महिला आरक्षण हिंदी निबंध | Essay on Women Reservation in Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम महिला आरक्षण इस विषय पर निबंध जानेंगे। महिला आरक्षण का औचित्य ध्यातव्य है कि देश के सभी नागरिकों से अभिप्राय देश के सभी मर्दो या पुरुषों से है, यह हमारी भ्रांति हैं। सभी नागरिकों से अभिप्राय पुरुषों एवं नारियों दोनों से है।
किसी भी देश की सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रगति के लिए यह नितांत आवश्यक है कि उस देश के समस्त नागरिकों को प्रत्येक क्षेत्र में समान रूप से विभिन्न सुविधाओं एवं अवसरों का लाभ प्राप्त करने, विभिन्न संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करने तथा विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति करने का अवसर प्राप्त हो।
भारतीय संविधान के अंतर्गत देश के सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान किया गया है। परन्तु भारतीय समाज की दोषपूर्ण संरचना, समाज में व्याप्त जातिवाद की भावना तथा नारियों के प्रति अन्यायपूर्वक विचारधाराओं के परिणामस्वरूप समानता के अधिकार का समान रूप से उपयोग कर पाना संभव नहीं हो सका है।
समाज के विभिन्न निर्बल वर्गों के अन्तर्गत महिलाओं को भी समाज के एक अत्यंत निर्बल एवं असहाय वर्ग के अन्तर्गत ही सम्मिलित किया गया है।महिलाओं के राजनीतिक क्षेत्र में आरक्षण हेतु ब्रिटिश काल से ही प्रयास किए जाने लगे थे।
सर्वप्रथम सन् 1917 में सरोजिनी नायडू के नेतृत्व में महिलाओं के एक प्रतिनिधि मण्डल ने ब्रिटिश सरकार के समक्ष यह मांग रखी कि महिलाओं को राजनीतिक क्षेत्र में पुरुषों के समान ही अधिकार प्रदान किए जाएं। उनकी इस मांग को न्यायोचित मानते हुए ब्रिटिश सरकार ने महिलाओं को भी कुछ राजनीतिक अधिकार प्रदान किए और उनके लिए कुछ स्थान आरक्षित कर दिए।
सन् 1937 तक महिलाओं को विधानसभा की सीटों के लिए चुनाव लड़ने का अवसर प्राप्त । हुआ और उन्होंने जन-प्रतिनिधि के रूप में विधानसभाओं में प्रवेश किया। आरक्षण की व्यवस्था के परिणामस्वरूप ही उन्हें यह सफलता प्राप्त हो सकी थी।
1937 में विधानसभाओं के लिए सम्पन्न चुनावों में देश की 41 महिलाओं ने विधानसभाओं की सीटों पर विजय प्राप्त की। स्वाधीनता प्राप्ति के उपरान्त भारतीय संविधान के अंतर्गत राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं के आरक्षण की आवश्यकता को नकार दिया गया।
अत: स्वतंत्र भारत में लोकसभा एवं विधानसभाओं के लिए बिना आरक्षण के ही महिलाओं ने चुनाव लड़े और निरन्तर कुछ न कुछ सफलता प्राप्त की।अभी तक महिलाओं को राजनीतिक दृष्टि से देश का प्रतिनिधित्व करने का पास अवसर प्राप्त नहीं हो सका है।
काका कालेलकर की अध्यक्षता में गठित पिछड़ा वर्ग आयोग के द्वारा भी उसकी संस्तुति की गई थी। उसके उपरांत मण्डल आयोग ने भी इस आवश्यकता का अनुभव करते हुए महिलाओं के लिए आरक्षण को सिफारिश की थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसी भी भारतीय सरकार ने महिलाओं के लिए आरक्षण हेतु कोई सार्थक प्रयास नहीं किया।
मण्डल आयोग को सिफारिशें लागू करते समय भी, महिलाओं के आरक्षण से सम्बन्धित सिफारिश को पूर्णतः उपेक्षा कर दी गई। जब इस संदर्भ में उच्चतम न्यायालय में याचिका दायिर हुई, तब भी सरकार ने इस संदर्भ में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया।
'मण्डल आयोग' की महिला आरक्षण सम्बन्धी संस्तुतियों के लागू न होने के उपरान्त, महिला आरक्षण की मांग और अधिक बलवती होती चली गई और महिलाओं को संसद एवं विधासभाओं में 33% आरक्षण देने हेतु संसद में महिला आरक्षण विधेयक' प्रस्तुत किया गया।
जिसे 10वीं लोकसभा ने पारित कर दिया था परन्तु तत्कालीन प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह ने इसके उपरान्त भी महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं की। यह विधेयक महिलाओं के लिए काफी आकर्षक दिखा-लेकिन सिर्फ दिखा ही, हुआ कुछ नहीं।
इन प्रयासों के अंतर्गत 25 जून 1998 को केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने महिला आरक्षण विधेयक के प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति प्रदान की। इस प्रस्ताव के अन्तर्गत पिछड़े वर्ग की महिलाओं को पृथक से आरक्षण देने की मांग को स्वीकृत नहीं किया जबकि समता पार्टी, राजद, समाजवादी पार्टी आदि कई दल इसके लिए मांग कर रहे थे।
यह भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश के लिए अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है कि महिलाओं के सम्मान एवं शक्ति की दिशा में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विधेयक अभी तक अधर में ही लटका हुआ है।
लेकिन इतना सुनिश्चित है कि राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की वांछित भागीदारी से सम्बन्धित इस विधेयक को अधिक समय तक रोक कर नहीं रखा जा सकता। इस विधेयक का विरोध किया जाना किसी भी राजनीतिक पार्टी के अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है।दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।