भिखारी की आत्मकथा पर निबंध | Hindi Essay on Bhikhari ki Aatmakatha
नमस्कार दोस्तों आज हम भिखारी की आत्मकथा इस विषय पर निबंध जानेंगे। इस लेख मे कुल २ निबंध दिये गये हे जिन्हे आप एक -एक करके पढ सकते हे ।जी हाँ, मैं एक भिखमंगा हूँ। मेरे सामने पैसे फेंकनेवाले तो बहुत मिलते हैं,आप पहले आदमी हैं, जिसने मेरे जीवन के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की है।
मेरे माता-पिता बड़े किसानों के खेतों में मजदूरी करते थे। उनके पास न अपनी जमीन थी, न घर था। घर के नाम पर नदी किनारे एक टूटी-फूटी झोंपड़ी थी। पिता आलसी और कामचोर थे। उन्हें देशी शराब पीने की भी लत थी। बेचारी माँ के भरोसे ही हमें दो जून रूखा-सूखा खाना मिल पाता था।
थोड़ा बड़ा होने पर मैं भी उनके साथ मजदूरी के लिए जाने लगा। पढ़ाई-लिखाई मेरी किस्मत में लिखी ही नहीं थी।हमारा अभावोंभरा जीवन किसी तरह बीत रहा था। उन्हीं दिनों एक अनहोनी हो गई। वर्षाऋतु में कई दिन तक मूसलाधार बारिश हुई। उसके कारण नदी में भीषण बाढ़ आ गई।
नदी किनारे स्थित सारे झोपड़ें बाढ़ के पानी में बह गए। हम बेघर हो गए। विधाता को इतने से ही संतोष न हुआ। बाढ़ का पानी कम होने पर गाँव में हैजा फैल गया। मेरे माता-पिता इस महामारी की चपेट में आ गए। जो थोड़ी-बहुत रकम थी, वह उनके इलाज में चली गई। इसके बावजूद दोनों मुझे अनाथ और निराश्रित बनाकर इस दुनिया से कूच कर गए।
अब मेरे सामने पेट भरने का सवाल खड़ा हो गया। गाँव में तो अब काम मिलनेवाला नहीं था। लाचार होकर मैं नजदीक के कस्बे में चला गया। वहाँ कई जगह छोटे-मोटे काम किए, पर कहीं टिक नहीं पाया। कोई अच्छा-सा काम पाने के लालच में मैं इस शहर में आया।
एक दिन काम की तलाश में भटकते हुए मैं एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया। पुलिस मुझे सरकारी अस्पताल ले गई। डॉक्टरों ने मेरी जान बचाने के लिए मेरा दाहिना पैर काट दिया। अस्पताल से निकलने के बाद मैं बिलकुल असहाय हो गया। अब कहीं काम मिलने की उम्मीद नहीं थी।
तब पेट का सवाल हल करने के लिए मुझे भीख माँगने के लिए मजबूर होना पड़ा। _शुरू-शुरू में लोगों से पैसे माँगने में मुझे झिझक होती थी। फिर धीरे-धीरे शर्म छूटती गई। आज कई सालों से मैं भिगमंगे की जिंदगी बिता रहा हूँ। समाज में मेरा कोई स्थान नहीं है। लोग मुझसे नफरत करते हैं।
हाँ, मुझ पर तरस खाकर वे मुझे पैसे दे देते हैं। पुलिस मुझे परेशान करती है। छोटे-मोटे गुंडे भी मुझसे पैसे माँगते हैं। पहले तो लोग पुण्य कमाने के लिए भीख में पैसे दिया करते थे, पर आज लोग कंजूस हो गए हैं ! वे भिखारियों को पैसा देना पाप समझते हैं। महँगाई के इस जमाने में अब जीना कठिन लग रहा है। अब तो फुटपाथों पर भी सोने की जगह नहीं मिलती।
जाड़े और बरसात के मौसम में बड़ा कष्ट होता है। आप मेरी इस जर्जर बूढ़ी काया को देख रहे हैं न। इतना बूढ़ा होकर मैंने यही सीख पाई है कि भिखारी होना बहुत बड़ा पाप है। ईश्वर से यही विनती है कि वह किसी को कभी भिखारी न बनाए। आपकी हमदर्दी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए । और आगे दिया हुआ दूसरा निबंध पढ़ना मत भूलियेगा धन्यवाद ।