भारत की विदेश नीति पर निबंध | Essay on India’s Foreign Policy
नमस्कार दोस्तों आज हम भारत की विदेश नीति इस विषय पर निबंध जानेंगे। प्रत्येक स्वतंत्र तथा प्रभुता सम्पन्न राष्ट्र की विदेश नीति का उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा, सर्वांगीण विकास एवं अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त करना होता है। हम प्राय: यह देखते हैं कि किसी भी देश की विदेश नीति चाहे वह वैदेशिक मामलों में हो या अपने राज्य के मामले में प्रत्येक का अपना एक लक्ष्य अवश्य होता है।
नीति निर्धारित करना सरकार का काम है और सरकार नीति निर्धारित करने से पहले एक लक्ष्य सामने रखकर चलती है जिसकी पूर्ति वह संबंधित नीति के माध्यम से करना चाहती है। यह तथ्य विदेश नीति के बारे में भी उतना ही सत्य है जितना अन्य नीति विषयक मामलों में।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में भारतीय विदेश नीति का निर्देशन करते हुए चार आदर्शों का वर्णन किया गया है1. अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का विकास हो। 2. राष्ट्रों के मध्य सम्मानपूर्ण संबंध स्थापित हो। 3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून एवं संधियों के पालन की भावना का अभ्युदय हो। 4. मध्यस्थता द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का हल किया जाए।
विदेश नीति के तत्त्वों पर प्रकाश डालते हुए पंडित नेहरू ने कहा था"किसी देश की विदेश नीति का निर्धारिण परिस्थितियों के आधार पर होता है।" स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत ने जिस विदेश नीति का निर्धारण किया, उसके निर्धारक तत्त्व निम्नलिखित हैं
देश की भौगोलिक स्थिति भारत का राष्ट्रीय हित ऐतिहासिक परम्पराएं आर्थिक तत्त्व देश पर विभिन्न विचारधाराओं का प्रभाव इसके साथ भारत की विदेश नीति के मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं0 गुट निरपेक्षता का सिद्धांत 0 पंचशील का सिद्धांत भारत की विदेश नीति गुट निरपेक्षता और पंचशील के सिद्धांतों पर आधारित है।
पंचशील' शब्द का प्रयोग आज से 2500 वर्ष पहले महात्मा बुद्ध द्वारा अपने अनुयायियों को उपदेश देने में किया गया था। बुद्ध ने अपने शिष्यों को पांच व्रतों का उपदेश दिया था। वे पांच व्रत थे-सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और मद्य त्याग।
भारत में इसी पर आधारित 'पंचशील' शब्द का प्रयोग पंडित नेहरू और चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई की वार्ता के संदर्भ में हुआ। इसमें 'पंचशील' सिद्धांत को आगे चलकर गुट निरपेक्षता की नीति के आवश्यक अंग के रूप में स्वीकार किया गया।
पंचशील में निहित पांच तत्त्व निम्नलिखित हैं 1. एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता एवं संप्रभुता का सम्मान करना। 2. एक-दूसरे पर आक्रमण नहीं करना। 3. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना। 4. समानता एवं परस्पर लाभ। 5. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।
हालांकि चीन ने इसका उल्लंघन करते हुए 1962 में भारत पर आक्रमण कर दिया था। किसी भी देश की विदेश नीति का सही मूल्यांकन उस समय होता है जब वह राष्ट्र स्वयं दूसरे के साथ युद्ध में फंसा हो या उसके मित्र राष्ट्रों के मध्य अस्तित्व के लिए संघर्ष चल रहा हो।
भारत भी इसका अपवाद नहीं है और भारतीय विदेश नीति प्रारम्भ से ही अग्नि परीक्षा के दौर से गुजरती रही है। भारतीय विदेश नीति के निर्धारकों ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के ध्रुवीकरण का प्रबल विरोध किया है और इस संदर्भ में भारतीय विदेश नीति ने स्वर्णिम आयामों को सृजित किया है और इन्हीं आयामों को ध्यान में रखकर अनेक देश इस नीति के अनुकरण की ओर प्रवृत्त हुए, जिससे गुट निरपेक्ष आन्दोलन को शक्ति एवं समर्थन मिला।
अपनी विशिष्ट स्थिति एवं प्रभाव के कारण भारत ने 1951 में कोरिया युद्ध को समाप्त करने का प्रस्ताव रखा जिससे इस युद्ध को विश्व युद्ध में परिणत होने से रोका जा सका। अपनी विदेश नीति के संचालन में भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का सदैव समर्थक रहा है।
भारत ने अनेक शांति अभियानों में अपनी सेनाएं भी भेजी और आज भारत संयुक्त राष्ट्र संघ को और अधिक प्रभावशाली बनाए जाने के लिए सुरक्षा परिषद की सदस्यता को बढ़ाए जाने की मांग भी कर रहा है ताकि गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों की संख्या और बढ़ सके तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद किसी एक देश का पक्षपात न कर सके।
गुट निरपेक्ष के मूल सिद्धांतों के अनुसार भारत का सदा से यह दृष्टिकोण रहा है कि वह किसी प्रकार की सैनिक संधि से अलग रहेगा। भारत ने सोवियत साम्यवाद के प्रसार की नीति का भी सदा विरोध किया है, फिर भी सोवियत संघ ने भारत द्वारा एशिया को शांति क्षेत्र बनाए जाने का समर्थन किया और साथ ही कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र संघ और उसके बाहर भारत का खुलकर समर्थन किया।
1. एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता एवं संप्रभुता का सम्मान करना। 2. एक-दूसरे पर आक्रमण नहीं करना। भारत की लोकतांत्रिक नीतियों का समर्थन करते हए अमेरिका ने भारत को सैनिक और आर्थिक सहायता प्रदान की। शांति और सह-अस्तित्व की आधारशिला पर दृढ़ रहते हुए भारत ने 1963 में आंशिक परमाणु परीक्षण निषेध - संधि पर हस्ताक्षर कर शांति के प्रति अपनी वचनबद्धता को प्रमाणित कर दिया।
1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध भी गुट निरपेक्षता की नीति के लिए एक विकट चुनौती लेकर आया और इससे यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि विभिन्न सैन्य गुटों एवं संगठनों से सम्बद्ध होने के कारण पाकिस्तान भारत की अपेक्षा मजबूत स्थिति में रहेगा।
लेकिन वे अटकलें निर्मूल सिद्ध हुईं क्योंकि पाकिस्तान किसी भी गुट से सैनिक-सहायता प्राप्त करने में असफल रहा। 1971 में बांग्लादेश की आजादी के लिए हुए युद्ध में एक बार फिर भारत ने गुट निरपेक्षता के उद्घोषित नैतिक सिद्धांतों का पालन करते हुए पाकिस्तान के विरुद्ध जिस भूमिका का निर्वाह किया वह सभी को आचर्यचकित करने वाला था।
भारत पड़ोसियों से मित्रता एवं सहयोग बनाए रखने के लिए भी सदैव तत्पर रहा है। वर्तमान में सभी पड़ोसियों के साथ भारत के कमोबेश मधुर संबंध हैंसिर्फ पाकिस्तान को छोड़कर। लेकिन इधर पाकिस्तान के साथ हमारे संबंधों में कुछ सुधार आया है।
वैसे पाकिस्तान 1947 से ही भारत के लिए मुसीबतें खड़ी करता रहा है। वर्तमान में भी वह सीमा पार से आतंकवादियों को भारत में घुसाकर उसकी सब प्रकार से सहायता कर भारत के विरुद्ध अघोषित युद्ध चला रहा है। जबकि ताशकन्द से आगरा तक के सम्मेलनों में भारत ने अपनी शांति के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराया है लेकिन पाकिस्तान के अड़ियल रवैये के कारण भारत को सफलता प्राप्त नहीं हो सकी।
विश्व की बदलती परिस्थितियों, बदलती सामरिक तकनीकी तथा अपने पड़ोस में परमाणु अस्त्रों के भण्डार ने भारत की विदेश नीति को प्रभावित किया है। एक ओर भारत ने अपने को परमाणु सम्पन्न राष्ट्र घोषित कर दिया है तो दूसरी ओर वह अमेरिका के राष्ट्रीय मिसाइल प्रतिरक्षा कार्यक्रम (N.M.D.) का भी समर्थन कर रहा है।
अमेरिका-भारत के मध्य संबंधों में प्रगाढ़ता आती जा रही है। इन सबसे प्रेक्षकों का यह अनुमान है कि भारत अमेरिका की तरफ झुक रहा है, लेकिन भारत ने बार-बार स्पष्ट किया है कि भारत-अमेरिका सम्बन्ध रूस से मैत्री की कीमत पर नहीं हैं। जो भी हो, इतना तो तय है कि गुटनिरपेक्षता भारत की पहचान है।
यह भी सच है कि अपनी पहचान खोकर कोई राष्ट्र राष्ट्र के रूप में जीवित नहीं रह सकता। भारत की विदेश नीति के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं। अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की वृद्धि के लिए प्रयास करना। अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण हल। । पड़ोसी राष्ट्रों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध कायम रखना। O राष्ट्रीय हितों, सीमा एवं प्रादेशिक शिक्षा की व्यवस्था करना।
9 भारत के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास के लिए हर संभव प्रयास करना। 9 दोनों गुटों से अलग रहकर असंलग्नता की नीति का पालन करना। 0 उपनिवेशवाद का विरोध एवं राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए चलने वाले आन्दोलनों । का समर्थन करना। प्रवासी भारतीयों तथा भारतीय हितों की सुरक्षा करना। संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धांतों एवं उद्देश्यों में आस्था तथा उसका समर्थन करना। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।