बुढ़ापा एक अभिशाप हिंदी निबंध | essay on budappa ek abhishap in hindi.

 

बुढ़ापा एक अभिशाप हिंदी निबंध | essay on budappa ek abhishap in hindi.

नमस्कार  दोस्तों आज हम  बुढ़ापा एक अभिशाप इस विषय पर निबंध जानेंगे। खेलता-कूदता, मचलता बचपन सबको प्यारा लगता है। मस्त जवानी की शान ही निराली होती है। परंतु कंबख्त बुढ़ापा किसी को अच्छा नहीं लगता। अच्छा लगे या न लगे, बुढ़ापे से कोई नहीं बच सकता। बुढ़ापे के अभिशाप को झेलना ही पड़ता है।


बुढ़ापा शरीर की दुर्दशा कर डालता है। सिर के सुंदर काले बालों पर सफेदी की ब्रश फिर जाती है। जवानी में मीलों तक मजे से चलनेवाले पैर बुढ़ापे में थोड़ी दूर चलने पर ही थक जाते हैं और साँस फूलने लगती है। किसी-किसी के तो हाथ-पैर काँपने लगते हैं। आँखों से भी धुंधला दिखाई देता है। 


बुढ़ापा सुनने की शक्ति भी छीन लेता है। दाँत भी जवाब देने लगते हैं। शरीर की चमड़ी में सिकुड़नें पड़ जाती हैं। बुढ़ापे का पतझर जीवन की सारी बहार हमेशा के लिए छीन लेता है। बुढ़ापा आदमी के दिमाग पर भी अपना असर डालता है। दिमागी ताकत कमजोर होती जाती है। स्मरणशक्ति साथ नहीं देती। 


जाने-माने व्यक्तियों के नाम और पते याद नहीं आते। कंठस्थ की हुई कविताएँ और सुभाषित, पता नहीं किस भूल-भुलैया में गुम हो जाते हैं। बुढ़ापा आदमी को परवश बना देता है। बेटे-बेटियों और पोते-पोतियों के सहारे ही बूढ़े की जिंदगी चलती है। "पराधीन सपने हुँ सुख नाहीं" के अनुसार बूढ़े व्यक्ति को अपनी हर चीज के लिए दूसरों का मुँह ताकना पड़ता है।


परिवार में उसकी पसंद-नापसंद की परवाह शायद ही कोई करता हो। बेचारे बूढ़े को तो परिवारवालों की मर्जी के अनुसार ही चलना पड़ता है। बैंक में उसकी कुछ जमा-पूँजी हो तब तो ठीक, नहीं तो बात-बात में उसे अपमान के कड़वे यूंट पीने पड़ते हैं। 


वह भले कम ही खाता हो, फिर भी उस पर ताने कसे जाते हैं। प्रायः बूढ़ा व्यक्ति परिवार के लिए एक बोझ-सा बन जाता है। उसकी बीमारियाँ बुढ़ापे का असर मानकर टाल दी जाती हैं। नई पीढ़ी को बूढ़ों की बातें विषबुझे तीर जैसी लगती हैं। नाती-पोतों को दादा-दादी और नाना-नानी के विचार दकियानूसी लगते हैं। 


वे उन्हें बकवास मानकर टाल देना उचित समझते हैं। अपनी उपेक्षा बूढ़ों को बहुत कष्ट देती हैं, परंतु घुट-घुटकर जीना ही अधिकतर बूढ़ों की नियति बन जाती है। ऐसे में भगवान के नाम का स्मरण ही उन्हें कुछ सहारा-सांत्वना देता है। अब तो वृद्धाश्रमों का जमाना आ गया है। बूढ़े माँ-बाप को वृद्धाश्रमों में भेजकर बेटे अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं। 


छोटे-छोटे नाती-पोतों के सान्निध्य का रस भी बूढ़ों से छीन लिया जाता है। बड़े-बूढ़ों को उचित आदर-मान देना चाहिए। उनके अनुभवों से लाभ उठाया जाए, उनके ज्ञानकोश को व्यर्थ न जाने दिया जाए। ऐसा होने पर बूढ़ों के लिए बुढ़ापा अभिशाप नहीं, वरदान बन जाएगा। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए।