रेल यात्रा पर निबंध | Essay on Train Journey in Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम रेल यात्रा इस विषय पर हिंदी निबंध जानेंगे। रेलगाड़ी की यात्रा एक बहुत ही लाभदायक अनुभव है। इसमें हम विभिन्न प्रकार के लोगों से मिलते हैं। यात्रियों के लिए जातियाँ अर्थहीन हो जाती हैं। वे एक दूसरे के प्रति सहानुभूतिशील हो जाते हैं।
रेलगाड़ी की यात्रा हमारे दृष्टिकोण को बढ़ाती है। इससे एकता और एक होने की भावना पैदा होती है। मुझे भी एक रेल यात्रा करने का अनुभव प्राप्त हुआ था। मुझे मेरे बड़े भाई ने शिमला आने का न्यौता दिया। मैं इस विचार से उछल पड़ा और अपने पिता से शिमला जाने की अनुमति माँगने लगा। वे खुशी से मान गए।
मैंने अपना बिस्तर, गर्म कपड़े और कुछ पुस्तकें पैक कर लिया। मैं एक ऑटो रिक्शा द्वारा समय पर स्टेशन पहुँच गया। टिकट लेकर मैं प्लेटफार्म पर गया। ट्रेन रात के साढ़े नौ बजे आयी। मुझे रेलगाड़ी में चढ़ने में कुछ दिक्कत हो रही थी किन्तु मेरे कुली ने बहुत मदद की।
इस मदद के लिए मैंने उसे उसकी मजदूरी का दुगुना पैसा दिया। कुछ ही देर में रेलगाड़ी ने सीटी बजाई और चल पड़ी। हावड़ा से आने वाले यात्री आराम से लेटे हुए थे। बैठ कर मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैंने एक पत्रिका निकाली और उसे पढ़ने लगा।
मेरे सहयात्रियों ने भी जागने के लिए कुछ दूसरा उपाय किया। उनमें से कुछ मेरी तरह अखबार या पत्रिका पढ़ने लगे। कुछ ताश खेलने लगे। मौसम बहुत ही अच्छा था और खिड़की के पास बैठकर मैं काफी आराम अनुभव कर रहा था।
एक यात्री जो मेरे बगल में बैठा था, करनाल में उतर गया। मैंने उस जगह अपने शरीर को कुछ और फैलाने लायक पाया। एक कप चाय पीकर मैंने सोने की कोशिश की। प्रत्येक स्टेशन में मुझे सोने में बाधा होने लगी। चण्डीगढ़ में काफी संख्या में यात्री उतरे और मैं लेट कर सोने में समर्थ हो गया। कुछ ही मिनटों में मैं गहरी नींद में सो गया।
मेरी नींद अगले दिन सुबह कालका में खुली। मुझे यहाँ से शिमला के लिए दूसरी गाड़ी पकड़नी थी। मैं छोटी लाईन की ट्रेन के एक डिब्बे में चढ़ गया तथा मुझे बैठने की जगह मिल गयी।
चूँकि रेलगाड़ी को चढ़ाई पार करनी थी इसलिए इसकी गति बहुत की कम थी। बाहर चारों ओर का दृश्य अत्यन्त ही मनोरम था। दूर-दूर तक ऊँचे पहाड़ थे। यत्र-तब मुझे धान और सब्जियों के छोटे खेत दिखाई दे रहे थे। लगभग आधे घण्टे के बाद हमने पहली सुरंग को पार किया।
अब रेलगाड़ी टेढ़े-मेढ़े रास्ते से नीचे की ओर उतरने लगी। ऊँचे-ऊँचे चीड़ के वृक्ष नजर आने लगे। कहीं-कहीं रेल की पटरियाँ पहाड़ की ऊँची दीवारों से सटी हुई थीं। सोलन में मुझे कुछ ठण्ड का आभास हुआ और मैंने अपना गर्म कोट पहन लिया।
सोलन के आगे आसमान गहरे काले बादलों से ढका हुआ था। रेलगाड़ी दोपहर में शिमला पहुंची। मेरे भाई स्टेशन में मुझे लेने आए हुए थे। हमने एक कुली लिया और सुरक्षित घर पहुंच गए। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।