जीवन में श्रम का महत्व पर निबंध | ESSAY ON IMPORTANCE OF LABOUR IN HINDI
नमस्कार दोस्तों आज हम जीवन में श्रम का महत्व इस
विषय पर निबंध जानेंगे। प्रस्तावना-जीवन के प्रारम्भिक युग से लेकर आद्यतन
तक का विकास ग्राम-नगरों का निर्माण, जीवन हेतु अन्यान्य यंत्रों की रचना,
शिल्प से लेकर वायुयान तक का निर्माण सबके मूल में मानव का श्रम ही निहित
है।
धरती पर अपने अस्तित्व की रक्षा एवं विकास के
लिये मानव ने जो अथक श्रम किया है, उसकी गणना करना असम्भव है। जिस प्रकार
अन्तरिक्ष की ओर से झांकती हुई सूर्य की स्वर्णिम किरणें रात्रि की सघन
कालिमा से आच्छादित प्रकृति के अनन्त रंगों और रूपों को जगत पर उद्घाटित कर
देती है।
इसी प्रकार श्रम मानव-जीवन की अनन्त सम्भावनाओं
को प्रकट करता है; जैसे-बाह्य जगत में सहस्त्रों रूपों में व्याप्त
रूप-राशि के संस्पर्श से कवियों की कल्पना जाग्रत हो उठती है, ठीक वैसे ही
मानव जीवन में श्रम की आँधियाँ उठ-उठ कर उसे हर तरफ से प्रकाशित कर देती
हैं।
श्रम ही जीवन है। संसार की कोई भी वस्तु श्रम के बिना
सम्भव नहीं है। जो श्रमजीवी नहीं उसको दूसरों के भरोसे जीने का अधिकार
नहीं। तात्पर्य यह है कि संसार में मानव निर्मित कोई भी वस्तु ऐसी नहीं
जिसमें श्रम न लगा हो। चटाई से लेकर कालीन तक, हथौड़े से लेकर हवाई जहाज तक
सबका निर्माण श्रम द्वारा हुआ है।
मानव ने इस श्रम के सहारे जगत पर स्वर्ग उतारने
की कल्पना को साकार बना दिया है। मानव-जीवन के विकास के योग-वैज्ञानिकों
एवं नृशास्त्रियों का कथन है कि मानव अपनी आदिम अवस्था में बन्दर जैसा किसी
जंगली पशु के आकार वाला प्राणी था।
उसे अपने आहार तथा जीविका के साधनों
के लिए निरन्तर संघर्ष करना पड़ता था। पृथ्वी पर अपने अस्तित्व की सरक्षा
और उसके विकास के लिये मानव ने जो अथक परिश्रम किया है उसका अनमान लगाना
कठिन है। प्रकृति के स्वेच्छाचारों के साथ संघर्ष, वन्य हिंसक पशुओं से
रक्षा का प्रयत्न, जीविका के साधनों में लगे रहने में मानव के घोर परिश्रम
की कहानी अंकित है।
उसके श्रम ने ही वन्य पशुओं से भिन्न कर दिया और
मानव जानवर से ऊपर उठ गया। गाँवों में खेती करना, रहने के लिये घर बनाना,
नगरों में जो सभ्यता, संस्कृति के दृश्य हैं वह सब उसके श्रम की घोषणा कर
रहे हैं। झोंपड़ी से लेकर ताजमहल की भव्यता तक में मानव का श्रम अपनी कहानी
बता रहा है, इतना ही नहीं पृथ्वी से चन्द्रमा तक जाने के लिये आज के
आधुनिक वैज्ञानिक साधन जो भी उपलब्ध हैं मानव के श्रम जन्य हैं।
मानव-जीवन की सफलता की कुंजी-मानव-जीवन
की सफलता की कुंजी श्रम है। देखने में यही आता है कि इस जीवन में कुछ
व्यक्ति अधिक सफल होते हैं। उनकी सफलता का मुख्य कारण उनका अथक परिश्रम ही
होता है। पुरानी कथा है कि एक बादशाह था जिसके राज्य पर उसके शत्रुओं ने
अधिकार जमा लिया था।
बादशाह ने देखा कि एक चींटी अपने आकार से
चौगुने शिकार को लेकर दीवार के सहारे चढ़ती है, गिरती है फिर उठती है फिर
चढ़ती है अन्त में अपने प्रयास में सफल होकर अपने गनतव्य स्थान पर पहुँच
गई। इस प्रकार इस छोटे से जीव के उत्साह, निरन्तर परिश्रम को देखकर कि इस
जीव ने अपने परिश्रम और लगन के साथ किस प्रकार अपनी सफलता को प्राप्त किया
है।
बादशाह के मन में भी अपने खोये राज्य को अपने शत्रुओं
से वापस लेने का विचार दृढ़ हो गया, उसने अपनी इच्छाशक्ति बढ़ाई और
शत्रुओं पर आक्रमण कर अपने राज्य को वापस लेकर सफलता प्राप्त की। बादशाह की
तरह हम अपने जीवन में प्रत्येक क्षेत्र में अनेकों घटनायें घटित होते हुए
देखते हैं।
यदि मानव चाहे तो परिश्रम के द्वारा अपने
में नये जीवन का संचार कर सकता है। संसार में मानव अधिक श्रम कर अपने
भाग्य का निर्माण कर सकता है। श्रम का रसायन अद्भुत तथा अनोखा है। श्रम की
आवश्यकता-किसी भी कार्य की सफलता के लिये निरन्तर घोर श्रम की अपेक्षा होती
है।
इसी श्रम के द्वारा मानव को एक-न-एक
दिन अवश्य ही सफलता मिलती है। मानव-जीवन में श्रम का अधिक महत्व है।
साहित्य कला, व्यवसाय, कृषि, योग आदि किसी क्षेत्र को ले लिया जाये उसमें
उसी व्यक्ति को सफलता मिलती है, जिसने अपने कार्य के लिये अधिक-से-अधिक
श्रम किया है।
चित्रकार या मूर्तिकार क्या कम परिश्रम करता है?
वह एक मूर्ति का निर्माण करने में, उसका आकार बनाने में रात-दिन एक कर
देता है। तब कहीं जा कर वह जिस मूर्ति की रचना करता है उसमें सफल होता है।
ताज का निर्माण पलक मारते ही नहीं हुआ इसके पीछे कई करोड़ व्यक्तियों का
अनेक वर्षों का श्रम है, जो आज विश्व में द्वितीय है।
रेलगाड़ी आज मानव-जीवन का अभिन्न अंग
बन गई है। उसके बिना मानव यात्रायें इतनी शीघ्रता से पूरी न होतीं, किन्तु
क्या उसका आविष्कार और उसे आजीवन के लाभ हेतु श्रम करना पड़ा है? अतः
विश्व में किसी कार्य की कल्पना बिना किये नहीं की जा सकती है। आज मानव
श्रम के बल पर ही प्रकृति की शक्तियों को चुनौती दे रहा है।
रेगिस्तान को अपनी श्रमशक्ति के सहारे ही
आज का मानव जलशक्ति से बिजली पैदा कर अन्धकार में पड़े हुए प्रदेशों और
गाँवों को आलोकित कर रहा है। रेगिस्तान को अपनी श्रमशक्ति के सहारे हरे
मैदानों में परिवर्तित कर भूमि के गर्भ से जल की अखण्ड धारा खींचकर धरती के
ऊपर ला रहा है।
ये सब श्रम के बिना व्यर्थ हो जाता है और
उसके अन्दर आन्तरिक शक्तियाँ प्रयोग न किये जाने के कारण क्रमशः क्षीण
होती जाती है। अन्त में उसका नाश भी हो जाता है। अतः मानव को अपनी शारीरिक
और बौद्धिक उन्नति के लिये दोनों प्रकार के श्रम की जरूरत होती है,
यथा-मानव अपने शरीर के किसी अंग से काम न ले तो वह उसका अंग बेकार हो जाता
है।
ठीक वैसे ही बौद्धिक श्रम न करने से मस्तिष्क
के कार्य करने की शक्ति नष्ट हो जाती है और तब मानव निष्क्रिय और निकम्मा
बन जाता है। अतः व्यक्ति, समाज और राष्ट्र आदि सबकी उन्नति और समुदाय का
मूल मंत्र श्रम है। यह देश, राष्ट्र या समाज, ज्ञान, विज्ञान, कला-कौशल आदि
में उतना ही अग्रणी होगा। इतिहास इस बात का साक्षी है।
जब-जब किसी देश या राष्ट्र में रहने वाले
व्यक्तियों के द्वारा श्रम की उपेक्षा हुई है तब-तब उस देश या राष्ट्र में
रहने वाले व्यक्तियों के जीवन में विलासिता की मात्रा बढ़ी है। श्रम का
महत्व-श्रम एक ऐसी साधना है उसमें ऐसी अपार शक्ति है, जिसके द्वारा मानव
विश्व के कठिन कार्य को बड़ी सरलता एवं सफलता के साथ सम्पन्न कर सकता है।
उसने अपने श्रम से वह कार्य कर
दिखलाया जिसे संसार असम्भव समझता था। बिना श्रम के सुख की कल्पना नहीं की
जा सकती है। शासन सूत्र को सम्भालना सरल काम नहीं है।इसके लिए अधिक परिश्रम
करना पड़ता है। देश-विदेश के जितने भी प्रख्यात विद्वान, वैज्ञानिक, राजनीतिज्ञ हैं-उन सब के जीवन का अध्ययन करने पर मालूम हो जाता है कि उन्होंने अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये अथक परिश्रम किया है।
तभी उन्हें इतना सम्मान और ख्याति मिली है।
मानव सभ्यता और संस्कृति का सारा इतिहास इस श्रम की ही देन है। महात्मा
गाँधी परिश्रम के जीवन को ही सच्चा जीवन मानते थे। किसान भी वर्षभर धूप,
वर्षा और शीत का प्रकोप सहन करके घोर श्रम करता है। तब अन्न उग पाता है और
उसी के परिश्रम का फल समस्त संसार को प्राप्त होता है।
स्टीवेन ने यदि घोर श्रम तथा लगन के साथ इंजन
का आविष्कार न किया होता तो यातायात की इतनी सुविधा न होती और न सभ्यता का
ही विकास होता। श्रम एक नशा है, जो परिश्रम व्यक्ति को करो या मरो की
मादकता के साथ कार्य करने की सफलता की ओर ले जाता है।
परिश्रमशील व्यक्ति को जीवन में
कोई कठिनाई नहीं, अपितु प्रत्येक सुविधा उसे सहज में ही प्राप्त हो जाती
है। उसे सम्पत्ति के पीछे नहीं, बल्कि सम्पत्ति स्वयं उसके पीछे भागती है।
सच्चे मन से किये गये श्रम द्वारा मानव भी अपने उद्देश्य में सिद्धि
प्राप्त कर सकते हैं, जिसमें किसी विशेष प्रतिभा की जरूरत नहीं होती।
अतः जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त
करने के लिए श्रम का अत्यधिक योग एवं महत्व है।साहित्य विज्ञान परिश्रम की
देन-विश्व में जो साहित्य विज्ञान और जीवन की सफलताएँ उपलब्ध हैं वे स्वयं
श्रम की देन है; यथा-पाश्चात्य विद्वान एवं कोशाकार वेबस्टर ने अंग्रेजी
शब्दकोष का निर्माण करने में 26 वर्षों तक अथक श्रम किया और अन्त में अपने
कार्य में सफल हुआ।
संस्कृत साहित्य का विशाल ग्रन्थ महाभारत
न जाने कितने वर्षों के श्रम का फल है। इतना ही नहीं बंगाली विद्वान् वसु
ने बंगला और हिन्दी शब्दकोष तैयार करने में अपना पूरा जीवन ही लगा दिया।
संस्कृत का वृहत् संस्कृताविधान ग्रन्थ अठारह वर्षों के कठिन श्रम के बाद
छः भागों में और 5500 पृष्ठों में तैयार हुआ है। अतः स्पष्ट है कि श्रम ही जीवन है।
श्रम ही जीवन की सफलता है।मानव
अपने बौद्धिक और शारीरिक श्रम के द्वारा नित्य प्रति नये-नये तथ्यों का
आविष्कार कर संसार में ज्ञान की वृद्धि करता जा रहा है। जिस व्यक्ति ने
ध्रुवों की खोज की, जिसने अमेरिका का पता लगाया और वास्कोडिगामा अपनी धुन
में भारत तक आ गया-ये सब असाधारण व्यक्ति ही थे, किन्तु अपनी सहनशीलता, लगन तथा श्रम के द्वारा ऐसा कार्य किया, जिसके कारण उनकी कीर्ति संसार में अमर हो गई।
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