जीवन में अनुशासन का महत्त्व पर निबंध | Essay on Importance of Discipline in Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम जीवन में अनुशासन का महत्त्व इस विषय पर निबंध जानेंगे। सामाजिक व्यवस्था को सुसंगठित करने के लिए कुछ नियम आवश्यक होते हैं। वस्तुतः अनुशासन इन नियमों का ही एक रूप है। अनुशासन का हमारे देश, समाज और परिवार में बड़ा महत्व होता है। अनुशासन के बिना सामाजिक व्यवस्था, अशान्ति, क्रोध और द्वेष की उत्पत्ति होती है।
अनुशासनहीनता उस अनियन्त्रित जंगली हाथी की भांति है जो की गयी सभी व्यवस्था को चौपट कर देता है। आज का मानव विकास अनुशासन का ही परिणाम है।अनुशासन का तात्पर्य-अनुशासन से तात्पर्य उन नियमों, सिद्धान्तों एवं परम्पराओं का पालन करना है, जो समाज की व्यवस्था को सुचारु बनाने के लिए बनाई जाती हैं।
तात्पर्य यह है कि अनुशासन वह विधान होता है जो समाज और देश की भलाई और व्यक्ति की उन्नति के लिए व्यवस्थित रूप से अपनाया जाता है। जीवन में समुचित उन्नति के लिए अनुशासन का महत्व-अनुशासन विकास का मूल आधार होता है।
विद्यार्थी के जीवन में अनुशासन का महत्वपूर्ण स्थान है। आज के विद्यार्थी ही कल का भविष्य होंगे। अतः उनका समुचित विकास होना अत्यन्त आवश्यक है। वस्तुतः अनुशासन ही विद्यार्थी के जीवन का आदर्श है। जो विद्यार्थी आरम्भ से ही अनुशासन का पालन करते रहते हैं,
उन्हें सफलताओं की प्राप्ति में निराश नहीं होना पड़ता। किसी ने सत्य ही कहा है कि, “अनुशासन ही सफलता की सीढ़ी है।" मानव-जीवन का समुचित विकास चाहे, वह आर्थिक दृष्टि से हो, चाहे शारीरिक, राजनीतिक अथवा नैतिक दृष्टि से हो, अनुशासन से ही हो पाता है। अनुशासनहीन व्यक्ति अथवा विद्यार्थी न तो स्वावलम्बी हो पाता है और न परोपकारी। वस्तुतः अनुशासन ही सभी सफलताओं का द्वार माना जाता है।
अनुशासन के रूप-हमारे जीवन में हमारे सामने अनुशासन के कितने रूप देखने को मिलते हैं। मुख्य रूप से शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक एवं नैतिक अनुशासन का महत्व होता है। शारीरिक अनुशासन शरीर को रोगों से मुक्त बनाए रखता है।
आर्थिक अनुशासन हमें सफल नागरिक बनाने में सहायक होता है, सामाजिक अनुशासन हमें दया, प्रेम, सहानुभूति, सेवा, आज्ञापालन एवं परोपकारी बनाने में सहायता प्रदान करता है और नैतिक अनुशासन से हम अपने चरित्र का विकास करते हैं। विद्यार्थी के लिए धार्मिक तथा नैतिक, सामाजिक एवं राजनीतिक अनुशासन नितान्त आवश्यक है।
अनुशासन विद्यार्थी में सैनिक की भांति स्फूर्ति बनाए रखता है। अतः जीवन की उन्नति के लिए यह सैनिक अनुशासन अत्यन्त आवश्यक है। अनुशासन के लाभ-वैसे तो हमारे सम्पूर्ण जीवन के लिए अनुशासन का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। कहा भी गया है कि यदि किसी इमारत की नींव मजबूत होती है तो वह इमारत भी बहुत मजबूत होगी।
अतः यदि छात्र-जीवन में ही अनुशासन आ जाएगा तो हमारा भावी जीवन भी सुचारु रूप से विकसित होगा। हमें जीवन में अनुशासन से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं(1) अनुशासन में रहकर व्यक्ति अपनी कार्यकुशलता को बढ़ाता है।
(2) अनुशासन में व्यक्ति के व्यक्तित्व की पूर्ण रूप से उन्नति होती है। (3) अनुशासन में रहकर व्यक्ति स्वावलम्बी बन जाता है। (4) अनुशासन व्यक्ति को दया, प्रेम और सहानुभूति सिखाता है। (5) अनुशासन चरित्र-निर्माण की प्रथम सीढ़ी होती है। (6) अनुशासन से व्यक्ति को समाज की अनगिनत सुविधाओं की प्राप्ति होती है।
(7) अनुशासन से ही व्यक्ति को आजीविका प्राप्त होती है। (8) अनुशासन से देश और समाज में शान्ति उत्पन्न होती है। (9) अनुशासन हमारा आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं नैतिक विकास करने में सहायक होता है। (10) अनुशासन हमें देश-प्रेम की ओर उन्मुख करके सुयोग्य नागरिक बनाता है।
अनुशासनहीनता से हानियाँ-बिना अनुशासन के हम आलसी, मतलबी और स्वार्थी हो जाते हैं। इसे ग्रहण करके हम अपने जीवन में अराजकता को अपना लेते हैं। परिणामस्वरूप हमारे सम्मुख हर क्षेत्र में मुसीबतें-ही-मुसीबतें उत्पन्न होती हैं। यह हमारे आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं नैतिक विकास को अवरुद्ध करती है। आज के छात्र-वर्ग में अनुशासनहीनता के कारण ही उथल-पुथल मची हुई है।
आज का विद्यार्थी इसी अनुशासनहीनता के कारण न तो माता-पिता की आज्ञा का करता है और न ही जीवन के महत्वपूर्ण कर्त्तव्यों का पालन करता है। उसे किसी से किसी भी प्रकार की सहानुभूति नहीं होती है। देश अथवा समाज किसी भी चीज से लगाव नहीं रखता है।
यही कारण है कि पिछले दिनों इस वर्ग द्वारा तोड़-फोड़, आगजनी की असंख्य घटनायें घटी हैं जो देश और समाज के हितकारी नहीं होते हैं। वस्तुतः अनुशानहीन व्यक्ति पशु की भांति प्रतीत होता है।अनुशासन के उपाय-आज विद्यार्थी की अनुशासनहीनता को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि इसे रोका जाए।
कतिपय विद्वानों ने इसके लिए निम्नलिखित सुझाव दिए हैं माता-पिता का दायित्व-अनुशासनहीनता को रोकने के लिये सर्वप्रथम प्रयास माता-पिता की ओर से ही होना चाहिए क्योंकि सबसे अधिक उनका बच्चा उन्हीं के सम्पर्क में रहता है। यदि आरम्भ से माता-पिता अपना परम कर्त्तव्य समझते हुए अपने बच्चों को अनुशासन में रहना सिखा देंगे तो भविष्य में कोई भी ऐसी ताकत नहीं जो उसे अनुशासनहीन बना सके।
बच्चों को अनुशासित करने के लिये उनको स्वयं भी अनुशासन में रहना अत्यन्त आवश्यक है। 0 गुरु का दायित्व-विद्यालय में गुरु का उत्तरदायित्व होता है कि वह उत्तम कार्यों, महापुरुषों के जीवन-वृत्तों, महान् आदों तथा उत्तम कथाओं के माध्यम से छात्रों को अनुशासित करे।
मनोवैज्ञानिक शिक्षा-बालक को अनुशासन में रखने के लिए वैज्ञानिक शिक्षा देनी होगी। बालक में स्काउटिंग, नाटक, संगीत, खेल-कूद, साहित्य एवं कलात्मक उपकरणों के प्रति आरम्भ से ही रुचि पैदा कर देने से अनुशासन की भावना उत्पन्न होती है।
नैतिक शिक्षा-विद्यार्थियों में नैतिक शिक्षा का ज्ञान करने से भी छात्रों में अनुशासन की भावना जागृत हो सकती है। इसमें हमें छात्रों के सम्मुख महान् एवं आदर्श पुरुषों के चरित्रों को प्रस्तुत करना चाहिए।दण्ड व्यवस्था-घोर अनुशासनहीन व्यक्ति अथवा छात्र के लिए उचित दण्ड का प्रबन्ध होना चाहिए। अन्य उपाय-इन सभी उपायों के अतिरिक्त कतिपय अन्य उपाय भी हैं,
जो छात्रों को अनुशासहीनता से मुक्त कराने में सहायक होते हैं। ये निम्नलिखित हैं(क) अध्यापकों को छात्रों से पूर्ण रूप से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए। (ब) विद्यालय का निर्माण एकान्तप्रिय स्थानों पर होना चाहिए। (स) शिक्षा प्रणाली में आधारभूत सुधार होना चाहिए। (द) अध्यापकों का व्यावहार पक्षपात का नहीं होना चाहिए।
उपसंहार-उपसंहार यह है कि अनुशासनहीनता हमारे लिए एक अभिशाप बन गया है। देश और समाज की भलाई के लिये इसको मिटाना परम आवश्यक है। आज के छात्र कहीं कल के नेता हो सकते हैं, अतः आरम्भ से ही उनके व्यक्तित्व की उन्नति के लिए उन्हें अनुशासन का पाठ पढ़ाना जरूरी है। वस्तुतः अनुशासन ही जीवन है अतः समाज के प्रत्येक प्राणी में अनुशासन का होना आवश्यक है, जिससे कि शान्ति और सहयोग की स्थापना ही सके।दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।