सांप्रदायिकता पर हिंदी निबंध | Essay on Communalism in Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम सांप्रदायिकता इस विषय पर निबंध जानेंगे। प्रस्तावना-भारत धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है। यहाँ विविध धर्मो, जातियों, सम्प्रदायों भाषाओं, विचारों और विश्वासों वाले लोग रहते हैं। इन सभी को संविधान में समान अधिकार प्राप्त हैं।
हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी आदि विभिन्न धर्मों को मानने वाले इस देश के नागरिक व्यक्तिगत रूप से अपने-अपने धर्म के अनुसार पूजा-पाठ आदि धार्मिक कृत्यों के अनुष्ठान में स्वतन्त्र हैं। आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक आदि सभी स्तरों पर उनमें कोई भेद-भाव नहीं है।
जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में विविधता में एकता' की इस विशेषता पर सभी भारतीय गर्व कर सकते हैं। साम्प्रदायिकता से अभिप्राय-साम्प्रदायिकता का अर्थ उस संकीर्ण भावना या विचारधारा से है जो केवल अपने सम्प्रदाय का हित चाहती है तथा दूसरे सम्प्रदाय के हितों की उपेक्षा करने के लिए भी तैयार रहती है।
राष्ट्र के प्रति व्यापक निष्ठा के मुकाबले किन्हीं क्षुद्र, संकीर्ण निष्ठाओं के जगाने को साम्प्रदायिकता, का नाम दिया जा सकता है। ये संकीर्ण निष्ठाएँ हैं-धर्म पर आधारित साम्प्रदायिक समस्या, जातिउपजाति की समस्या, प्रादेशिक भावनाओ की समस्या!
साम्प्रदायिक लोगों में राष्ट्र-निष्ठा न होकर संकीर्ण जातीय, प्रान्तीय अथवा भाषायी निष्ठा होती है। हरिजन-सवर्ण झगड़े, जाट-नॉन जाट, ब्राह्मण-नॉन ब्राह्मण लड़ाइयाँ, असम में विदेशी समस्या, नागालैण्ड तथा केरल में हिन्दू-ईसाई मारधाड़, पंजाब में सिख उग्रवादियों की धर्मयुद्ध-घोषणा, सम्पूर्ण राष्ट्र में हिन्दू-मुस्लिम-भिड़न्त
भारत के साम्प्रदायिक विष-वृक्ष की प्रमुख शाखाएँ हैं, जिनके प्रदूषण से भारत का वायुमण्डल विषाक्त हो चुका है। इस विषाक्त वायुमण्डल में न जीना सरल है, न सुरक्षा संभव है। साम्प्रदायिकता राष्ट्रीय एकता की प्रबल शत्रु है। धर्म-निरपेक्ष प्रजातान्त्रिक देश के लिए यह सबसे बड़ा अभिशाप है।
साम्प्रदायिकता के विभिन्न रूप-आज भारत में साम्प्रदायिकता का दानव विकराल रूप से अट्टहास कर रहा है। विघटनकारी तत्त्व इस देश की एकता को खण्डित करने पर तुले हुए हैं। देश में कहीं भाषायी साम्प्रदायिकता है तो कहीं जात-पांत की साम्प्रदायिकता है।
कहीं प्रान्तीयता और क्षेत्रीयता की भावना विकट रूप धारण कर रही है। और कहीं धर्म के नाम पर दंगे-फसाद हो रहे हैं। साम्प्रदायिकता की आग कभी अलीगढ़, मेरठ, बरेली, मुरादाबाद, सहारनपुर आदि मुस्लिम-बहुल नगरों में फैलती है। और वहाँ लूटमार की हिंसक घटनाएँ होती हैं।
जम्मू और कश्मीर में भी साम्प्रदायिक तत्त्व पनप रहे हैं। यह साम्प्रदायिकता दो विभिन्न धर्मों के लोगों में ही नहीं अपितु एक ही धर्म के लोगों में भी दिखाई देती है। शिया और सुन्नी एक ही इस्लाम के उपासक होने पर भी एक-दूसरे की जान के दुश्मन हो जाते हैं।
इसाइयों में कैथोलिक और प्रोटेस्टेण्ट विचारधारा के अनुयायी भी आपस में टकराव रखते हैं। हिन्दुओं में भी एक वर्ग (जाति) दूसरे वर्ण का विरोधी रहता है। साम्प्रदायिकता और राजनीति-भारतीय इतिहास साक्षी है कि सत्ता की राजनीति साम्प्रदायिकता के सम्मुख घुटने टेकती रही है, नाक रगड़ती रही है।
आत्मसमर्पण करती रही है। स्वतन्त्रता से पूर्व देश के कर्णधारों ने किस निर्लज्जता से मुस्लिम उग्रवाद के सामने नाक रगड़ी, जिसके कारण न केवल लाखों हिन्दुओं के जीवन एवं सम्पत्ति का विनाश हआ, अपितु साम्प्रदायिक आधार पर देश का विभाजन भी स्वीकार करना पड़ा।
देश गणतन्त्र राष्ट्र बना। वोटों की मोहताज भारतीय राजनीति ने मुस्लिम साम्प्रदायिकता का सहारा लिया। उनको भारतीय जीवन धारा से अलग रखा अर्थात उन पर हिन्दू कोड बिल, विवाह की आयु-सीमा तथा समान शिक्षा-उपासना कानून लागू नहीं किए गए। अतः उनकी पृथक् पहचान बनी रही। परिणामतः आज मुस्लिम साम्प्रदायिकता पनप रही है।
वे हिंसा भड़काते हैं, लड़ाई-झगड़े होते हैं, 'पाकिस्तान जिन्दाबाद' के नारे लगते हैं और भारत-सरकार आँख, कान और मुँह बन्द करके बैठी रहती है। साम्प्रदायिकता के पनपने, फलने-फूलने का मूल कारण है, भारतीय राजनीति। अल्पसंख्य कों के वोट प्राप्त कर सत्ता हथियाने के लोभ में वह अनचाहे इसे प्रोत्साहित करती है तथा संरक्षण प्रदान करती है।
साम्प्रदायिकता के दुष्परिणाम-वर्तमान काल में भारत में साम्प्रदायिकता का विषय अत्यन्त तीव्रगति से फैल रहा है। विभिन्न सम्प्रदाय के लोगों में पारस्परिक विरोध की भावना प्रबल होती जा रही है। विरोध की यह भावना हत्या, आगजनी, लूट-खसोट और दंगों के रूप में प्रकट हो रही है। और अपने पीछे भयंकर विनाश, अनाथ बच्चे, विधवा औरतें, जले हुए मकान और ध्वस्त दुकानें छोड़ जाती है।
अभी कुछ वर्ष पूर्व यह साम्प्रदायिकता मन्दिर, मस्जिद विवाद के रूप में अपने भयंकर रूप में सामने आई है जिसने पूरे देश के जन-मानस को झकझोर कर रख दिया है। अयोध्या तथा देश के अन्य भागों में इस विवाद को लेकर भयंकर दंगे हुए।
इन दंगों में हजारों लोग देश के विभिन्न भागों में पुलिस की गोली अथवा विभिन्न सम्प्रदाय के लोगों के द्वारा एक दूसरे के हाथों मारे गए। करोड़ों रुपए की सम्पत्ति अग्नि की भेंट चढ़ गई। अनेक बच्चे अनाथ हो गए, स्त्रियों के सुहाग उजड़ गए। इसी साम्प्रदायिकता के कारण अनेक मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे आदि पूजास्थल तोड़े गए।
साम्प्रदायिकता: निराकरण के उपाय-साम्प्रदायिकता राष्ट्र विरोधी तत्त्व है। यह उस भयंकर विष के समान है जो राष्ट्र के शरीर में व्याप्त होकर सम्पूर्ण राष्ट्र को निर्जीव बना सकती है, अत: विष का उपचार आवश्यक है। देश के कर्णधारों को विशेष रूप से सजग रहने की आवश्यकता है।
उन्हें अपनी सूझ-बूझ और राजनैतिक प्रभाव द्वारा साम्प्रदायिक तत्त्वों को समाप्त करने के लिए कटिबद्ध रहना चाहिए, आतंकवादी तत्त्वों को पनपने नहीं देना चाहिए। आज की राजनीति भी इस साम्प्रदायिकता के पनपने एवं फलने-फूलने का एक प्रमुख कारण है।
वोट प्राप्त करने की राजनीति साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहित करती है। अत: राजनीतिज्ञों और सरकार को साम्प्रदायिकता की रणनीति बनाम वोट प्राप्त करने की राजनीति के दलदल से बाहर निकलना चाहिए, अन्यथा इस देश में राष्ट्रीय एकता यथार्थ न होकर कल्पना मात्र रह जाएगी।
देश के नागरिकों को भी इस समस्या के समाधान के लिए सरकार को सहयोग देना चाहिए। स्थान-स्थान पर शान्ति और सदभावना के प्रसार के लिए समितियाँ गठित की जानी चाहिएँ जो गाँवों तथा नगरों में साम्प्रदायिक सद्भावना तथा राष्ट्रीय एकता का प्रचार करें। कवि की यह पंक्ति आज हमारा प्ररेणा-स्रोत होनी चाहिए
'मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।' उपसंहार-एक लम्बे संघर्ष तथा हजारों-लाखों लोगों के बलिदानों से प्राप्त स्वतन्त्रता की रक्षा करना प्रत्येक भारतवासी का कर्त्तव्य है। अत: उसे इन विघटनकारी साम्प्रदायिक तत्त्वों से लड़ना होगा, इन्हें खत्म करना होगा अन्यथा देश की स्वतन्त्रता और अखण्डता खतरे में पड सकती है। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।
शब्दार्थ- मनोवृत्तियों = मन की स्थितियों; संकीर्ण = संकुचित, तुच्छ; निष्ठाओं = विश्वासों; विकराल = उरावना, भयंकर, भयानक, भीषण; आत्म-समर्पण = अपने आप को सौंपना; कटिबद्ध = तैयार; विघटनकारी = तोड़-फोड़ करने वाला।