नारी/महिला सुरक्षा पर हिंदी निबंध | Essay on Women Safety in Hindi

 

 नारी/महिला सुरक्षा पर हिंदी निबंध | Essay on Women Safety in Hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम नारी/महिला सुरक्षा  इस विषय पर निबंध जानेंगे। प्रस्तावना-स्वतन्त्रता के 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं। जब से देश को स्वतन्त्रता मिली है तब से देश में सामाजिक एवं राजनीतिक परिवर्तन देखने को मिले हैं। इस परिवर्तन में सबसे अधिक असर नारी पर हुआ है।


जिस ओर नगरों एवं कस्बों पर नई तकनीकों का प्रहार हुआ है उसी ओर शिक्षा के बलबूते पर भारतीय नारी ने भी पुरुषों को मात दे दी है। राजनीति, विज्ञान, चिकित्सा एवं सैन्य क्षेत्र में भी नारी ने अपनी धाक जमाई है इसी तरह नारी ने अपनी योग्यता के बल पर राष्ट्र को नया गौरव प्रदान किया है। 


राजनीति के क्षेत्र में श्रीमती इन्दिरा गांधी, मोहसिना किदवई, डॉ० राजेन्द्र कुमारी वाजेपयी आदि के योगदानों को राष्ट्र कभी नहीं भुला सकता। सामाजिक सेवा के क्षेत्र में मदर टेरेसा का तो कोई पर्याय ही नहीं है। इसी तरह आज के समाज में भी नारी की पहुँच काफी बढ़ चुकी है। 


यदि नारी ने शिक्षा में व्याप्त बुराइयों के निवारण का प्रयत्न किया तो अर्थ के क्षेत्र में भी मुद्रा स्फीति को नियन्त्रित करने के कई उपाय भी सुझाये। आज नारी के क्रियाकलापों से कोई भी क्षेत्र वंचित नहीं रह गया है।


(1) भारतीय नारी का भूतकाल जो स्थिति नारी की आज के युग में है वह स्थिति कभी उसकी वैदिक काल में हुआ करती थी। वैदिक काल के ग्रन्थों में नारी के अभ्यर्थना के प्रमाण आज भी देखे या पढ़े जा सकते हैं, जैसे-विद्या, विभूति और शक्ति के रूपों में क्रमशः सरस्वती, लक्ष्मी एवं दुर्गा के रूपों का वर्णन किया गया है। 


महान मनु ऋषि ने कहा था कि जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवताओं का वास होता है। घोषा, अपाला माण्डवी आदि ने तो वैदिक काल में पुरुषों के समान स्थान प्राप्त कर लिया था। गार्गी आदि नारियों ने भी अपने ज्ञान से समाज को संकट से बचाया था, परन्तु रामायण एवं यहाँ भारतवर्ष में नारी की स्थिति दयनीय होने लगी।


सीता की अग्नि परीक्षा और वनवास तथा द्रोपदी का चीरहरण एक ओर जहाँ समाज में पुरुष की प्रधानता दर्शाता है वहीं दूसरी ओर समाज में स्त्रियों के प्रति दमनकारी एवं उत्पीड़क रवैये को भी उजागर करता है।


(2) मुगलकाल की नारियाँ-भूतकाल की दशा से प्रेरित होकर मुगलकाल में अत्यधिक परिवर्तन आया। इस काल में नारी का रूप देवी का रूप हुआ एवं पुरुषों की दशा नगण्य रही। नारी को धीरे-धीरे विलास का साधन मात्र बनाया गया। समाज में ऊँचा स्थान नहीं दिया गया। घरों के भीतर रहना उसकी मजबूरी बन गयी। 


पति की मृत्यु के बाद उसे कलंकिनी के नाम का धब्बा लगने लगा, जिस कारण उसके पास मृत्यु के अलावा कोई साधन शेष नहीं रह गया था। इतना सब घटित होने पर भी नारी ने अपना हौसला नहीं छोड़ा; जैसे-मीराबाई, रानी कर्णवती, चाँदबीबी, लक्ष्मीबाई, नूरजहाँ आदि नारियों ने समाज के गौरव को बढ़ाकर राष्ट्र के हित के लिये अनेक महान् कार्य किये।


(3) आधुनिक काल की नारी आधुनिक काल की नारी में अनेक रूप देखने को मिलते हैं। इस काल में नारी ने स्वयं को फिल्मों, विज्ञापनों आदि के रूप में प्रस्तुत किया, जिस कारण मैथिलीशरण गुप्त की निगाह में वह अबला बनी वहीं जयशंकर प्रसाद की निगाहों में श्रद्धा का पात्र बनी। 


यहाँ नारी के विषय में गाँधी जी कहते हैं इसमें पशुबल नहीं है तो इसे अबला कहना उचित नहीं होगा। वास्तविक तौर पर नारी में उन सभी गुणों का समावेश है। जो एक पुरुष में भी नहीं है। नारी में धैर्य तथा दूसरों के दुःख में दुःखी एवं दूसरों के लिये अपना सब कछ न्यौछावर कर देने की क्षमता है। 


नारी परिवार की इकाई एवं उसका एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है। गाँधी जी नारी शिक्षा के हिमायती थे एवं नारी को हर क्षेत्र में आगे लाने की कोशिश करते रहते थे। जो कोशिश उनकी आज साकार हो रही है। इस सम्बन्ध में नारी के पिछड़ेपन को दूर करने के लिये राजाराम मोहन राय ने अनेकों संघर्ष किये एवं उन्होंने अपने मकसद में सफलता हासिल कर ही ली।


उन्होंने बाल-विवाह, सती प्रथा (जिसमें पति की मृत्यु के पश्चात् स्त्री को मजबूरीवश पति की चिता के साथ जिन्दा जल जाना पड़ता था), विधवा विवाह का पुनर्जागरण किया। उन्होंने समाज की इन सभी कुरीतियों को खत्म कर दिया। फिर उन्होंने नारी को प्रगतिशील विचारधारा का मार्ग दिखाया। 


सन् 1918 के बाद से भारतीय नारियों ने राष्ट्रीय आन्दोलनों में खुलकर हिस्सा लेना आरम्भ किया जिसमें नारियों की सामाजिक दशा सुधारने के कार्य किये गये। सन् 1947 में देश स्वतन्त्र होने के पश्चात ही नारी को संविधान में समान दर्जा दिया जाने लगा।


वैवाहिक जीवन में समरसता को दूर करने के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम, 1952 तथा विशेष विवाह अधिनिमय, 1956 का अधिनिमय लागू किया गया। दहेज निवारण हेतु अधिनियम, 1961 तथा बाल विवाह अधिनिमय, 1983 के साथ-साथ महिला का अश्लील प्रस्तुतीकारण विरोध कानून, 1986 ने नारियों को कई प्रकार के संरक्षण प्रदान किये गये।


इसके अतिरिक्त भारतीय दण्ड संहिता में भी नारियों के प्रति किये गये अपराधों के लिये दण्ड की व्यवस्था की गई। पुराने स्वरूप के साथ नए चरित्र को गढ़ना तपस्या जैसा ही कार्य है, जो नारी के लिये ही सम्भव है। इतना धैर्य और साहस पुरुषों में कहाँ ?


(4) नारी पर अन्याय एवं उसका आन्दोलन वास्तव में भारत हर क्षेत्र में आगे क्यों ही न पहुँच गया हो, परन्तु नारी पर अन्याय करने में सबसे आगे है। यदि केन्द्रीय आंकड़ों के हिसाब से अवलोकन किया जाये तो बलात्कार, दहेज हत्या, भूण हत्या आदि अपराधों ने अन्य अपराधों की अपेक्षा, अधिक जोर पकड़ रखा है।


उत्तर प्रदेश में 925 बलात्कार, 910 दहेज हत्या, 1021 महिला अपहरण तथा 1309 महिलाओं के साथ छेड़छाड़ हुई, यह तो केवल एक अनुमान है सरकारी आँकड़े तो इससे कहीं अधिक आँकड़े दर्शाते हैं। महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों पर पुलिस या सरकार का रवैया भी टरकाऊ रहता है।


अपराधों से निपटने के उपाय भारत में दहेज समस्या-निवारण हेतु कई संस्थायें कार्यरत हैं। ये संस्थायें आर्य-समाजी रीति से विवाह दहेज रहित कराती हैं। सरकार द्वारा दहेज निवारक अधिनियम में संशोधन किये गये हैं कि जैसे दहेज लाना, दहेज देना अपराध है। युवा वर्ग जो भावी समाज का कर्णधार है, यदि अभी से इस विषय को गम्भीरता से ले लें तो इस दहेज हत्या, बलात्कार, आदि जैसे अपराधों से निपटारा पाया जा सकता है।


उपसंहार उपसंहार यह है कि आज के समाज में नारी की दशा बहत ही दयनीय है। आज की नारी ने अपनी योग्यता के बल पर राष्ट्र को नया गौरव प्रदान किया है। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।