खाद्य सुरक्षा पर हिंदी निबंध | essay On Food Security In India In Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम खाद्य सुरक्षा इस विषय पर निबंध जानेंगे। खाद्यान्न नीति खाद्य सुरक्षा की सर्वमान्य परिभाषा विश्व-स्तर पर 1996 में विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन के दौरान रोम में जारी की गई। जिसके अनुसार, "खाद्य सुरक्षा वह स्थिति है जिसमें सब लोगों को अपनी आहार संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हर समय पर्याप्त सुरक्षित और पौष्टिक भोजन उपलब्ध हो और एक सक्रिय एवं स्वस्थ जीवन बिताने के वास्ते अपनी पसंद का ऐसा भोजन प्राप्त करना जो उनके लिए भौतिक एवं आर्थिक दृष्टि से संभव हो।"
व्यापक अर्थ में खाद्य सुरक्षा केवल खाद्यान्नों के वृहद भण्डारण से ही सम्बन्धित नहीं है, अपितु इसे निम्नलिखित अर्थों के संदर्भ में भी समझा जाना चाहिए। खाद्य-सुरक्षा से तात्पर्य खाद्यान्नों की उस उपलब्ध पर्याप्त मात्रा से है, जो आम व्यक्ति को चुस्त और सुस्वस्थ रखती है।
इसका सम्बन्ध सार्वजनिक वितरण प्रणाली से भी है, ताकि जन सामान्य को उसकी क्रय शक्ति के अनुरूप उचित मूल्य पर खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई जा सके। इसका सम्बन्ध लोगों की क्रय शक्ति से भी है, जिससे कि गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाला जनसमूह न्यूनतम वाजिब मूल्य पर आवश्यकतानुसार खाद्यान्न खरीद सके। खाद्य सुरक्षा का उद्देश्य हासिल करने के लिए सर्व-साधारण के लिए
रोजगार के पर्याप्त अवसर सृजित करना भी आवश्यक है, ताकि वे अपनी क्रय शक्ति बढ़ाकर अपने परिवार के लिए पर्याप्त खाद्य सामग्री की व्यवस्था कर सके। लोगों के पास पर्याप्त मात्रा में क्रय शक्ति का होना आवश्यक है। बिना पर्याप्त क्रय शक्ति के खाद्य सुरक्षा का कोई अर्थ नहीं है।
गुणवत्ता युक्त खाद्य सामग्री की समयानुसार पर्याप्त पूर्ति करना, जिससे कि लोग स्वस्थ जीवनयापन कर सकें तथा उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि हो और वे पौष्टिक आहार युक्त भोजन प्राप्त कर सकें। उनको उपलब्ध खाद्य सामग्री में पौष्टिक तत्त्वों की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए जिससे उनकी शारीरिक दक्षता में वृद्धि हो।
'खाद्य-सुरक्षा' एक दीर्घकालीन अवधारणा है अर्थात खाद्य सामग्री की वर्तमान में ही पर्याप्त मात्रा में पूर्ति नहीं होनी चाहिए वरन लम्बे समय तक उसकी समीचीन आवश्यकतानुसार व पौष्टिकता युक्त सामग्री भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए। भारतीय संदर्भ में खाद्य सुरक्षा का तात्पर्य जनसाधारण को उचित मूल्य पर खाद्य सामग्री की आवश्यक मात्रा उपलब्ध कराने से है, देश में खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भरता का उद्देश्य (खाद्य उत्पादन की दृष्टि से) प्राप्त कर लिया गया है।
किन्तु खाद्य सुरक्षा का लक्ष्य प्राप्त करना अभी कोसों दूर है। खाद्य सुरक्षा और खाद्य आत्मनिर्भरता एक दूसरे के पर्याय नहीं है। प्रारम्भ में खाद्य-समस्या-समाधान के लिए सरकार ने तीन प्रकार के उपाय मुख्य रूप से किए। पहला 1966 के बाद से सरकार ने तकनीकी महत्त्व को स्वीकार किया, सिंचाई की सुविधाओं के विस्तार पर अधिक बल, उन्नत किस्म के बीजों, उर्वरकों, कीटनाशक दवाओं आदि तकनीकी उपायों से खाद्यान्नों के उत्पादन को बढ़ाने में सहायता मिली।
दूसरा, विभिन्न राज्यों में जोतों की उच्चतम सीमा बंदी की गई। मध्यस्थों को समाप्त करने के लिए सभी राज्यों में कानून बनाए गए। परन्तु राज्य सरकारों की शिथिलता के कारण उत्पादन पर इसका विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। तीसरा, किसानों को उनकी फसल का अच्छा मूल्य देने के लिए 1968 में कृषि मूल्य आयोग गठित किया गया।
यह आयोग विभिन्न कृषि फसलों के लिए वसूली कीमतों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करता है। भारत की खाद्य सुरक्षा व्यवस्था में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। नियोजन काल में केन्द्रीय सरकार द्वारा खाद्यान्न उत्पादन एवं खाद्यान्न उपलब्धता में वृद्धि करने हेतु अनेक प्रयास किए गए, जिनमें निम्नलिखित उल्लेखनीय।
सिंचाई की सुविधा युक्त क्षेत्रों में उन्नत कृषि प्रौद्योगिकी के उपयोग के जरिये खाद्यान्न उत्पान एवं उत्पादकता में वृद्धि लाना। । खाद्यान्न उत्पादनों को न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करना ताकि उन्हें उत्पादन आधिक्य की स्थिति में कृषि मूल्यों में गिरावट से हानि वहन न करनी पड़े। । खाद्यान्नों के बफर स्टॉक को एक निश्चित स्तर पर बनाए रखना।कृषि मूल्यों में स्थिरता लाने का प्रयास करना।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये उचित मूल्य पर जरूरतमंदों को खाद्यान्न उपलब्ध कराना। साठ के दशक में खाद्यान्न उत्पादन वृद्धि के लिए किए गए सरकारी प्रयासों के कारण न केवल राष्ट्रीय स्तर पर खाद्यान्न आत्मनिर्भरता का उद्देश्य हासिल करने में हम सफल हो पाए हैं,
अपितु हमारा देश आज खाद्यान्न निर्यातक राष्ट्रों की श्रेणी में प्रविष्ट हो चुका है, किन्तु खाद्यान्न बाजार में सरकारी हस्तक्षेप के फलस्वरूप अनेक प्रतिकूल प्रभाव भी दृष्टिगोचार हुए हैं।न्यूनतम समर्थन मूल्य व संग्रहण मूल्य में वृद्धि तथा खाद्यान्न भण्डारण सम्बन्धी लागतों में तीव्र वृद्धि के कारण सामान्य उपभोक्ता की क्रय शक्ति की तुलना में खाद्यान्नों की कीमतों में तीव्रता से वृद्धि हुई है। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।