विकलांगता पर निबंध | Essay on Disability In Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम विकलांगता इस विषय पर निबंध जानेंगे। यह विभाजन गलत है कि अमुक व्यक्ति सामान्य है और अमुक व्यक्ति बाधित या विकलांग है। विकलांगता को आधार मानकर समाज के बहुत से लोगों को अलग-थलग कर देना या उन्हें उनके अधिकार से वंचित कर देना सामाजिक न्याय के विरुद्ध कार्य है।
समाज में लोगों को जो सामान्य नजर आते हैं, जिन्हें प्रत्यक्षतः बाधित या विकलांग नहीं कहा जा सकता वे भी कहीं-न-कहीं बाधित अथवा विकलांग हैं ही। थोड़े से ही लोग प्रतिभावान या विशेष बुद्धिमान होते हैं। अधिकतर लोग मन और शरीर से ठीक दिखने के बाद भी कहीं-न-कहीं विकलांगता से ग्रस्त होते हैं।
विकलांगों में कितने ही ऐसे लोग हैं जो व्यावहारिक जीवन में किसी-न-किसी काम में सामान्य की अपेक्षा तीव्रता से बाजी मार ले जाते हैं। इसीलिए सामान्य और विकलांग का वर्गीकरण एक वर्ग को अधिकार से वंचित करके दूसरे वर्ग को विशेष अधिकार देना है, जो कानून, न्याय, नैतिकता, मानवीयता आदि दृष्टियों से अनुचित है।
इसलिए विकलांगों के प्रति हमारा दृष्टिकोण बदलना चाहिए। विकलांगों को दया की नहीं बल्कि सहानुभूति की जरूरत है। उन्हें दान नहीं बल्कि अन्य मानव साथियों की भांति अधिकार चाहिए।
जीवन कदम-कदम पर बाधाओं से भरा है। इसलिए हमें अनेक परीक्षाओं और परीक्षणों से होकर गुजरना पड़ता है। हमें साहस, धैर्य और उत्साह के साथ काम करना होगा। उस स्थिति में समस्याएं हावी नहीं हो सकेंगी। विकलांगों के लिए सफलता का दरवाजा खटखटाते रहना अत्यन्त आवश्यक है।
इस सम्बन्ध में हेलन केलर का यह कथन बिल्कुल समीचीन है-"एक दरवाजा बन्द होता है तो दूसरा खुल जाता है। लेकिन हम प्राय: इतनी देर तक बन्द दरवाजे को देखते रहते हैं कि वह दरवाजा दिखाई नहीं देता जो हमारे लिए खुला हुआ है।"
उक्त कथन से यह स्पष्ट है कि हमारे लिए प्रगति के सारे दरवाजे बन्द नहीं होते और सच्चाई यह है कि सभी रास्ते सभी के सामने खुले नहीं रहते। अगर किसी के सामने कोई रास्ता बंद हो जाता है तो उसे दूसरे रास्ते की तलाश करनी चाहिए।
यही बात विकलांगों के बारे में लागू होती हैं। जैसे मूक (गूंगे) और बधिर (बहरे) के लिए सुनने और बोलने की शक्ति नहीं होने के बाद भी समाज में काम कर लेना और सम्मानित जिन्दगी जी लेना बहुत आश्चर्यजनक बात नहीं है। विकलांग उच्चतम शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और किसी भी क्षेत्र में ऊंचे स्तर तक जा सकते हैं।
अध्यापक, प्राध्यापक, डॉक्टर, कलाकार, इंजीनियर और साहित्यकार आदि बन सकते हैं। ऐसे उदाहरण हैं भी। इसलिए विकलांगता जीवन में बाधा तो बन सकती है लेकिन ऐसी बात नहीं कि वे कुछ कर ही नहीं सकते।विकलांगता दो प्रकार की होती है-1. शारीरिक, 2. मानसिक।
विकलांगता के कई स्तर होते हैं-1. पूर्ण विकलांगता, 2. अर्द्धविकलांगता, 3. सामान्य विकलांगता, । विकलांगता के कारण भी भिन्न-भिन्न हैं-1. जन्म से, 2. पोलियो जैसी बीमारी से, 3. दुर्घटना से, 4. युद्ध आदि कारणों से। जन्मजात विकलांगता का मुख्य कारण कुपोषण है। कुपोषण जन्म के बाद भी विकलांगता का आधार बनता है।
विकलांगता की संख्या में सबसे अधिक बढ़ोत्तरी अनेक प्रकार की दुर्घटनाओं के कारण होती है। उसके बाद रोग और युद्ध भी विकलांगता में वृद्धि करते हैं। इस प्रकार विकलांगों की संख्या में प्रत्येक वर्ष बढ़ोत्तरी होती रहती है। इससे हमारे सामने यह स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि विकलांगों की संख्या का हल दो प्रकार से किया जा सकता है1. जो लोग पहले से विकलांग हैं उनका पुनर्वास किया जाए।
2. पूर्वोक्त कारणों से होने वाली विकलांगता की संख्या को रोका जाए। क्योंकि कुपोषण, दुर्घटना, बीमारी और युद्ध को अवश्य ही रोका या कम किया जा सकता है। इनमें सरकार, समाज और व्यक्ति की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। सबसे अधिक कार्य ऐच्छिक संगठनों तथा ऐच्छिक कार्यकर्ताओं द्वारा अपेक्षित है और वस्तुत: सम्पन्न किया भी जाता है क्योंकि वे समाज-सेवा के लिए समर्पित होते हैं।
जन्मजात विकलांगता को रोकने के लिए गर्भवती मां को पोषाहार मिले और जन्म के बाद मां-बच्चे के लिए पोषाहार की व्यवस्था हो। जैसे विटामिन 'ए' की कमी के कारण बच्चे नेत्रहीन हो सकते हैं। अत: इसकी रोकथाम के लिए उन्हें पोषाहार उपलब्ध कराया जाए।
समाज कल्याण की ओर से इसकी व्यवस्था की गई है जिसका लाभ जरूरतमंद बच्चों को मिलना चाहिए। इसलिए उन सुदूरवर्ती क्षेत्रों में भी समाज कल्याण संस्थाएं चलाई जाएं, जहां वे अभी तक कार्य नहीं कर रही हैं। उनका कार्य क्षेत्र बढ़ाया जाए ताकि सभी जरूरतमंद उनसे लाभान्वित हो सकें।
इस व्यापक कार्य के लिए सेवा के प्रति संस्थाओं और व्यक्तियों का दायित्व बढ़ जाता है और समाज तथा सरकार के समन्वय से ही कुछ किया जा सकता है। रोगों से उत्पन्न होने वाली विकलांगता की रोकथाम भी की जा सकती है।जैसे-पोलियो, टायफाइड से बचाव के लिए रोग निरोधक टीके लगाए जा सकते हैं।
कुछ बीमारियों के टीके तो शिशु के जन्मते ही लगाए जाते हैं, जिससे यह बीमारी न हो। बच्चों के स्वास्थ्य की नियमित जांच, विशेष रूप से स्कूल पूर्व आय में बहुत आवश्यक है ताकि विकलांगता की रोकथाम हो सके। अगर बीमारी हो जाए तो सचमुच इलाज कराने पर ठीक हो सकती है।
उसके बाद अगर थोड़ी बहुत कमी रहे तो शिक्षण और प्रशिक्षण के बाद काम करने में समर्थ हो सकता है। सड़क आदि दुर्घटनाओं को तो बिल्कुल समाप्त नहीं किया सकता लेकिन संख्या में कमी की जा सकती है। उन घटनाओं में होने वाली विकलांगता को भी रोका जा सकता है।
विकलांगों को प्रायः घर-परिवार और समाज में अनुकूल वातावरण नहीं मिल पाता। उसके प्रति उपेक्षा का व्यवहार किया जाता है या दया दिखाई जाती है। यह मान लिया जाता है कि वे (विकलांग) कुछ नहीं कर सकते। अब तक के अनुभवों और अनुसंधानों से यह सिद्ध हो चुका है कि वस्तुस्थिति कुछ और ही है।
अधिकांश विकलांग ऐसे होते हैं, जो सार्थक कार्य कर सकते हैं और जीवन में सफल होकर समाज में अपनी भूमिका अच्छी तरह निभा सकते हैं। इस क्रम में बहुत कम लोग ऐसे बने रहते हैं जो कुछ भी नहीं कर सकते। अगर समाज यह चाहता है कि कम से कम लोग उस पर बोझ बनें तो विकलांगों की सार्थक भूमिका के लिए उन्हें तैयार करना होगा।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का विचार था-"विकलांगों को दया नहीं, सहानुभूति की जरूरत है। उन्हें दान नहीं बल्कि अपने अन्य मानव साथियों की भांति अधिकार चाहिए। यह समस्या केवल कानून से हल नहीं हो सकती। इसके लिए जनता के रवैये में परिवर्तन आवश्यक है।"
आज आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें समानता का अधिकार दिया जाए। उन्हें विकास के अवसर दिए जाएं। इस प्रकार उनकी क्षमता का उपयोग हो सकेगा और वे अवश्य अपना कौशल दिखाएंगे। अब विकलांगों की उपेक्षा नहीं की जा सकती। शिक्षण-प्रशिक्षण और अन्य क्षेत्रों में उन्होंने चुनौतियों को स्वीकारा है।
क्षमता और कार्य कुशलता के बल पर अपनी सार्थकता को प्रत्यक्ष कर दिया है। कहा जा सकता है कि समाज के नव निर्माण में विकलांगों की सार्थक भूमिका हो सकती है।
जिसके लिए सरकार कृतसंकल्प है और समाज अनेक ऐच्छिक संगठनों के माध्यम से उनको समर्थ बनाने के लिए बराबर प्रयत्नशील है। इन स्थितियों में निकट भविष्य में विकलांगों की स्थिति अवश्य बेहतर होगी और वे सामान्य लोगों के साथ-साथ सक्रियता से समाज को प्रगति के पथ पर ले जा सकेंगे।दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।