रैगिंग पर निबंध | ESSAY ON RAGGING IN HINDI
नमस्कार दोस्तों आज हम रैगिंग
इस विषय पर निबंध जानेंगे।अन्नामलाई विश्वविद्यालय परिसर में मेडिकल कोर्स
के छात्र ‘नवरासू' की नृशंस हत्या से भारत में आधुनिक शिक्षा का बेहद
घिनौना एवं घृणास्पद चेहरा सामने आया है। नवरासू मद्रास विश्वविद्यालय के
कुलपति का पुत्र था। उसका दोष यह था कि उसने तृतीय वर्ष के सीनियर छात्र
जान डेविड के समक्ष स्वयं को रैगिंग के लिए समर्पित करने से इंकार कर दिया
था।
यही नहीं उसने डेविड के आतंकवाद
को चुनौती देते हुए जबरन उसकी प्रयोग-पुस्तिका भरने से भी मना कर दिया था।
इतने में भी डेविड के मन में नवरासू के विरुद्ध जबरदस्त घृणा पैदा हो गयी।
प्रतिशोध एवं क्रूर क्रोध की आग में जलकर डेविड ने नवरासू के जिस्म की
बोटी-बोटी काट डाली।
यह कोई पहली घटना नहीं है कि जब
किसी युवक छात्र का जीवन रैगिंग की बलिवेदी पर चढ़ा हो। प्रायः हर साल ही
रैगिंग को लेकर कोई न कोई शर्मनाक त्रासदी घट जाती है। ऐसी घिनौनी तथा
अमानवीय घटनाएँ मानव सभ्यता को सोचने के लिए विवश कर देती है ।
कि आखिर वर्तमान एवं आधुनिक शिक्षा
के बढ़ते कदम हमारे प्राचीन सांस्कृतिक मूल्यों को क्यों रौंदते चले जा
रहे हैं? प्राचीन भारत में रैगिंग के पदचिन्ह दृष्टिगोचर नहीं होते। वैदिक
काल की गुरुकुल प्रणाली ऋषि-महर्षि के आश्रम में रहने वाले छात्र पारस्परिक
भ्रातृत्व भाव का ही दृष्टान्त प्रस्तुत करते हैं।
महाभारत काल में महर्षि संदीपनी के आश्रम
में राजकुल के श्रीकृष्ण और निर्धन ब्राह्मण पुत्र सुदामा की मैत्री युवा
वर्ग के लिए आज भी प्रेरणास्पद है। भारत की शैक्षिक एवं सांस्कृतिक विरासत
तो प्रत्येक स्तर के सहपाठियों के बीच सहज मानवीय मूल्यों की वकालत करती
है।
रैगिंग का यह वीभत्स रूप जिस वृक्ष का प्रतिफल है उसकी
जड़ पाश्चात्य भौतिकवादी जीवन दर्शन से अभिप्रेरित ब्रिटिशकालीन शिक्षा
पद्धति के अन्तर्गत अवश्य ही 'फ्रैशर्श' का 'सीनियर्स' से परिचय रैगिंग का
प्रथम चरण था, किन्तु यह इतना लज्जास्पद, घिनौना, वीभत्स या घृणित कदापि न
था।
छात्रावासों के जीवन से निकले आज भी ऐसे
लोग हैं, जिनके अनुभव में सीनियर्स' का अपने 'जूनियर्स' से बर्ताव बड़े
भाई या संरक्षक जैसा था। आजकल तो सीनियर्स की खाल में भेड़िये, बाघ और कसाई
घुस गये हैं। शिक्षा के मन्दिरों में समाज विरोधी तत्व जमकर दुराचार मचा
रहे हैं और हमारे बच्चे इसका शिकार हैं।
कितने दुःख का विषय है कि आये दिन घटने
वाली ऐसी हरकतें शासन की जानकारी में रहती हैं, फिर भी उसकी पुनरावृत्ति
होती है। रैगिंग के नाम पर अमानवीय कृत्यों के इतिहास के पृष्ठ हरदम
निरपराध छात्र-छात्राओं के आँसू और खून से गीले हैं।
लेकिन समाज निश्चिन्त और विश्वस्त है।
कहीं से कोई विरोधी स्वर नहीं फूटता। ये छात्र उच्च शिक्षा की इस दहलीज पर
पहुंच चुके थे, जिसे मेधावी, प्रखर और अति कुशाग्रबुद्धि ही छू सकते हैं।
देश की अमूल्य निधियाँ जिस राष्ट्र-सेवा के लिए परिपक्व हो रही थीं, तभी
उन्हें न सिर्फ पैशाचिक एवं अमानवीय तरीकों से प्रताड़ित किया गया, अपितु
जीवन से हाथ धोना पड़ा।
यह राष्ट्र की कितनी बड़ी क्षति है, देश में
इन्जीनियर या डॉक्टर बनने की प्रक्रिया आगामी भविष्य में भी विश्राम नहीं
ले रही है। हर साल ही राष्ट्रों के लाखों प्रतिभावान छात्र कैसे अच्छे
अभियन्ता या चिकित्सक बन सकेंगे? कैसे उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास
हो सकेगा?
हर साल ही राष्ट्र के लाखों प्रतिभावान छात्र
विशिष्ट शिक्षा के लिए इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लेंगे।
हर साल ही लाखों माताओं के होनहार बच्चों को इन कॉलेजों में पढ़ने जाना है,
लेकिन शिक्षा मन्दिरों के भीतर जहरीले नाग की तरह कुण्डली मारे इन
आतंकवादी पंजों के चंगुल को देश के प्रतिभाशाली छात्र कैसे अच्छे अभियन्ता
या चिकित्सक बन सकेंगे?
किस प्रकार वे नैतिक, निडर व दृढ़ चरित्र
के स्वामी होंगे और आत्मविश्वास से परिपूर्ण होकर राष्ट्र-सेवा करेंगे?
भारत का प्रत्येक कुशाग्रबुद्धि इंजीनियरिंग या डॉक्टर बनने से इंकार ही कर
देगा। डॉक्टर या इंजीनियरिंग के अपने भविष्य के रूप में उसे अपनी साक्षात्
और बेरहम मौत के ही दर्शन होंगे।
जान डेविड जैसे समाज विरोधी तत्व क्या
कुछ नहीं कर सकते। वे आतंक के बल पर सर्वश्रेष्ठ छात्रों से अपनी प्रयोग
पुस्तिकाएँ पूरी करवा सकते हैं, अन्यों से परीक्षा दिलवा सकते हैं,
रिवॉल्वर की नोक पर परीक्षकों से जबरन अंक हासिल कर सकते हैं और
विश्वविद्यालय के समक्ष चिकित्सक की डिग्री अर्जित कर सकते हैं,
किन्तु चिकित्सक बनकर वे क्या करेंगे?
सभी कुछ करेंगे, किन्तु राष्ट्र या मानवता की सेवा नहीं करेंगे। अपनी
घिनौनी एवं अक्षम्य हरकतों से मेडिकल प्रोफेशन जैसे भावी क्षेत्र को भी
अपमानित, लक्षित तथा अविश्वसनीय बना डालेंगे।
कभी सबसे ज्यादा उँगली यदि उठती है
तो इन्जीनियर्स और डॉक्टर्स पर ही। सभी को नहीं, किन्तु ठेकेदारों की
चाँदी बड़े पैमाने पर इंजीनियर्स को तो खरीद ही लेती है और बड़ी संख्या में
डॉक्टर्स भी कसाई की भूमिका अदा कर रहे हैं, जैसे मानवता की सेवा की अपनी
प्रतिज्ञा को बिल्कुल भूल गये हैं।
दोनों पेशों पर बस एक भूत सवार है-“अधिक-से-अधिक पैसा"। पैसों की खातिर
कोई भी कुछ भी करने को तैयार है। लूट, हत्या कुछ भी।क्या यह हमारी आधुनिक
शिक्षा का प्रतिफल है? यदि ऐसा ही कुछ है तो नहीं चाहिए हमें ऐसी उच्च
शिक्षा।
जब महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों का आचार्य
जॉन डेविड सादृश्य अपराधियों से भयभीत होकर अपना गुरुत्व खो बैठेगा, उसमें
आतंक गर्जन के सम्मुख मस्तक झुका देगा तो वे राष्ट्र की प्रतिभाओं के साथ
क्या न्याय कर पायेंगे, ऐसे में शिक्षण-प्रशिक्षण की समूची प्रक्रिया एवं
प्रणाली ही अर्थहीन एवं ध्वस्त हो जायेगी।
शीघ्र ही ऐसा समय आयेगा, जबकि भारतीय
शिक्षा के सांस्कृतिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों को रौंदकर जॉन डेविड
मुख्य चिकित्सा अधिकारी की कुर्सी पर बैठा होगा और चिकित्सालयों में मरघट
की-सी शान्ति छा जायेगी।
प्रजा को सुरक्षा देना शासन का प्रथम मौलिक
कर्तव्य है। राष्ट्र की प्रतिभाएँ अमूल्य सच्चे मोती हैं। उनके लिए एक
सुदृढ़ कवच चाहिए। शासन को चाहिए कि रैगिंग को तत्काल संक्षेप अपराध घोषित
करे और इसके दोषी व्यक्तियों को कठोर-से-कठोर दण्ड का प्रावधान रखा जाए।
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