मेरी प्रथम रेल यात्रा पर हिंदी निबंध | Essay on My First Train Trip in Hindi

 

 मेरी प्रथम रेल यात्रा पर हिंदी निबंध | Essay on My First Train Trip in Hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम  मेरी प्रथम रेल यात्रा इस विषय पर निबंध जानेंगे। भूमिका-मैं अपने मित्रों से रेल-यात्रा के विषय में अनेकों बार सुन । चुका था। परन्तु रेल-यात्रा का सौभाग्य कभी नहीं मिला था। अत: मेरे मन में भी रेल-यात्रा करने की प्रबल इच्छा थी। 


दिसम्बर की छुट्टियाँ आने पर पिता जी ने इस बार मुम्बई जाने का कार्यक्रम बना लिया। मेरे चाचा जी वहाँ रहते ।। हैं अत: हमें उनसे मिलने जाना था। यह मेरी पहली रेल-यात्रा थी।कार्यक्रम-इतनी दूर की यात्रा का कार्यक्रम सुनकर आनन्द आ गया। बस फिर क्या था। 


हमने जाने की तैयारी प्रारम्भ कर दी। दर की यात्रा थी। इसलिए पिताजी ने सीटें आरक्षित करवा लीं। जाने का दिन समीप आने पर हमने अपना सामान तैयार किया तथा रास्ते के लिए कुछ नाश्ता आदि भी तैयार कर लिया था।


रेलवे प्लेट-फार्म का दृश्य-हम टैक्सी द्वारा नयी दिल्ली स्टेशन पर पहुँचे। चारों ओर चहल-पहल थी। लोग इधर-उधर आ-जा रहे थे। कुली ने हमारा सामान प्लेटफार्म पर ले जाकर लगा दिया। वहाँ चाय तथा किताबों की कई दुकानें थीं। उन पर अनेक लोग खड़े थे। 


कुछ लोग वहाँ खड़े आपस में बातें कर रहे थे। वहाँ दूसरे प्लेटफार्मों पर अनेक गाड़ियाँ आ-जा रही थीं। थोड़ी देर बाद हमारी गाड़ी प्लेटफार्म पर लग गई। पिताजी ने आगे बढ़ कर चार्ट देखा और हम अपने डिब्बे में घस गए। हम अन्दर जाकर अपनी सीटों पर बैठ गए। 


हमने अपना सामान भी ठीक प्रकार से लगा लिया। थोड़ी देर बाद डिब्बा पूरा भर गया। रेल-यात्रा का आनन्द-प्रतीक्षा की घड़ियाँ समाप्त हुईं। गाड़ी का सिगनल हो गया। गार्ड ने सीटी बजाकर हरी झण्डी दिखा दी। तभी इंजन ने सीटी बजाई और गाड़ी चल दी। 


मैं एक खिड़की के पास बैठा बाहर के दृश्य देख रहा था। थोड़ी ही देर में गाड़ी की गति तेज हो गई। जब मैं बाहर की ओर देखता तो ऐसा लगता था जैसे हमारी गाड़ी खड़ी है और धरती, पेड़-पौधे, खम्भे आदि दौड़ रहे हैं। रेल के अन्दर अनेक खोमचे वाले आते-जाते रहते हैं। 


रास्ते में कई स्टेशन आए पर गाडी सभी स्टेशनों पर नहीं रुकी। वह केवल बडे स्टेशनों पर ही रूकी। हमने गाड़ी में ही खाना मँगवाया। रेल में खाना खाने का अपना अलग ही आनन्द होता है। थोड़ी देर बाद रात हो गई और हम अपनी-अपनी सीट पर सो गए। 


सुबह उठे, नाश्ता किया और दोपहर को खाना खाया। अगले दिन सायं को ठीक पाँच बजे हमारी गाड़ी मुम्बई के रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई। प्लेटफार्म पर बड़ी भीड़ थी। कुली ने हमारा सामान उतारा और हम टैक्सी लेकर चाचाजी के घर पहुंच गए।


उपसंहार-इस यात्रा को लगभग दो वर्ष बीत गए हैं, परन्तु उसे रेल-यात्रा का आनन्द आज भी ताजा बना हुआ है। प्लेटफार्म तथा रेल-यात्रा के वे दृश्य भूले भी नहीं भुलाए जा रहे। रेल द्वारा की गई वह रेलयात्रा हमें चिरस्मरणीय रहेगो। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।


शब्दार्थ-प्रबल = तेज। प्रतीक्षा = इन्तजार। दृश्य = नज़ारा। आरक्षित = रिज़र्व। चिरस्मरणीय = बहुत दिनों तक याद रहने वाली।