एक डाकू की आत्मकथा हिंदी निबंध Daku ki atmakatha essay in hindi

 

एक डाकू की आत्मकथा हिंदी निबंध Daku ki atmakatha essay in hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम  एक डाकू की आत्मकथा इस विषय पर निबंध जानेंगे। इसमें शक नहीं कि किसी समय मैं एक खूखार डाकू था। मेरा नाम था -डाकू गब्बर सिंह। यह नाम सुनते ही लोगों की जान काँपने लगती थी। बरसों तक इलाके में मेरा आतंक छाया रहा। आज यह बात नहीं है। पिछले सात वर्षों से मैं जेल में हूँ। आगे की राम जाने।


कोई व्यक्ति पैदाइशी डाकू नहीं होता। मैं भी नहीं था। अच्छे-भले घर का लड़का था। मन में पुलिस-इन्स्पेक्टर बनने के अरमान थे। गाँव में एक ठाकुर से जमीन के बारे में हमारा झगड़ा चल रहा था। उसने मेरे पिताजी का कत्ल करवा दिया। इस कुकृत्य से मेरा खून खौल उठा।


मेरे मन में बदला लेने की आग भड़क उठी। मैंने बंदूक चलाना सीख लिया और कुछ ही समय में मैं एक अच्छा निशानेबाज बन गया। एक दिन मौका देखकर मैंने उस ठाकुर की हत्या कर दी। अब गाँव में रहना मुश्किल था। इसलिए पुलिस से बचने का और कोई रास्ता न देखकर मैंने बीहड़ की राह पकड़ी और वहाँ एक डाकू-गिरोह का सदस्य बन गया।


डाकू बनकर जीना कोई खेल नहीं है। शुरू-शुरू में मुझे बड़ी परेशानी हुई। चौबीसों घंटे पुलिस का डर! कभी-कभी तो आधा खाना छोड़कर भागना पड़ता। कई बार हमारे गिरोह की पुलिस से मुठभेड़ हुई। ऐसी परिस्थिति में मेरा अचूक निशाना चार-पाँच पुलिसवालों के प्राण अवश्य ले लेता। 


मैंने कई श्रीमंतों के यहाँ डाके डाले और बहुत सारा धन लूट लिया। कुछ ही समय में मैं अपने गिरोह का सरगना बन गया। मैंने और मेरे साथियों ने पुलिस की नाकों में दम कर दिया। सारे प्रदेश में मेरे नाम की धाक जम गई।


डाकू बनकर मैंने अनेक हत्याएँ कीं। मैंने कई सुहागिनों से उनका सुहाग छीना, कई बच्चों से उनके पिता छीने और कई बहनों से उनके भाई सदा के लिए जुदा कर दिए। मैंने कुछ नेक काम भी किए। मैंने कई गरीब लड़कियों की शादियाँ करवाईं, कई मजदूरों को उनके मालिकों के जुल्मों से छुड़ाया और बहुत-से लोगों के आपसी विवाद सुलझाए। 


मैंने औरतों के साथ कभी बदसलूकी नहीं की। आज से सात वर्ष पहले एक लोकप्रिय नेता हमारे पास आए। उनकी सलाह मानकर मैंने अपने गिरोह के साथ इस प्रांत के मुख्यमंत्री के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। तब से मैं इस जेल में हूँ।


जेल में मेरा जीवन बिलकुल बदल गया है। मैं रोज धार्मिक ग्रंथों का पठन करता हूँ। खतरनाक कैदियों को समझा-बुझाकर शांत करने में जेल के सिपाहियों की मदद करता हूँ। सुनता हूँ, सरकार हमारी सजा कम करने पर विचार कर रही है।


मेरी इच्छा है कि मैं जेल से छूटकर समाज में मिलकर रहूँ और दूसरे डाकुओं को इंसानियत के रास्ते पर लाने की कोशिश करूँ। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।