एकता का महत्व पर हिंदी निबंध | Ekta ka Mahatva Hindi mai
नमस्कार दोस्तों आज हम एकता का महत्व इस विषय पर निबंध जानेंगे। प्रस्तावना-मिलजुल कर कार्य करने की शक्ति को संगठन या एकता कहते हैं। संगठन (एकता) ही सब शक्तियों का मूल है। किसी भी परिवार, समाज व राष्ट्र की उन्नति संगठन पर निर्भर होती है।
संगठन वह शक्ति है, जिसके द्वारा निर्बल से निर्बल व्यक्ति भी अपने उद्देश्य में सफल हो जाते हैं। संगठन से ही संसार में सुख-समृद्धि तथा सफलता को प्राप्त किया जा सकता संगठन की आवश्यकता-प्रत्येक मनुष्य को संगठन की आवश्यकता कदम-कदम पर पड़ती है।
संगठन के द्वारा श्रमिक से लेकर पूँजीपति तक सुख तथा शांति प्राप्त कर सकता है। प्रायः बड़े-बड़े कारखानों व मिलों में इसी संगठन के बल श्रमिक अपनी माँगें मनवाने में सफल हो जाते हैं। यदि श्रमिकों में संगठन नहीं होता तो वे जालिम पूँजीपतियों के शिकार हो जाते।
अत: यह स्पष्ट है कि किसी भी संस्था का चाहे व छोटी हो या बड़ी, संगठन (एकता) के बिना काम नहीं चल सकता है। जो देश, जातियाँ तथा कुटुम्ब (परिवार) जितने अधिक संगठित रहे हैं, उनका उतना ही अधिक बोलबाला रहा है।
• संगठन की महत्ता-संगठन में बड़ी शक्ति होती है।संगठित सेना बड़े-से-बड़े शत्रु का सामना कर सकती है। छोटी-छोटी ईटों के मेल से एक बड़ा महल खड़ा हो जाता है। मधुमक्खियाँ मिलकर ही एक बड़ा छत्ता तैयार कर लेती हैं। यदि उनमें से कोई भी एक मक्खी यह कार्य करना चाहे तो वह कदापि नहीं कर सकती। किसी ने सच ही कहा है"अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है।"
संगठन के अभाव से हानियाँ-संगठन की कमी से हानियाँ ही हानियाँ हैं। इतिहास इस बात का साक्षी है कि संगठन के बिना अनेक बड़े-से-बड़े राष्ट्र मिट्टी में मिल गए थे। भारतवर्ष की परतंत्रता का मूल कारण भी हमारे संगठन की कमी था। अंग्रेज़ों ने हममें फूट डालकर हमें परतंत्र बना लिया था।
जब हम संगठित होकर खड़े हुए तो हमारा देश भारत स्वतंत्र हो गया। यदि भारतीय राजाओं में पारस्परिक वैमनस्य न होता और वे संगठित होते तो सैकड़ों वर्ष तक भारत परतंत्र न बना रहता। आप कन्नौज नरेश जयचन्द और दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज को ही ले लीजिए।
इन दोनों ने आपसी फूट के कारण अपने राज्यों को ही नहीं खोया, अपितु थोड़े समय में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए। यदि आज के युग में हिन्दू-मुस्लिम संगठन होता तो भारत के विभाजन के समय इतना खून-खराबा क्यों होता ?
उपसंहार-संगठन के द्वारा छोटे-से-छोटा राष्ट्र भी उन्नति के शिखर पर पहुँच सकता है। इसके द्वारा हम अपने बाह्य तथा आन्तरिक शत्रुओं का सामना कर सकते हैं। अतः हमें अपने पारिवारिक हित के लिए, अपने समाज तथा देश के हित के लिए सभी भेदभावों को भुलाकर संगठित होकर रहना चाहिए। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।
शब्दार्थ-मूल = जड़। निर्बल = कमजोर। शिलाओं = पत्थरों। परतंत्रता = गुलामी। पारस्परिक = आपसी। वैमनस्य = दुश्मनी, बैर-भाव। (शिखर = चोटी।