यदि मैं भारत का प्रधान मंत्री होता हिंदी निबंध | Essay on If I were the Prime Minister of India in Hindi

 

यदि मैं भारत का प्रधान मंत्री होता हिंदी निबंध | Essay on If I were the Prime Minister of India in Hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम  यदि मैं भारत का प्रधान मंत्री होता इस विषय पर निबंध जानेंगे। प्रस्तावना-महत्त्वाकांक्षी मानव दिन-रात उच्च से उच्च बनने के स्वप्न देखा करता है। मैं भी ऐसा ही मानव हूँ। मेरी भी एक बार भारत का प्रधानमन्त्री बनने की इच्छा है। 


भारत जैसे विशाल जनतन्त्र का प्रधानमन्त्री होना जहाँ गर्व और गौरव की बात है, वहीं तलवार की धार पर चलने जैसा जोखिम भरा भी है। इसकी अनेक समस्याएँ हैं, अन्तराष्ट्रीय दबाव और चुनौतियाँ हैं। आन्तरिक उलझनें भी कम नहीं है। 


मुझ में भारत के नागरिक के पूर्ण गुण विद्यमान हैं। मेरी प्रधानमन्त्री-पद के लिए निर्धारित अवस्था तथा योग्यता भी है। और मैं पागल, कोढ़ी तथा दिवालिया भी नहीं हूँ। अतः मैं भारत के प्रधानमन्त्री-पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हो सकता हूँ।


वर्तमान भारत में राज्य-संचालन की प्रजातंत्रात्मक पद्धति प्रचलित है। यहाँ प्रधानमन्त्री के लिए निर्वाचन का विधान है। यहाँ पहले एक संसदीय क्षेत्र से चुनाव में खड़ा होकर उसे जीतना होगा फिर यह देखना होगा कि जिस दल का वह सदस्य है, उस दल को बहुमत प्राप्त है या नहीं। 


यदि दल को बहुमत प्राप्त है तो वह दल सर्वसम्मति या बहुमत से उसे अपना नेता चुनेगा और फिर वह प्रधानमन्त्री बन सकेगा। प्रधानमन्त्री बनने की इच्छा-प्रधानमन्त्री बनना एक कठिन कार्य है। यद्यपि मझ में वह योग्यता तथा अनुभव नहीं है जो एक आदर्श प्रधानमन्त्री में होना चाहिए तथापि मेरे मन में भारत के प्रधानमन्त्री बनने की इच्छा बार-बार जन्म लेती रहती है। मैं बार-बार यही विचार करता हूँ कि यदि मैं भारतवर्ष का प्रधानमन्त्री बन जाऊँ तो


प्रधानमन्त्री बनने पर क्या करूँगा? संयोग से यदि मैं अपने देश का प्रधानमन्त्री बन जाऊँ, तो निश्चय ही पहला काम यह करूंगा कि सभी विभागों के लिए ऐसे सदस्यों को मन्त्री बनाऊँगा जो उस विषय के ज्ञाता होंगे और उन्हें अपने विभाग के कार्य में रुचि हो।


बिना इस पहचान के किसी सदस्य को कोई भी पद या विभाग नहीं ,गा। देश के विकास व उत्थान के लिए अनेक कार्य करूंगा। देश की रक्षा-व्यवस्था को सुदृढ़ बनाऊँगा जिसके लिए देश की सैन्य-शक्ति को मजबूत करना चाहूँगा। 


इसके लिए सैन्य बल और सैन्य उपकरणों के आधुनिकीकरण की सारी प्रक्रिया को इतना सहज बना दूंगा जिससे वह अबाधगति से निरन्तर चलती रहे तथा देश किसी भी विकसित तथा उन्नत राष्ट्र से किसी भी प्रकार पीछे न रहे। गुप्तचर और खुफिया एजेंसियों को ऐसे ढंग से संगठित करूंगा कि एक पल को भी उनकी सतर्कता में ढील न आने पाए। 


सारी रक्षा-व्यवस्था को एक अभेद्य कवच बना देना मेरा लक्ष्य होगा। इसके अतिरिक्त देश की सुरक्षा के लिए नए-नए अस्त्रों तथा शस्त्रों का निर्माण करवाऊँगा तथा साथ ही प्रयत्न करूँगा कि देश में शान्ति बनी रहे।आतंकवाद और उग्रवाद को जड़ से मिटाकर देश में कानून-व्यवस्था की स्थापना करूँगा क्योंकि इसके बिना राष्ट्र का विकास सम्भव नहीं है। 


मैं किसी भी मूल्य पर राष्ट्रीय सम्पत्ति की क्षति को सहन नहीं करूँगा, न ही नागरिकों के मन में असुरक्षा की भावना आने दूँगा। मैं भारत की वर्तमान शिक्षा-नीति को जो अंग्रेजों की देन है, परिवर्तित कर उसके स्थान पर रोजगार से प्रेरित नई शिक्षा नीति को अपनाऊँगा।


इस नई शिक्षा-नीति के द्वारा देश के नवयुवकों की बेरोजगारी की समस्या हल हो सकेगी। देश में बेरोजगारी, निर्धनता, अज्ञानता और अन्धविश्वास जैसी अनेक समस्याएँ हैं जो इसके तीव्र विकास में बाधक हैं, में उनको हल करने का प्रयत्न करूंगा।


भ्रष्टाचार और लालफीताशाही प्रगति पथ के सबसे बड़े बाधक हैं, बल्कि देश के लिए कलंक हैं। इस कलंक के उन्मूलन के लिए पूरा प्रयास करूंगा। हमारा देश संसार के अनेक बड़े राष्ट्रों में आर्थिक रूप से कमजोर है, जिसके उत्थान के लिए हमें अपनी कृषि को सुधारना होगा। 


उनको मैं ब्याज की सस्ती दर पर ऋण का प्रबन्ध करवाऊँगा। इसके अतिरिक्त मैं दैनिक उपयोग की वस्तुओं को सुगमता से उपलब्ध करवाने के लिए को-ऑपरेटिव स्टोरों, सुपर बाजारों तथा केन्द्रीय भण्डारों को अधिक बढ़ावा दूंगा तथा प्रत्येक व्यक्ति (नागरिक) के लिए अन्न, वस्त्र व आवास की व्यवस्था कराने का प्रयत्न करूँगा। 


मैं देश के विभाजनकारी एवं विघटनकारी तत्वों के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था करूँगा। नशीली वस्तुओं तथा उनके उपभोग पर पाबन्दी लगाऊँगा। संसदीय शासन प्रणाली में सर्वोपरिता संसद की होती है।


उसकी अवमानना जनता की अवमानना है, प्रधानमन्त्री होने के नाते मैं उसे बिल्कुल सहन नहीं करूँगा। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुचित दबाब सहन न करके राष्ट्र-हित में स्वतन्त्र निर्णय लँगा। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कुछ नीतिगत निर्णय ऐसे होते हैं। 


जिन पर विपक्ष की सहमति आवश्यक होती है। अत: मैं विपक्ष के दलों और नेताओं को सम्मान दूंगा। प्रधानमन्त्री पद के गौरव की रक्षा, व्यक्तिगत और दलीय स्वार्थ तथा संकीर्णता से ऊपर उठकर करूंगा।


देश की अर्थ-व्यवस्था को मजबूत आधार देना, शिक्षा का अधिकाधिक प्रसार करना, समाज-कल्याण करना, कृषि और उद्योग-व्यापार की वृद्धि को देखना यद्यपि सामूहिक कार्य हैं। यद्यपि इनके अलग मन्त्रालय हैं और उनके अलग मन्त्री होते हैं, जो अपनी कार्य नीति के अनुसार कार्य करते हैं, तथापि प्रधानमन्त्री होने के नाते मैं ध्यान रखूगा कि किसी मन्त्रालय के कार्य में ढीलापन न आने पाए।


उपसंहार-सारांश में मैं अपने देश के उत्थान तथा समाज-कल्याण सम्बन्धी वे सभी कार्य करूँगा जिनसे विश्व में भारत का मस्तक गर्व से ऊँचा रहे। अर्थात् मैं अपने देश को विश्व में पूर्ण सम्मान दिलवाऊँगा। ऐसा करने पर मेरा देश भारत फिर से सोने की चिड़िया बनकर विश्व में चमक उठेगा।दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।



शब्दार्थ-निर्धारित = निश्चित की हुई; उपयुक्त = उचित, ठीक: गरिमा = प्रसिद्धि; उत्तरदायित्व = जिम्मेवारी; सुदृढ़ = मजबूत; सतर्कता = सावधानी अभेद्य = जिसको भेदा न जा सके; उन्मूलन = जड़े से उखाड़ना; विघटनकारी = तोड़-फोड़ करने वाला; अवमानना = अपमान करना; गौरव = शान;