भारत में लघु व कुटीर उद्योग व्यवसाय पर हिंदी निबंध | Essay On Small & Cottage Industry in Hindi

 

भारत में लघु व कुटीर उद्योग व्यवसाय पर हिंदी निबंध | Essay On Small & Cottage Industry in Hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम  भारत में लघु व कुटीर उद्योग व्यवसाय इस विषय पर निबंध जानेंगे। आजकल भारत में लघु उद्योग उन उद्योगों को कहा जाता है जिनमें संयंत्र एवं मशीनरी में कुल पूँजी निवेश (स्थिर पूँजी) 60 लाख रुपए से अधिक की न हो। 


सहायक उद्योगों के क्षेत्र में यह अधिकतम सीमा 75 लाख रुपए की है। छोटे पैमाने के उद्योगों के विकास का उत्तर दायित्व राज्य सरकारों का ही होता है, केन्द्र सरकार तो उनके प्रयासों में सहायता करती है। इनके अतिरिक्त कुटीर अथवा ग्रामीण उद्योग एक प्रकार के गह उद्योग होते हैं 


जो दस्तकारों द्वारा अपने घरों में परिवार के सदस्यों की सहायता से ही चलाए जाते हैं। ग्रामीण उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि से सम्बन्धित होते हैं। कटीर उद्योग स्थानीय कच्चे माल से सरल उत्पादन तकनीक के माध्यम से स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का निर्माण करते हैं।


कुटीर उद्योगों में पूँजी की कम तथा श्रम की अधिक आवश्यकता होती है। इन उद्योगों में मशीनों का प्रयोग नहीं होता है, बल्कि उत्पादन हाथों से किया जाता है। जो लोग हस्तकला में निपुण होते हैं, वे इन उद्योगों द्वारा अपनी आजीविका बड़ी सरलता से चला सकते हैं।


प्राचीन काल में भारत में कुटीर उद्योगों का बहुत चलन था, ये उद्योग घर-घर में चलाए जाते थे। इनमें प्रमुख चरखा काटना, टोकरियाँ बनाना, रस्सी बाँटना, मिट्टी के बर्तन व खिलौने बनाना आदि आते हैं। आज नगरों और कस्बों में चलने वाले कुटीर व लघु उद्योग हैं-मेज-कुर्सी बनाना,


मोमबत्ती बनाना, मुर्गी पालन, प्लास्टिक की वस्तुएँ बनाना तथा हौजरी बनाना आदि। इस प्रकार इन उद्योगों का प्रमुख लाभ यह है कि इनमें कम पूँजी का निवेश करके अधिक लोगों को रोजगार दिया जा सकता है तथा इन्हें सारे देश में विकेन्द्रीकृत भी किया जा सकता है। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।