भारत में महिलाओं की स्थिति पर निबंध | Essay On Status Of Women In India In Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम भारत में महिलाओं की स्थिति इस
विषय पर हिंदी निबंध जानेंगे। पुरुष एवं महिला एक गाड़ी के दो पहिये के
समान हैं। एक के बिना दूसरे का जीवन अधूरा है। पृथक जीवन जीने में पुरुष और
महिला के जीवन का कोई अस्तित्व नहीं है। पुरुष एवं महिला एक-दूसरे के
व्यक्तित्व के विकास में योगदान करते हैं।
हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों में, पुरुष
की तुलना में महिला को ऊँचा स्थान प्राप्त है। यह माना जाता है कि जिस समय
पुरुष ने प्रकृति के विध्वंसक पहलू को प्रस्तुत किया, उस समय महिला ने
रचनात्मक पहलू को प्रस्तुत किया और वह घर स्वर्ग है जहाँ महिला को सम्मान
दिया जाता है।
प्राचीन भारत में महिलाओं को आदर
एवं सम्मान मिला तथा उन्हें पुरुष की अर्धांगिनी के रूप में माना जाता था।
कोई भी यज्ञ महिलाओं की भागीदारी के बिना पूर्ण नहीं होता था। इन्हें
शिक्षा प्राप्त करने, जीवन की कठिन लड़ाई का सामना करने के लिए अपने तरीके
से तैयारी करने के लिए पूर्ण स्वतंत्रता और समान अधिकार मिलते थे।
इन्हें वैवाहिक संबंध के बारे में निर्णय
लेने का पूर्ण अधिकार था। स्वयंवर आयोजित करने की प्रथा से लड़कियों को
अपना जीवन-साथी चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। जैसा कि इतिहास हमें स्मरण
दिलाता है कि कई महिलाओं ने कला और साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में
विशेषज्ञता अर्जित की जिनमें गार्गी और लोपामुद्रा का नाम प्रमुख है।
हमारे प्राचीन साहित्य में शैक्षिक और
दार्शनिक परिचर्चा में कुछ महिलाओं के भाग लेने का वर्णन है। कुछ मामलों
में, पुरुषों की तुलना में इन्हें ऊँचा स्थान दिया गया था।
उत्तरवर्ती हिंदू काल में और इसके
बाद के काल में महिलाओं का स्थान पहले की तरह नहीं रह सका, पुरुष ने अपने
शास्त्रों में महिलाओं की प्रतिष्ठा को कम करने का प्रयास किया। मुस्लिम
शासन के दौरान, उन्हें घर की चाहरदीवारी में कैद कर स्वतंत्रता से वंचित कर
दिया गया और उन्हें अवैतनिक दासी माना जाने लगा।
उन्हें पुरुषों की सम्पत्ति से अधिक कुछ
नहीं समझा जाता था। उनका सामाजिक पिछड़ापन अंग्रेज शासकों के आने के साथ
शुरू हुआ जो अच्छी तरह से जानते थे कि प्रबुद्ध एवं स्वाधीन नारी जाति अगली
पीढ़ी के दासवत् दृष्टिकोण को बदल देगी। ब्रिटिश शासन के दौरान, महिलाएँ
अमर्यादित एवं निकृष्ट स्थान पर पहुँच गई थीं।
गाँधीजी के प्रेरणाप्रद दिशानिर्देश
के तहत राजनैतिक जागरूकता के परिणामस्वरूप कई महिलाएँ स्वतंत्रता संघर्ष
में आगे आई। इसके पहले महिलाओं ने कभी भी इतने उत्साह से और इतनी बड़ी
संख्या में राष्ट्रीय आंदोलन में भाग नहीं लिया था। इसके पहले महिलाओं
ने कभी भी इतनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा
नहीं पाई थी। इसके पहले महिलाओं ने कभी भी गुलामी की बेड़ी से स्वयं को
मुक्त करने के लिए इतने उत्साह से प्रयास नहीं किया था। यह गाँधीजी और अन्य
समाज सुधारकों के संयुक्त प्रयास, पश्चिमी विचारों के प्रभाव, सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन, उदार शिक्षा की उपलब्धता और देश में चौतरफा पुनर्जागरण और सामाजिक तथा राजनैतिक जानकारी का परिणाम था।
स्वतंत्रता के बाद हमारे संविधान में
उन्हें पुरुषों के समान अवसर की समानता प्रदान की गई। समकालीन भारतीय
महिलाओं के अस्तित्व का क्षेत्र इन वर्षों में व्यापक रूप से बढ़ा है और अब
यह क्षेत्र शेयर बाजार के क्रियाकलाप, न्यायालयों में न्यायिक प्रशासन,
अत्याधुनिक अस्पतालों में शल्य-चिकित्सा के सम्पादन, राज्यों में
मुख्यमंत्री या राज्यपाल का घेराव करने के लिए,
आयोजित की जाने वाली रैलियों के
लाखों लोगों की भीड़ को नियंत्रित करने से लेकर उन खेलों के जीतने और
हारने तक हो गया है जहाँ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय चैम्पियनशिप दाँव पर
लगी होती है। यह प्रतीत होता है कि भारतीय महिलाओं के जीवन में अनिवार्य
क्रांति पहले से ही आ गई है जिससे सम्पूर्ण मूल्य-तंत्र में क्रांतिकारी
परिवर्तन आया है।
पहले, सतीत्व नारी जाति का एक गुण
समझा जाता था। सीता और सावित्री, रजिया सुल्तान और चाँद बीवी से लेकर
इंदिरा गाँधी और किरण बेदी, अरुंधती राय और कल्पना चावला, सोनिया गांधी,
प्रतिभा पाटिल, निरुपमा राव जैसी महिलाओं ने काफी लम्बा रास्ता तय किया
है।
समकालीन भारतीय महिलाएं प्रगति पथ पर
अग्रसर हैं और मानो उन्हें पंख लग गए हैं और उनके लिए आकाश ही एकमात्र
सीमा है। महिलाएँ चाहे उच्च वर्ग की हों या निम्न वर्ग की, अमीर हों या
गरीब, अति शिक्षित हों या बिल्कुल निरक्षर, शालीनता और सतीत्व की देवी हों
या वेश्या, कामकाजी हों या घरेलू इन सभी में निर्भीकता, साहस, उत्साह और
सभी चुनौतियों का सामना करने का सामान्य गुण होता है।
बड़े अपराध या निम्न नैतिकता में संलग्न
महिलाएं भी नए कीर्तिमान बना रही हैं। देह-व्यापार करने वाली औरतें भी
जुलूस और रैलियाँ निकालकर माँग कर रही हैं कि इस पेशे को काम के रूप में
मान्यता दी जाए और उन्हें मौलिक अधिकार के रूप में स्वतंत्र रूप से इसे
करने की अनुमति दी जाए।
सैकड़ों वर्ष बाद जब महिलाओं ने आश्चर्यजनक
प्रगति कर ली है, फिर भी महिलाओं के विरुद्ध अपराध बढ़े हैं और ऐसे सभी
मामलों में प्रायः यौन-भावना ही हावी होती है। आज भी भारतीय महिलाओं का
जीवन बहुत सी घातक समस्याओं से घिरा हुआ है, जिसके कारण उनका जीवन जीवित
नर्क बना हुआ है।
आज भी नवविवाहिताएं कम दहेज लाने
के कारण जला दी जाती हैं, इसके एकमात्र निर्णायक उनके सास-ससुर होते हैं।
आज भी कोई भी महिला, यहाँ तक कि उम्रदराज महिला भी, अगर कहीं भी
अनुरक्षकरहित पायी जाती है, सम्भव है उसका उपहरण, लूटपाट, सेक्स उत्पीड़न
हो और उसके पश्चात् सबूतों को नष्ट करने के लिए उसे मारकर झाड़ियों या
तालाब या नाले में फेंक दिया जाए।
वर्तमान आधुनिक भारत में महिलाओं की
भूमिका निश्चित रूप से काफी महत्त्वपूर्ण है। हम अपनी प्रगति और समृद्धि
के लिए राष्ट्रीय पुननिर्माण, ग्रामीण उत्थान और देश के सर्वांगीण विकास की
योजनाओं में व्यस्त हैं।
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक स्तर
पर महिलाओं को भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना है। महिलाओं ने
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी योग्यता का प्रदर्शन किया है।
वह दिन दूर नहीं जब भारत की
महिलाएं न केवल पश्चिमी महिलाओं को पीछे छोड़ देंगी बल्कि अतीत में मिली
अपनी सम्मानजनक स्थिति को पुनः प्राप्त कर लेंगी। दोस्तों ये निबंध आपको
कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।