मेरा प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध | Essay on Goswami Tulsidas in Hindi

 

 मेरा प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध | Essay on Goswami Tulsidas in Hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम  मेरा प्रिय कवि तुलसीदास  इस विषय पर निबंध जानेंगे। विश्व वंद्य कवियों की कतार में मेरे प्रिय कवि महाकवि तुलसीदास सबसे आगे हैं।तुलसी की कला अद्वितीय है। उनकी प्रशंसा करना सूर्य को दीपक दिखाना है।


प्रायः महान विभूतियों का जन्म असाधारण परिस्थितियों में हुआ करता है। राम का जन्म तब हुआ था जबकि राजा दशरथ वृद्धावस्था में पहुंच चुके थे और वंश आगे न चलने की चिंता से खिन्न थे। भगवान श्री कृष्ण का जन्म बंदीगृह में हुआ था। वैसे ही तुलसीदास का जन्म उन दिनों हुआ जबकि सम्पूर्ण भारत यवनों के चरणों तले रौंदा जा रहा था।


हिन्दू जाति अपना भौतिक और आध्यात्मिक गौरव खो चुकी थी, सांस्कृतिक प्रकाश उससे कोसों दूर चला गया था। दुख का विषय है कि ऐसे मनीषी का जीवन-वृत्त भी आज भारतीय विद्वानों के बीच विवाद का कारण बना हुआ है। गोस्वामी जी का जन्म अति निर्धन सरयूपारीण ब्राह्मण कुल में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजापुर नामक गांव में हुआ था।


हिन्दी काव्य जगत में जिस उच्च आसन पर गोस्वामी जी आसीन हैं वहां तक अभी किसी की पहुंच नहीं हुई है। अपनी सर्वतोमुखी प्रतिभा द्वारा उन्होंने हिन्दी काव्य की प्रचलित सभी रचना शैलियों में राम चरित की सुधा-धारा प्रवाहित करके उनमें पूर्ण सफलता प्राप्त की है। 


हिन्दी के अन्य किसी कवि को इस प्रकार भिन्न-भिन्न शैलियों में रचना करते हम नहीं पाते। भाषा पर गोस्वामी जी का पूर्ण अधिकार है। काव्य की दोनों भाषाओं ब्रज और अवधी में उनकी काव्यश्री दिखाई पड़ी है। उक्त दोनों भाषाओं पर जैसा समान और विस्तृत अधिकार गोस्वामी जी का है, वैसा आज तक किसी अन्य कवि का नहीं देखा गया। 


सूर और जायसी जैसे श्रेष्ठ कवि भी केवल एक भाषा पर अधिकार रखते थे। सूर अवधी में लिख सकते थे न जायसी ब्रजभाषा में। गोस्वामी तुलसीदास जी अपने युग के प्रतिनिधि कवि हैं। तुलसी सगुण भक्ति काव्य की राम भक्ति धारा के प्रतिनिधि कवि हैं। 


भाव और भाषा दोनों पर उनका पूर्ण अधिकार है। यद्यपि उनकी भाषा अवधी है तथापि उन्होंने अपने युग में प्रचलित सभी भाषाओं से उपयुक्त शब्द लिए हैं। उन्होंने प्रचलित समस्त छन्दों में रचनाएं की हैं। उन्होंने अपने युग की सभी शैलियों में रचना करके यह सिद्ध कर दिया है कि उसमें काव्य-रचना की अपूर्व शक्ति है। 


उन्होंने चन्द के छप्पय, कबीर के दोहे, सूर के पद और गीत, जायसी के दोहे और चौपाई, रीतिकारों के कवित्तसवैये, रहीम के बरवै और ग्रामीणों के सोहर-सभी के अनुरूप काव्य रचना करके अपनी अपूर्व काव्य-प्रतिभा का परिचय दिया है।


बाह्य-दृश्य चित्रण की दृष्टि से भी गोस्वामी जी हिन्दी के अन्य कवियों से ऊंचे उठे हुए हैं। चित्रकूट के प्राकृतिक दृश्य का जैसा सजीव और मनोमुग्धकारी वर्णन उन्होंने किया है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। कविता के बाह्य अंग का जैसा सुन्दर रूप गोस्वामी जी की रचना में मिलता है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। 


उक्ति का अनूठापन, भाषा की विविधता, अलंकारों की छटा और रसों का परिपाक-सभी उनके काव्य सौंदर्य को बढ़ाने वाले हैं। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास का व्यक्तित्व भिन्न-भिन्न रूपों में हमारे सम्मुख उपस्थित होता है। वह भक्त भी हैं, साधक भी हैं, सुधारक भी हैं, विवेचक भी हैं, उपदेशक भी हैं और नेता भी हैं।


वे अपने सभी रूपों में अद्वितीय हैं। सारांश यह है कि गोस्वामी तुलसीदास की कीर्ति-पताका भगवती वीणापाणि के उच्चतम कर-कमलों में विद्यमान है। इसी एक कवि ने हिन्दी साहित्य को उच्चता की परम कोटि पर पहुंचा दिया। तुलसी-सा कवि पाकर हिन्दी साहित्य कृतकृत्य हो गया और हिन्दू जाति का बेड़ा पार हो गया। बिल्कुल यथार्थ कहा गया है। 


राम चरित-सरसिज मधुप पावन चरित नितान्त।

जय तुलसी कवि-कुल-तिलक कवित्त-कामिनी-कान्त॥


गोस्वामी जी की रचनाएं अपनी साहित्यिक विशिष्टताओं से परिपूर्ण हैं। रस्किन ने एक स्थान पर लिखा है-"आदर्श काव्य ग्रंथ शब्दश: नहीं अक्षरश: पठनीय होते हैं।" इस कसौटी पर विश्व के प्रायः सभी कवि विशिष्ट काव्य के गौरवपूर्ण पद से च्युत हो जाएंगे। 


लेकिन महाकवि तुलसीदास बिल्कुल और बराबर खरे उतरेंगे, क्योंकि उनके शब्द-शब्द में आशा की गूंज है, पंक्ति-पंक्ति में सुधार का संदेश और पृष्ठ-पृष्ठ में जीवन की ज्योति है। तुलसी का वासनाविहीन प्रेम-वर्णन बिहारी, विद्यापति, कीट्स, मतिराम और देव के प्रेम-वर्णनों से एवं लोक-मंगलकारी होने से कबीर, मीरा, रसखान, घनानन्द, सूरदास आदि के प्रेम वर्णनों से श्रेष्ठतर है।


तुलसीदास ने लगभग 37 ग्रंथों की रचना की है लेकिन उनमें 12 ग्रंथ ही उपलब्ध हैं जो प्रामाणिक भी हैं। रामचरित मानस उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना है।


मानस के अतिरिक्त विनय पत्रिका, गीतावली तथा कवितावली अति प्रसिद्ध काव्यग्रंथ हैं। महाकवि तुलसी न केवल अपने युग के वरन समस्त युग के हिन्दी साहित्य जगत में सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। वे मानव जीवन के सर्वश्रेष्ठ व्याख्याता हैं। 


विद्वानों के मतानुसार गौतम बुद्ध के पश्चात भारत में तुलसी जैसा महान जननायक अन्य कोई नहीं हुआ। वे महान क्रांतिकारी व्यक्तित्व के धनी थे। सच्चे लोकनायक की भांति लोक कल्याण हेतु उन्होंने जो कुछ सही समझा वही किया। 


समकालीन पण्डितों की टीका टिप्पणी की परवाह न करते हुए भी उन्होंने रामचरित मानस की रचना जन-भाषा अवधी में की। वेदों, स्मृतियों, उपनिषदों आदि की ज्ञान-मंजूषा को मुट्ठी भर संस्कृतज्ञों की निरंकुश सत्ता से मुक्त कर तुलसी ने जनभाषा की सहायता से अज्ञानांधकार में भटकते शोषितों और दलितों के कुटीरों में बिखेर कर महान जनवादी क्रांति का सूत्रपात किया।


तुलसी का युग हिन्दुत्व के विघटन एवं संहार का युग था। मुसलमान शासक तलवार के बल पर इस्लाम का प्रचार-प्रसार सैकड़ों वर्षों से कर रहे थे। मंदिरों को गिराकर मस्जिदें उठाई जा रही थीं। हिन्दू धर्म-प्राण जनता अपना सर्वस्व खोकर दीन-हीन और त्रस्त हो रही थी। 


उनकी सामाजिक व सांस्कृतिक व्यवस्था नष्ट हो रही थी। ऐसे दिनों में तुलसी की निर्भीक ललकार गूंज उठी और हिन्दुत्व की उखड़ती हुई सांसों में नए प्राणों का संचार हुआ। रामचरित मानस की रचना कर उन्होंने निराश और अशक्त को न केवल रक्षा-कवच प्रदान किया वरन अपराजेय सत्य को महाशक्ति भी दी।


तुलसी इतिहास पुत्र थे। जन्म और मृत्यु की सीमाओं से मुक्त होकर उनका व्यक्तित्व अवतारों की कोटि में प्रतिष्ठित हो चुका है। धर्म की संस्थापना तथा अधर्म के विनाशार्थ उनका अवतार हुआ था। उनकी महान कृति रामचरित मानस के कारण वे स्वयं प्रात:स्मरणीय बन गए। ब्रह्म के अवतार भगवान के अलौकिक चरित्र का महाशिल्पी राम की ही भांति जन-जन का आराध्य बन गया। उदयाचल दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।