के साथ-साथ लड़के वालों को भी कुछ विरोध करना चाहिये।
दहेज निवारण हेतु आर्य समाज रीतियों का सहारा लेना चाहिये। स्थान-स्थान पर प्रदर्शनी, नुक्कड़ नाटकों आदि का प्रदर्शन करना चाहिये। “दहेज एक कुप्रथा है इसे बन्द करो" के नारे लगाकर लड़के एवं लड़कियों दोनों को ही रैलियाँ निकालनी चाहियें। दहेज जैसी कुप्रथा को रोकने के लिये सरकार को कड़े-से-कड़े कानून बनाने चाहिये।
उपसंहार-जैसा कि आप सभी जान गये होंगे कि दहेज एक अपराध है, एक कुप्रथा है-इसे रोकने के अन्य उपाय हैं लेकिन इसे रोकने के लिये लड़के एवं लड़कियों दोनों को ही आन्दोलन करना होगा, क्योंकि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती।
दहेज कुप्रथा बढ़ाने में एक तरफ वर पक्ष का हाथ होता है तो दूसरी तरफ कन्या पक्ष का भी हाथ होता है अतः इसे रोकने के लिये आन्दोलन करने ही होंगे, नियम बनाने ही होंगे एवं स्वयं पर भी दहेज के प्रति नियन्त्रण रखना होगा।दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।