विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध हिंदी | Essay on Students and Politics in Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम विद्यार्थी और राजनीति इस विषय पर निबंध जानेंगे। प्रस्तावना-विद्यार्थी का लक्ष्य विद्या अर्जन है। वह विद्यार्थी-जीवन में विद्याध्ययन और ज्ञानार्जन करके भावी जीवन का निर्माण करता है। यह काल उसके भावी जीवन के लक्ष्य-निर्धारण का समय होता है।
इसी काल में विद्यार्थी के व्यक्तित्व का विकास होता है तथा उसके चरित्र का निर्माण होता है। जिस प्रकार नींव के सुदृढ़ होने पर ही उस पर किसी सुदृढ़ भवन का निर्माण हो सकता है, उसी प्रकार विद्यार्थी जीवन पर ही मनुष्य का भावी जीवन निर्भर करता है।
इस समय उसका प्रमुख लक्ष्य विद्याध्ययन करना है क्योंकि ज्ञानार्जन ही उसके भावी जीवन की सफलता का आधार होता है। इस समय वह पारिवारिक तथा सामाजिक उत्तरदायित्वों से मुक्त होता है अत: उसे अधिक-से-अधिक विद्यार्जन में ही अपना समय व्यतीत करना चाहिए।
विद्यार्थी अपने माता-पिता, समाज और राष्ट्र की अपेक्षाओं को तभी पूरी कर सकता है, जबकि वह विद्यार्थी-जीवन के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करे तथा इस अमूल्य समय को इधर-उधर व्यर्थ न करे।
वर्तमान युग-राजनीति का युग-आज का युग अर्थप्रधान राजनीति का युग है। आज राजनीति जीवन के अधिकांश भाग को व्याप्त किए हुए है। आज प्रत्येक व्यक्ति चाहे उसे राजनीति का ज्ञान है या नहीं, राजनीति की बात करता है।
राजनीति पहले भी मनुष्य के सामाजिक जीवन को प्रभावित करती रही है, परन्तु आज तो यह मानव जीवन के हर पक्ष में इस प्रकार छा गई है कि लगता है आज का जीवन राजनीतिमय हो गया है। आज की राजनीति पूर्णतया धन-संग्रह की प्रवृत्ति से परिचालित है।
यह राजनीति विद्यालयों एवं विश्व विद्यालयों में प्रविष्ट होकर उन्हें विकृत कर रही है तथा विद्यार्थियों को पथभ्रष्ट कर रही है। आज का विद्यार्थी इन स्वार्थसाधक राजनीतिज्ञों के हाथ में कठपुतली बन रहा है। विद्यालयों व महाविद्यालयों में होने वाली हडतालें तथा प्रदर्शन इस बात का ज्वलन्त प्रमाण हैं कि आज का विद्यार्थी विद्या का अर्थी न होकर अनुशासनहीन और उच्छृखल हो गया है।
वह राजनीतिकों के हाथ में हथियार बनकर रह गया है, जिसका उपयोग वे अपने स्वार्थ के लिए कर रहे हैं। देश के भावी नागरिक विद्यार्थी को इस प्रकार की राजनीति में क्रियात्मक भाग लेना चाहिए या नहीं, यह प्रश्न विचारणीय बन गया है।
कुछ लोग इसके पक्ष की बात करते हैं तो कुछ इसके विपक्ष की।विद्यार्थियों का राजनीति में भाग लेने के पक्ष में-पहले हम इस मत पर विचार करेंगे कि विद्यार्थियों को राजनीति में भाग लेना चाहिए। इस पक्ष के समर्थकों की मान्यता है कि आज का विद्यार्थी भावी राष्ट्रनिर्माता है, कर्णधार है।
यदि वह इस समय राजनीतिक कार्यों में भाग नहीं लेता तो उसे राजनीति का गूढ़ ज्ञान नहीं हो सकता और आने वाले समय में वह अनुभवी राजनीतिज्ञ नहीं बन सकता। विद्यार्थी जीवन ही उसके राजनीति-क्षेत्र के अनुभव प्राप्त करने का उपयुक्त समय है।
राजनीति में विद्यार्थियों की सहभागिता के समर्थकों का कहना है कि आज के लोकतन्त्रीय युग में जब 18 वर्ष की आयु वाले सभी नागरिकों को मताधिकार प्रदान कर दिया गया है, तो विद्यार्थियों से यह अपेक्षा करना अन्यायपूर्ण होगा कि वे राजनीति में सहभागी न बनकर मात्र मौन दर्शक बने रहें।
बल्कि उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे देश की सार्वजनिक समस्याओं और उनके निराकरण के विकल्पों के सम्बन्ध में सतत जागरूक रहें। इस मत के समर्थकों का यह भी विचार है कि विद्यार्थियों में उतना उत्साह और जोश होता है, जितना किसी भी आन्दोलन की सफलता के लिए आवश्यक है। परिणाम स्वरूप जिस आन्दोलन में विद्यार्थी, मजदूर और किसान सम्मिलित होते हैं, उसे कोई दबा नहीं सकता।
गाँधी जी ने भी देश के स्वतन्त्रता आन्दोलनों में छात्रों को आमन्त्रित किया था। यही नहीं सन 1977 में देश में असाधारण राजनैतिक परिस्थितियों में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भी छात्रों को ही ललकारा था। फ्रान्स में भी छात्रों ने सरकार के विरूद्ध कई बार क्रान्ति की है।
इस प्रकार समय-समय पर देश-विदेश के कर्णधारों ने छात्र-शक्ति को राजनीतिक संघर्षों में भाग लेने के लिए आमन्त्रित किया है। यदि यह सब उचित है तो विद्यार्थियों को राजनीति से अलग रहने की सलाह न न्यायोचित है और न लाभदायक।विद्यार्थियों में जोश और उत्साह होता है।
न उनमें होश होता है और न ही विवेक की परिपक्वता। वे अनुभवहीन होने के कारण राजनीतिज्ञों की स्वार्थपरता के शिकार हो जाते हैं। वे न राजनीति में ही सफल होते हैं और न ही विद्याध्ययन में। वे राजनीतिक दलों की कठपुतली बन जाते हैं।
अत: विद्यार्थी को राजनीतिक दलों से विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए। यदि सक्रिय राजनीति में घुसना है तो शिक्षा समाप्त करने के बाद ही ऐसा करना श्रेयस्कर होगा।विद्यार्थी का परम लक्ष्य-विद्यार्थी का परम लक्ष्य विद्या प्राप्ति है। विद्यार्थी को सभी प्रकार के प्रलोभनों और सुखों को त्याग कर विद्यार्जन में लग जाना चाहिए।
विद्या और ज्ञान की गरिमा से मण्डित होकर ही विद्यार्थी अपने वर्तमान लक्ष्य के प्रति ईमानदार रह सकता है और भावी जीवन की दिशा निर्धारित कर सकता है। विद्यार्थी को अपने परम लक्ष्य से भ्रष्ट होकर व्यावहारिक राजनीति में भाग लेना कदापि हितकर नहीं है।
उपसंहार-विद्यार्थी सर्वप्रथम राजनीति-शास्त्र का अध्ययन करें, तत्पश्चात् राजनीति में भाग लें। इस प्रकार के विद्यार्थी ही दूपित राजनीति को दूर कर सकते हैं। विद्यार्थी का पहला लक्ष्य विद्या ग्रहण करना है। निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि विद्यार्थी को परिपक्व हो जाने पर ही राजनीति में भाग लेना चाहिए, जिससे देश को कुशल नागरिक एवं राजनीतिज्ञ प्राप्त हो सकें। वर्तमान राजनीति से देश का कल्याण सम्भव नहीं। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।
शब्दार्थ-ज्ञानार्जन-ज्ञान प्राप्त करना; उत्तरदायित्वों जिम्मेदारियों: परिचालित-चलाया हुआ, निर्वाह किया हुआ; सहभागिता-हिस्सेदारी; आमन्त्रित करना=बुलावा देना; श्रेयस्कर श्रेष्ठ, अच्छा।