परिश्रम का महत्व पर निबंध | Essay on Parishram Ka Mahatva in Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम परिश्रम का महत्व इस विषय पर निबंध जानेंगे। प्रस्तावना-मेहनत मानव-जीवन की वह सुनहरी कुन्जी है जो उसके भाग्य के बन्द कपाट को खोल देती है। मेहनत से ही समस्त कार्य सिद्ध हो सकते हैं, केवल मनोरथ करने या कहने से नहीं।
सिंह की भांति बली पशु को भी भोजन की प्राप्ति के लिए उद्यम या परिश्रम करना आवश्यक होता है। आलस्य में रहकर या सोकर भोजन की प्राप्ति नहीं हो सकती। यदि कोई व्यक्ति कहता है कि विश्व में ऐसे जीव भी हैं जो बिना श्रम के अपना जीवन व्यतीत करते हैं, तो वे दया के पात्र हैं। जीवन को सफल बनाने के लिए परिश्रम करना आवश्यक है। दूसरे की दया पर जीवन निर्वाह करना बेकार है।
परिश्रम का अर्थ-परिश्रम का अर्थ है 'उद्यम' अथवा 'मेहनत' । 'उद्यम' अथवा 'मेहनत' के द्वारा ही मनुष्य अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सफल होता है। अतः परिश्रम मानव को कार्य का आरम्भ कराने व कार्य में लाभ कराने का माध्यम है। वह सब जिसके द्वारा मानव किसी कार्य को पूरा करना चाहता है, परिश्रम कहलाता है। परिश्रम सफलता का द्वार खोलकर जीवन को सुख-समृद्ध बनाता है, यह मानना अनुचित नहीं है।
परिश्रम के बिना छोटे-से-छोटा कार्य भी सफलता की श्रेणी पर नहीं पहुंच सकता। यही कारण है कि खरगोश और कछुए की दौड़ में परिश्रम के बल पर ही कछुए की विजय हुई। परिश्रम के द्वारा ही सुस्त व पिछड़े, मेधावी छात्रों से बाजी मारकर विजय प्राप्त कर लेते हैं।
यदि कोई व्यक्ति परिश्रमी है तो वह समाज में हमेशा आदर पाता है। उसका आर्थिक, सामाजिक नहीं बल्कि राष्ट्र तथा जाति की उन्नति के लिए भी परिश्रम का महत्व कम नहीं है। इसी से राष्ट्र की उन्नति होना सम्भव है। जिस राष्ट्र के व्यक्ति जितना अधिक परिश्रम करते है,
मनुष्य को अधिक परिश्रम करना चाहिए जिससे कि प्रकृति से हमें जो शक्ति प्राप्त हुई है उसका पूर्ण उपयोग हो सके अन्यथा हमारे शरीर में विकार उत्पन्न हो जाता है।
मनुष्य तथा सफलता-परिश्रमी तथा सफलता का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है। यह तो हो ही नहीं सकता कि परिश्रम किया जाये और सफलता न मिले। यदि परिश्रम करने के पश्चात् सफलता न मिले तो यह समझ लेना चाहिए कि परिश्रम करने में अवश्य ही कहीं त्रुटि हो गयी है।
गीता में भी कर्म की भावना को तय करते हुए कहा गया है कि 'कर्मण्ये वाधिकास्ते मा फलेषु कदाचना' अतः परिश्रम से ही सफलता मिलती है, बिना परिश्रम के मनुष्य को कुछ भी नहीं मिल सकता। परिश्रमी व्यक्तियों के उदाहरण-विश्व में परिश्रम से ही बड़े-बड़े कार्य हो जाते हैं,
इतिहास के पन्नों को खोलकर देखने से हमें ज्ञात होता है कि महानता तथा कीर्ति प्राप्त करने वाले सम्राटों ने भी परिश्रम को अधिक महत्व दिया है। परिश्रम के बल पर ही सम्राट चन्द्रगप्त की विजय-पताका प्रत्येक स्थान पर फहराई गयी। बाबर जैसा गुलाम परिश्रम के द्वारा ही बादशाह बन बैठा। परिश्रम से ही अंग्रेजों ने विश्व के कई राष्ट्रों पर अपना शासन चलाया।
गांधीजी, तिलक, मार्क्स, टॉलस्टाय, मदर टेरेसा आदि महान् विभूतियों का जीवन-वृत्त भी स्वयं एक कहानी है। जवाहरलाल नेहरू तो इसके बहुत बड़े आदर्श हैं जो परिश्रम करने से पीछे नहीं हटते थे। मदर टेरेसा ने भी परिश्रम करके मानव जाति के हृदय में अपना स्थान बना लिया है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि परिश्रम मनुष्य को महान् बना देता है। परिश्रम की उपेक्षा करना किसी भी दशा में उचित नहीं होगा, क्योंकि परिश्रम सामान्य जीवन-प्रगति का माध्यम है। श्रम तथा मेहनत का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है।
परिश्रम तथा विश्राम-निरन्तर परिश्रम करते रहना कदापि उचित नहीं होता, क्योंकि बिना विश्राम के न तो मानसिक विकास हो सकता है और न राष्ट्र की उन्नति हो सकती है। इससे मानसिक कुशलता और शारीरिक कुशलता घटती जाती है।
विश्व के अनेक साहित्य सृष्टाओं ने परिश्रम के साथ-साथ विश्राम की महत्ता का भी वर्णन किया है, परन्तु यह तभी सम्भव है जब परिश्रम किया गया हो। अतः जो विश्राम का आनन्द लेना चाहते हों तो उन्हें पहले श्रम करना चाहिए, क्योंकि बिना श्रम के विश्राम कैसा? अतः श्रम के बाद विश्राम और विश्राम के बाद ठीक वैसे ही अच्छा प्रतीत होता है, जैसे नमकीन के बाद मीठा और मीठे के बाद नमकीन।
उपसंहार-अन्त में यह कहना अनुचित न होगा कि श्रम मानव उन्नति का आधार है। परिश्रम से ही सब कुछ मिल सकता है। परिश्रम का अर्थ है- 'उन्नति के द्वार में प्रवेश करना और मर कर अमर होना।' बिना परिश्रम के उन्नति का स्वप्न देखना व्यर्थ है।
जब तक हम परिश्रम का अपने जीवन में व्रत नहीं लेते, तब तक हमारा समाज और राष्ट्र उन्नति की दिशा में नहीं जा सकता। अतः हमारे देश को कठोर और परिश्रमी व्यक्तियों की आवश्यकता है जिससे हम अपने शत्रुओं से मातृभूमि की रक्षा कर सकें। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।