नैनो टेक्नोलॉजी पर निबंध | Essay on Nanotechnology in Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम नैनो टेक्नोलॉजी इस
विषय पर निबंध जानेंगे। टेक्नोलॉजी या प्रौद्योगिकी आज न सिर्फ विकास
सम्बंधी बहस का केन्द्रबिन्दु बनी हुई है बल्कि आम आदमी के जीवन के तमाम
पक्षों से भी यह घनिष्ट रूप से जुड़ गयी है।
बीसवीं शताब्दी को निर्विवाद रूप से
टेक्नोलॉजी शताब्दी कहा जाता है। इस शताब्दी में अणु और परमाणु के स्तर तक
अनुसंधान करते चले गए। परिणामस्वरूप विज्ञान के एक नए क्षेत्र का विकास
होता चला गया जिसे नैनो टेक्नोलॉजी का क्षेत्र कहा जाने लगा।
नैनो टेक्नोलॉजी का सम्बन्ध अत्यंत सक्ष्म स्तर
पर वैज्ञानिक कार्यों से है। विज्ञान की इस शाखा का नाप लम्बाई नापने की
एक अत्यंत छोटी इकाई नैनो मीटर के नाम पर पड़ा है। नैनो मीटर के एक अरबवें
हिस्से को कहा जाता है।
जो लगभग हाइड्रोजन के एक परमाणु के आकार
का लगभग 10 गना तथा एक अणु के आकार के बराबर होता है। नैनो साइंस का
व्यावहारिक उपयोग सूक्ष्म उपकरणों एवं यंत्रों के निर्माण के अलावा औषधि,
नैनो टेक्नोलॉजी, पदार्थ विज्ञान, कम्प्यूटर विज्ञान, सूचना टेक्नोलॉजी
इत्यादि में किया जाता है।
नैनो का शाब्दिक अर्थ होता है बौना।
किसी एक इकाई जैसे 1 मीटर या । सेकेण्ड या 1 ग्राम का 1 अरब का हिस्सा एक
नैनो मीटर कहलाता है। अतः नैनो टेक्नोलॉजी एवं साइंस के अन्तर्गत आण्विक
स्तर या नैनो पैमाने पर कार्य किया जाता है।
नैनो मीटर =1x10 मीटर इसके अलावा
हाइड्रोजन परमाणु का अर्धव्यास = 0.1 नैनो मीटर, डी०एन०ए० अणु अर्धव्यास
=2.5 नैनो मीटर, वर्तमान समय के अतिसूक्ष्म माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों
का आकार 150 नैनी मीटर। मनुष्य की एक कणिका (R.B.C.) अर्धव्यास 800 नैनो
मीटर होता है।
अतः नैनो टैक्नोलॉजी में एक अकेले परमाणु के
अध्ययन और उसमें फेरबदल करके नैनो आकार की असाधारण गुणों वाली अत्यंत
सूक्ष्म युक्तियों का विकास किया जाता है। नैनो टेक्नोलॉजी का क्षेत्र अब
काफी व्यापक हो गया है। औषधि तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में तो इसके अनेकों
उपयोग हैं।
कैंसर, एड्स मधुमेह और कई अन्य बीमारियों का
निदान बायो में डिरसन से किया जाता है। जिसका नैनो टेक्नोलॉजी के आधार पर
ही विकास सम्भव हो सकता है। आजकल इस टेक्नोलॉजी का प्रयोग मनुष्य के शरीर
के अंदर किसी विशेष अंग तक औषधियों को पहुंचाने में किया जाता है।
इस टेक्नोलॉजी को सेंसर' कहा जाता है।
मानव प्रतिरोपण में काम आने वाली परिष्कृत सामग्री के निर्माण में भी इसी
टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जाता है। भविष्य में इसका उपयोग बीमारियों का
प्रारम्भिक अवस्था में पता लगाने तथा उनके उपचार में भी किया जायेगा।
चिकित्सा के क्षेत्र में नैनो टेक्नोलॉजी की अपार
संभावना है। शरीर के किसी विशेष अंग तक आसानी से और सही मात्रा में दवा
पहुंचाने के लिए नैनो ट्यूब का प्रयोग किया जाता है जो अत्यंत सूक्ष्म आकार
की एक नलिका होती है तथा यह रक्त प्रणाली में आसानी से तैर सकती है।
आज कम्प्यूटर से कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है।
कम्प्यूटर ने मानव मस्तिष्क के द्वारा जो असम्भव था उसको भी सम्भव बना
दिया। फिर भी कम्प्यूटर अपनी विकास अवस्था में है। नैनो टेक्नोलॉजी की
भौतिक और रासायनिक युक्तियों का प्रयोग करके विशेष प्रकार के प्रोसेसर तथा
मेमोरी डिवाइस वाले कम्प्यूटर बनाए जा सकते हैं।
आण्विक कम्प्यूटर का विकास भी इस टेक्नोलॉजी
के विकास पर सम्भव है। इस प्रकार के कम्प्यूटर वर्तमान में प्रचलित
कम्प्यूटरों से बिल्कुल अलग किस्म के आण्विक स्विचों का प्रयोग करना होगा।
ऐसा नहीं है कि वर्तमान में प्रचलित कम्प्यूटर में नैनो टेक्नोलॉजी का
उपयोग नहीं हो रहा है।
कम्प्यूटरों की हार्डडिस्क की रीड/राइट
टैड प्रणालियों में नैनो आकार की युक्तियों का उपयोग होता है। इसके अलावा
नैनो टेक्नोलॉजी के आधार पर अगले 10 सालों में 100 गीगा बाइट तक हार्डडिस्क
तैयार कर लिए जायेंगे। अगर किसी से कहा जाये कि अपने आप साफ हो जाने वाले
खिड़कियों के शीशे उपलब्ध हो जायेंगे।
सूर्य की पराबैंगनी किरणों को रोकने
वाला मरहम तैयार कर लिया जायेगा जिससे कपड़े बना लिए जायेंगे जो जाड़ों
में गरम और गर्मी में अपने आप ठंडे हो जायेंगे। सिपाहियों द्वारा पहनी जाने
वाली वर्दी जगह और आवरण के अनुसार अपने आप रंग बदल लेगी, तो किसी को
विश्वास नहीं होगा।
लेकिन नैनो विज्ञान से यह सब सम्भव होने
वाला है। अगली पीढ़ी की गणना पद्धत्ति-नैनो गणना-गणना करने वाली तकनीकों
का भविष्य अब नैनो टेक्नोलॉजी में ही निहित है। फिर भी पाँच ऐसे क्षेत्र
हैं जिनमें इसकी अनिवार्यता को नकारा नहीं जा सकता है।
(1) नैनो तंतुकरण-कार्बन नैनो ट्यूब सामान्य
ग्रेफाइट की अपेक्षा अधिक आकर्षक एवं सुविधाजनक होते हैं। क्योंकि इनकी
समता स्थिरता, लोचशीलता, अधिक पृष्ठीय क्षेत्र अधिक होने के साथ-साथ वजन
बहुत कम होता है। कार्बन नैनो ट्यूब का प्रयोग ट्रांजिस्टर तथा सेलुलर
फोनों इत्यादि में किया जायेगा।
बायो कम्प्यूटिंग-बायो कम्प्यूटिंग का प्रादुर्भाव
सूचना प्रौद्योगिकी तथा बायो टेक्नोलॉजी के मेल से प्राकृतिक जीवन विज्ञान
के नैसर्गिक सिद्धान्तों के निर्माण के लिए हुआ। इसके लिए वैज्ञानिकों का
यह प्रयास है कि केन्द्र का और माइटोकॉन्ड्रिया में संचित सूचनाओं को पूर्ण
जैनेटिक सूचना के रूप में एकत्रित कर लिया जाये।
इससे केन्द्रक में कोड भाषा के रूप में संचित जीवन
रहस्यों को पढ़ा जा सकेगा। (3) आण्विक गणना-शोधकर्ताओं ने रोटैम्जेय नामक
एक ऐसे इलेक्ट्रॉनिक स्विच का निर्माण किया है जो कि जैविकीय पदार्थों के
कई मिलियन अणुओं की एक परत के रूप में होता है। इसका उपयोग आण्विक गणनाओं
में किया जायेगा।
(4) प्रकाशकीय गणना-प्रकाशकीय कम्प्यूटरों में
इलेक्ट्रॉनों को फोटोना के द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। इसलिए
अत्यंत ही नजदीक जुड़े हुए नैनो संरचनाओं को बनाना सम्भव है। इससे
ट्रांजिस्टर जैसी छोटी तथा सिलिकॉन ट्रांजिस्टरों से 1,000 गुना अधिक तीव्र
स्विचों को बनाने में मदद मिलेगी।
क्वांटम गणना-क्वांटम गणना का प्रयोग सूचना प्रसंस्करण के लिए नये तकनीकी तथा तन्त्रों के विकास में क्वांटम सिद्धान्त में विशिष्ट पक्ष को प्रयोग क्वांटम में किया जाता है।
क्वांटम मैकेनिकल ऑपरेशन के विलक्षण गुणों का
प्रयोग करके द्रव्य या प्रकाश की कवांटम अवस्था में आंकड़ों को कोड भाषा
में भरा जा सकता है जिसको कि अप्रत्याशित वेग और क्षमता के साथ प्रयोग किया
जा सकता है।
परम सघन भण्डारण-नैनो तकनीक का प्रयोग करके
1 वर्ग इंच में 11 ट्रिलियन बिट्स का भण्डारण किया जा सकता है; अर्थात् आज
की हार्डडिस्क की अपेक्षा 25 गुणा अधिक, अगर साधारण आदमी की भाषा में इसे
कहा जाये तो इसका मतलब यह हुआ कि 300 सीडी जिसमें से प्रत्येक पर 700MB के आंकडे हैं को एक माचिस की सतह जितने क्षेत्र में इकट्ठा किया जा सकता है।
डी०एन०ए० स्याही द्वारा लिखने का नैनो
पैटर्न-अभी तक प्रयुक्त होने वाली एक सामान्य चिप में डी०एन०ए० के
1,00,000 अलग-अलग धब्बे होते हैं और प्रत्येक धब्बे का व्यास 20-40 माइक्रो
मीटर होता है। स्टेट ऑफ दा आर्ट डिपप्रेन नैनो लिथोग्राफी का प्रयोग करके
किसी पारम्परिक जीन चिप के एक धब्बे जितनी जगह में 1,00,000 डी०एन०ए० धब्बों को तैयार किया जा सकता है।
इसका लाभ यह होगा कि भविष्य में
एक सूई की नोक से भी कम जगह में 1,00,000 अलग-अलग विकर्णित जांच वाली जीन
चिप तैयार करने में मदद मिलेगी, इससे कुछ ही सेकेण्डों में जीन चिप तैयार
किया जाना सम्भव हो जायेगा।
नैनो टेकनोलॉजी के द्वारा टूटकर
गिरते हुए भित्ति चित्रों का संरक्षण-इटली के रसायन शास्त्रियों ने यह खोज
निकाला है कि 1 मिलीमीटर के 10 लाखवें हिस्से से भी छोटे बझे हए चने के
कणों से पुराने भित्ति चित्रों को अक्षय होने से बचाया जा सकता है।
इस तकनीक में बहुत ही मुलायम
बुझे हुए चूने को टूटते हुए पेंटो को पुनः जोड़ने के लिए प्रयोग में लाया
जाता है। इसको एल्कोहॉल में बहुत ही छोटी कैल्शियम हाइड्रोक्साइड के
क्रिस्टल के सस्पेंशन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
पेंट में पहले से मौजूद कैल्शियम कार्बोनेट
पानी और कार्बन डाइ-ऑक्साइड के कणों को अवशोषित कर लेता है और एल्कोहॉल
वाष्पीकृत हो जाती है। इसमें ऐसा नहीं लगता है कि कोई चीज अलग से लगायी गयी
है।
उपरोक्त प्रयोगों के अलावा नैनो टेक्नोलॉजी
का प्रयोग और भी कई क्षेत्रों में किये जाने की सम्भावना है। इस तकनीक पर
आधारित ऐसी वस्तुओं को बनाना आसान हो जायेगा जो हल्की, मजबूत, आवश्यकताओं
के अनुरूप टिकाऊ तथा पर्यावरण की दृष्टि से अधिक महँगी भी नहीं।
आजकल ऐसी औद्योगिक तथा कृषि प्रजातियों
के विकास पर जोर दिया जा रहा है जो पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ हों। अतः
आजकल दुनिया भर में उद्योगों में रसायन विज्ञान पर आधारित युक्तियों के
स्थान पर जैव तकनीकी को अपनाया जा रहा है।
इस तरह की युक्तियों का सर्वाधिक उपयोग
रेशम उत्पादन एवं मत्स्य पालन के क्षेत्र में हो रहा है। इन युक्तियों को
नैनो बायलोजी नाम दिया गया है। इसके अन्तर्गत ऐसी युक्तियों का विकास सम्भव
है, जिसमें सभी प्रणाली स्वचालित होंगी;
जैसे-दवाएँ रोगी के शरीर की आवश्यकताओं यथा
वजन उसकी पाचन प्रणाली के अनुसार अपने आपको ढाल लेगी। कृषि-उपज बढ़ाने में
इस तरह की युक्तियां बहुत ही लाभकारी सिद्ध होंगी। निष्कर्षतः यही कहा जा
सकता है कि भविष्य में विज्ञान का विकास नैनो टेक्नोलॉजी पर ही सम्भव है।
पर्यावरण, माप-तोल, रोबोटिक्स इत्यादि
ऐसे क्षेत्र हैं जिसके प्रयोग की अपार सम्भावनाएं हैं। विज्ञान सम्बन्धी
समस्याओं को सही ढंग से समझने तथा उनके समाधान में नैनो टेक्नोलॉजी से काफी
मदद मिल सकती है। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर
बताइए ।