प्रदूषण पर निबंध | hindi essay on pollution


निबंध 1 
नमस्कार  दोस्तों आज हम प्रदूषण पर निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे।  इस लेख मे कुल २ निबंध दिये गये हे जिन्‍हे आप एक -एक करके पढ सकते हे | मानव को ही नहीं, वरन् जीवों को भी सुव्यवस्थित रूप में जीवन जीने के लिए सन्तुलित वातावरण चाहिए। सन्तुलित वातावरण में समस्त तत्व एक निश्चित मात्रा में होते हैं। परन्तु जब वातावरण में कभी इन तत्वों की कमी होती है या अन्य हानिकारक तत्व इसमें आकर मिल जाते हैं, तब वातावरण प्रदूषित होता है और मानव के लिए किसी-न-किसी रूप में हानिकारक सिद्ध होता है। 


आज सम्पूर्ण विश्व प्रदूषण की भयंकर चपेट में आ गया है। हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रदूषण घर कर चुका है और हम पूर्ण रूप से इसकी मुट्ठी में प्राचीन काल में यह समस्या इतनी विकट नहीं थी। उस समय प्रदूषण का नामो-निशान भी नहीं था। 

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प्रकृति में एक सन्तुलन था। जल और वायु शुद्ध थे, पृथ्वी की उर्वरा शक्ति अधिक थी। धीरे-धीरे जनसंख्या में विस्तार होता गया। मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नित नये कारखाने खुलने लगे। औद्योगीकरण की दौड़ में प्रत्येक राष्ट्र अंधाधुंध भाग रहा है। विलासिता की वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए धरा के गर्भ में बहुमूल्य सम्पदा को खींचकर बाहर लाया जा रहा है। प्राकृतिक सम्पदाओं के नष्ट होते ही धरा के भीतर का कोयला, खनिज तेल, धातुएं, गैसों के रूप में परिवर्तित होकर सम्पूर्ण वायुमंडल में व्याप्त हो जायेंगी और मानव का जीवन दूभर हो जाएगा।


जनसंख्या वृद्धि के कारण आवासीय संकट उत्पन्न हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप छोटे-छोटे भूखंडों पर छोटे-छोटे मकान बनाए जा रहे हैं। दस-दस मंजिली ऊंची इमारतें बनाई जा रही हैं। इन मकानों में सूर्य का प्रकाश और शुद्ध वायु का अभाव रहता है। जंगलों को काट कर रहने योग्य बनाया जा रहा है।
इस प्रदूषण का कारण मानव स्वयं है। समुद्र को असीमित शक्ति वाला समझकर, सारा कचरा इसमें डाल रहा है। नदियां भी अपने प्रदूषित जल को समुद्र में फेंक देती है। 



वैज्ञानिकों द्वारा चेतावनी दिये जाने पर भी औद्योगिक इकाइयों द्वारा कूड़ा-कचरा डालना बन्द न हुआ तो मछलियां शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त होंगी। वर्तमान में हजारों जलयान व पेट्रोलियम टैंकर प्रतिदिन समुद्र में आवागमन करते हैं। एक ओर तो ये मानव को प्रगति की ओर ले जाते हैं, वहीं दूसरी ओर लाखों टन पेट्रोलियम रिसाव या दुर्घटना के कारण समुद्र की सतह पर फैल जाता है। 


यह समुद्र के पर्यावरण के लिए भयंकर खतरा है। इस तेल में अनेक भारी धातुएं जैसे सीसा, निकल, मैंगनीज आदि होती हैं, जो जीवों या वनस्पति के द्वारा मानव के शरीर में पहुंचकर उसको हानि पहुंचाती हैं। नदियों के जल-प्रदूषण की वजह से पेय जल संकट विकराल रूप धारण कर रहा है। ध्वनि प्रदूषण से मानव की श्रवण शक्ति क्षीण होती है। इससे चिड़चिड़ापन, थकान, अनिद्रा, श्वास के रोग आदि उत्पन्न हो जाते हैं।



शहरों की आबादी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ग्रामों की प्रतिभा का पलायन शहरी जीवन को कष्टमय बना रहा है। ज्यों-ज्यों जनसंख्या घनत्व बढ़ता है, यातायात के साधनों में प्रयुक्त होने वाले वाहनों की संख्या भी बढ़ती जाती है। इन ईंधन चालित वाहनों से वायु प्रदूषण फैलता है जिसके कारण श्वास सम्बन्धी अनेक रोग उत्पन्न होते हैं, जैसे फेफड़े का कैंसर, दमा, खांसी, जुकाम आदि। वैसे वायु-प्रदूषण मन्द गति से विष का कार्य करता है, लेकिन ‘भोपाल गैस कांड' में निकली जहरीली गैस 'मिथाइल आइसो साइनेट' से हजारों लोग तत्काल मौत की गोद में सो गये। जो लोग मर गये, वे जीवन मुक्त हो गए। 


लेकिन जो बच गए, वे तिल-तिल कर जीवन जीने के लिए और प्रगतिशील राष्ट्र की वैज्ञानिकता का अभिशाप झेलने को मजबूर हैं। औद्योगिकरण की बढ़ती हुई प्रवृत्ति के कारण, कल-कारखानों से निकली जहरीली गैसें, वायु को विषाक्त कर देती हैं। कारखानों के पास लगे पेड़-पौधों पर कालिमा की परतें चढ़ जाती हैं, तो वहां रहने वाले लोगों का तो कहना ही क्या? अंतरिक्ष की पराबैंगनी किरणों से बचाने वाली ओजोन-परत में भी छेद हो गया है।



प्रकृति के प्रति मानव का अनुचित व्यवहार, इस समस्या को और भी उग्र कर देता है। वनों को काटना, उद्यानों को उजाड़ना और वातावरण को शुद्ध रखने वाले पेड़-पौधों को नष्ट करना मानव का स्वभाव बन गया है। यदि अभी 'वृक्षारोपण अभियान' को तीव्र गति से नहीं चलाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब प्रदूषण एक असाध्य रोग बन जाएगा।


आज कृषि का लगभग मशीनीकरण हो चुका है। उससे भी पर्यावरण प्रदूषित होता है। खेतों में अधिकाधिक उपज के लिए फसलों पर लाखों टन कीटनाशक रसायन छिड़के जाते हैं। उनकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए लाखों टन रासायनिक उर्वरक फसल बोने से पहले डाले जाते हैं। इस बढ़ती हुई उपज के लिए मानव को क्या कीमते चुकानी पड़ेगी, इससे शायद मानव आज अपरिचित है। यही रसायन खाद्यों द्वारा हमारे शरीर में धीरे-धीरे पहुंचते हैं और अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं।


 
आजकल ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए फलों, चावल, हल्दी आदि पर तरह-तरह के कृत्रिम रंग किये जाते हैं। यह रंग हमारे शरीर में पहुंचकर हानिकारक सिद्ध होते हैं। सारी पृथ्वी को प्रदूषित करके भी मानव को चैन नहीं मिला कि उसने खाद्य पदार्थों को भी दूषित करना प्रारम्भ कर दिया।
ताप प्रदूषण भी मानव जीवन के लिए घातक है। वातावरण में तनिक भी तापवृद्धि होते ही हिमखंड पिघलने लगते हैं। यदि पहाड़ों की बर्फ जल में परिवर्तित हो जायेगी, तो समस्त विश्व इसकी चपेट में आ जाएगा।



इस समस्या के समाधान के लिए अनेक वर्षों से वैज्ञानिक चिन्तित है। अनेक प्रयासों से कुछ सफलता मिली है। कल-कारखाने घनी आबादी से दूर लगाए जाये, जहरीली गैस निकासी के लिए ऊंची चिमनियां बनाई जायं। विषैली गैसों को निकासी से पहले ही नष्ट किया जाए। कूड़े-कचरे को निचले स्थान भरने के काम में लाया जाए। फसलों पर रासायनिक छिड़काव कम किया जाए और फसलों को स्वाभाविक रूप में ग्राहकों तक पहुंचने दिया जाए। गांवों से बुद्धिजीवियों का पलायन रोकने के लिए गांवों में रोजगार उपलब्ध कराये जाएं। वृक्षारोपण अभियान युद्ध स्तर पर छेड़ा जाए और वृक्षों का काटना रोका जाए। 


उद्योगों में उत्सर्जित गन्दे जल को साफ करने के लिए 'ऍफ्फलुऍन्ट ट्रीटमेंट प्लांट' लगाये जाये। वाहनों से प्रदूषण कम किया जाए। 'बायोडिग्रेडेबल वैग्स' प्रयोग में लाए जाएं।  विश्व में सर्वाधिक चर्चा का विषय प्रदूषण है। वैज्ञानिक प्रदूषण रोकने के लिए नई-नई तकनीकें विकसित करने में लगे हैं। प्रत्येक व्यक्ति को इस कार्य में महत्वपूर्ण योगदान देना चाहिए। यदि हम स्वयं प्रदूषण को कम करने में सहयोग नहीं देंगे, तो हम स्वर्ग से प्यारी पृथ्वी को 21वीं सदी में प्रवेश कराने से पूर्ण, हम इसकी क्या हालत बना देंगे, यह हम अच्छी तरह जान गए हैं। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए । और आगे दिया हुआ दूसरा निबंध पढ़ना मत भूलियेगा धन्यवाद  ।

निबंध 2

पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध हिंदी में 500 शब्दों (500 words )  Pollution Essay in Hindi Language

आज सारी दुनिया के सामने प्रदूषण की एक बड़ी समस्या खड़ी है। प्रदूषण का अर्थ है, मलिनता अथवा गंदगी की अधिकता। प्रदूषण की समस्या विकसित और विकासशील, दोनों प्रकार के देशों में भयानक रूप धारण कर चुकी है। दुनिया में प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे मानवजाति के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो गया है। क प्रदूषण चार प्रकार का होता है- भूमि-प्रदूषण, वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण और ध्वनि-प्रदूषण। विश्व की जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। सन २००० में विश्व की कल जनसंख्या ६ अरब ६७ करोड़ आँकी गई थी। इस विशाल और तीव्र गति से बढती


उदरपूर्ति के लिए विपुल मात्रा में अनाजों, दालों, साग-सब्जियों, फलों आदि करना पड़ता है। इसके लिए खेतों में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों आदि भारी मात्रा में उपयोग करना जरूरी हो गया है। इनके अत्यधिक उपयोग के कारण धरती धार-धीरे अनुपजाऊ और बंजर बनती जा रही है। 


इस विशाल जनसंख्या की मकान, ईंधन माद का जरूरतें पूरी करने के लिए जंगलों का व्यापक रूप से विनाश किया जा रहा इसके फलस्वरूप प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है और हरे-भरे क्षेत्र रेगिस्तान बनते जा रहे हैं। आणविक शस्त्रास्त्रों के भूगर्भ परीक्षणों से भूमि में रेडियो सक्रियता बढ़ती जा रही है।


औद्योगिक क्रांति के बाद उद्योग-धंधे बहुत तेजी से बढ़े हैं। कारखानों की चिमनियों से निकलनेवाले धुएँ में जहरीली गैसें होती हैं, जिनके कारण वायुमंडल प्रदूषित होता जा रहा है। इस प्रदूषण के फलस्वरूप अनेक स्थानों में बड़ी-बड़ी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें सबसे भयंकर दुर्घटना भोपाल गैस त्रासदी थी। यह दुर्घटना ३ दिसंबर, १९८४ को हुई थी। इसमें लगभग ३,००० लोग मरे थे और ४०,००० लोग गंभीर रूप से बीमार पड़े थे।


दुनिया भर में स्थापित २०० से अधिक अणु केंद्र वायुमंडल में लगातार रेडियो-सक्रिय किरणे छोड़ रहे हैं। इससे सारा वातावरण प्रदूषित होता जा रहा है और जीव-जंतु तथा वनस्पतियाँ प्रभावित हो रही हैं। यातायात और परिवहन के साधनों से निकलनेवाली गैसों तथा धुएँ से भी वायुमंडल में प्रदूषण बढ़ रहा है।


दुनिया भर में नगरों की संख्या और उनका विस्तार तेजी से बढ़ता जा रहा है। इन नगरों में इकट्ठा होनेवाला कूड़ा-कचरा पास की नदियों, झीलों अथवा समुद्रों में बहा दिया जाता है। इससे उनका जल दूषित हो जाता है। बड़े-बड़े कारखानों से भारी मात्रा में निकलनेवाले जहरीले रसायनों से भरपूर गंदा पानी तथा शहरों के नाले-नालियों का गंदा पानी पास की नदी, झील या सागर में छोड़ दिया जाता है। इससे उन जलाशयों का पानी भयानक रूप से दूषित हो जाता है। कपड़े धोने, पशुओं को नहलाने, शव आदि बहाने से भी नदियों तथा जलाशयों का जल दूषित हो जाता है।


छोटे-मोटे उद्योगों की मशीनों, मोटरकारों, मालवाही ट्रकों, रेलगाड़ियों, वायुयानों आदि यातायात तथा परिवहन के साधनों से पैदा होनेवाले शोर से ध्वनि-प्रदूषण बढ़ रहा है। उत्सव और त्योहारों के अवसरों पर लाउडस्पीकरों तथा पटाखों के शोर से भी ध्वनि-प्रदूषण की मात्रा बढ़ती जा रही है। यह प्रदूषण मानव के लिए असह्य बन गया है।



आज सारी मानवजाति को प्रदूषण के अनेक हानिकारक परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं। वनों की अंधाधुंध कटाई से प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है तथा मौसम अनिश्चित प्रकार का बन गया है। वर्षा की मात्रा में कमी आ गई है और बार-बार अकाल की स्थिति पैदा होने लगी है। जल-प्रदूषण के कारण जलीय वनस्पतियाँ और जीव-जंतु बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। बहुत बड़ी संख्या में लोग पेट के घातक रोगों से पीड़ित हो रहे हैं। 



जहरीली गैसों तथा रेडियो-सक्रिय कणों द्वारा होनेवाले वायु-प्रदूषण से बड़ी संख्या में लोग कैंसर, हृदयरोग, मानसिक तनाव आदि के शिकार हो रहे हैं। ध्वनि-प्रदूषण से लोगों में चिड़चिड़ापन, सिरदर्द, मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप आदि रोग फैल रहे हैं। नौकरियों के आकर्षण तथा अन्य अनेक कारणों से गाँवों के लोग शहरों में आ रहे हैं। इससे शहरों में गंदी बस्तियों का विस्तार होता जा रहा है, जिससे प्रदूषण और अधिक बढ़ रहा है।



प्रदूषण बढ़ने के कारण वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का अनुपात बढ़ता जा रहा है। इससे वायुमंडल को चारों ओर से घेरे रहनेवाली ओजोन गैस की परत में छेद हो गए हैं और वे बढ़ते ही जा रहे हैं। यदि ओज़ोन गैस की परत नष्ट हो गई, तो सूर्य की पराबैंगनी किरणें बेरोकटोक धरती तक पहुँचने लगेंगी और उनके प्रभाव से सभी प्राणियों का विनाश हो जाएगा।


प्रदूषण की समस्या हल करने के लिए अनेक उपाय सुझाए गए हैं। प्रदूषण कम करने अथवा रोकने का सबसे प्रभावकारी उपाय जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाना है। इसके अलावा, हमें अधिक से अधिक संख्या में वृक्ष लगाने चाहिए। उचित कानून बनाकर कारखानों की चिमनियाँ पर्याप्त ऊँची बनाने के लिए उद्योगपतियों को बाध्य करना चाहिए। 


ऐसा कानून बनाना चाहिए कि उद्योगपति अपने कारखानों से निकलनेवाले जहरीले रसायनों से युक्त गंदे जल को नदियों अथवा सागरों में न छोड़ें, बल्कि शुद्धिकरण की प्रक्रिया द्वारा उससे शुद्ध जल और ऊर्जा प्राप्त कर लें। यातायात तथा परिवहन के साधनों की कड़ाई से जाँच की जानी चाहिए और उनके द्वारा छोड़ी जानेवाली कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों की मात्रा घटाने की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए। रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग को नियंत्रित करना चाहिए। लोगों को प्रदूषण के बढ़ते खतरे के बारे में जानकारी देनी चाहिए। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।

प्रदूषण पर निबंध | hindi essay on pollution

 

प्रदूषण पर निबंध | hindi essay on pollution


निबंध 1 
नमस्कार  दोस्तों आज हम प्रदूषण पर निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे।  इस लेख मे कुल २ निबंध दिये गये हे जिन्‍हे आप एक -एक करके पढ सकते हे | मानव को ही नहीं, वरन् जीवों को भी सुव्यवस्थित रूप में जीवन जीने के लिए सन्तुलित वातावरण चाहिए। सन्तुलित वातावरण में समस्त तत्व एक निश्चित मात्रा में होते हैं। परन्तु जब वातावरण में कभी इन तत्वों की कमी होती है या अन्य हानिकारक तत्व इसमें आकर मिल जाते हैं, तब वातावरण प्रदूषित होता है और मानव के लिए किसी-न-किसी रूप में हानिकारक सिद्ध होता है। 


आज सम्पूर्ण विश्व प्रदूषण की भयंकर चपेट में आ गया है। हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रदूषण घर कर चुका है और हम पूर्ण रूप से इसकी मुट्ठी में प्राचीन काल में यह समस्या इतनी विकट नहीं थी। उस समय प्रदूषण का नामो-निशान भी नहीं था। 

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प्रकृति में एक सन्तुलन था। जल और वायु शुद्ध थे, पृथ्वी की उर्वरा शक्ति अधिक थी। धीरे-धीरे जनसंख्या में विस्तार होता गया। मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नित नये कारखाने खुलने लगे। औद्योगीकरण की दौड़ में प्रत्येक राष्ट्र अंधाधुंध भाग रहा है। विलासिता की वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए धरा के गर्भ में बहुमूल्य सम्पदा को खींचकर बाहर लाया जा रहा है। प्राकृतिक सम्पदाओं के नष्ट होते ही धरा के भीतर का कोयला, खनिज तेल, धातुएं, गैसों के रूप में परिवर्तित होकर सम्पूर्ण वायुमंडल में व्याप्त हो जायेंगी और मानव का जीवन दूभर हो जाएगा।


जनसंख्या वृद्धि के कारण आवासीय संकट उत्पन्न हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप छोटे-छोटे भूखंडों पर छोटे-छोटे मकान बनाए जा रहे हैं। दस-दस मंजिली ऊंची इमारतें बनाई जा रही हैं। इन मकानों में सूर्य का प्रकाश और शुद्ध वायु का अभाव रहता है। जंगलों को काट कर रहने योग्य बनाया जा रहा है।
इस प्रदूषण का कारण मानव स्वयं है। समुद्र को असीमित शक्ति वाला समझकर, सारा कचरा इसमें डाल रहा है। नदियां भी अपने प्रदूषित जल को समुद्र में फेंक देती है। 



वैज्ञानिकों द्वारा चेतावनी दिये जाने पर भी औद्योगिक इकाइयों द्वारा कूड़ा-कचरा डालना बन्द न हुआ तो मछलियां शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त होंगी। वर्तमान में हजारों जलयान व पेट्रोलियम टैंकर प्रतिदिन समुद्र में आवागमन करते हैं। एक ओर तो ये मानव को प्रगति की ओर ले जाते हैं, वहीं दूसरी ओर लाखों टन पेट्रोलियम रिसाव या दुर्घटना के कारण समुद्र की सतह पर फैल जाता है। 


यह समुद्र के पर्यावरण के लिए भयंकर खतरा है। इस तेल में अनेक भारी धातुएं जैसे सीसा, निकल, मैंगनीज आदि होती हैं, जो जीवों या वनस्पति के द्वारा मानव के शरीर में पहुंचकर उसको हानि पहुंचाती हैं। नदियों के जल-प्रदूषण की वजह से पेय जल संकट विकराल रूप धारण कर रहा है। ध्वनि प्रदूषण से मानव की श्रवण शक्ति क्षीण होती है। इससे चिड़चिड़ापन, थकान, अनिद्रा, श्वास के रोग आदि उत्पन्न हो जाते हैं।



शहरों की आबादी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ग्रामों की प्रतिभा का पलायन शहरी जीवन को कष्टमय बना रहा है। ज्यों-ज्यों जनसंख्या घनत्व बढ़ता है, यातायात के साधनों में प्रयुक्त होने वाले वाहनों की संख्या भी बढ़ती जाती है। इन ईंधन चालित वाहनों से वायु प्रदूषण फैलता है जिसके कारण श्वास सम्बन्धी अनेक रोग उत्पन्न होते हैं, जैसे फेफड़े का कैंसर, दमा, खांसी, जुकाम आदि। वैसे वायु-प्रदूषण मन्द गति से विष का कार्य करता है, लेकिन ‘भोपाल गैस कांड' में निकली जहरीली गैस 'मिथाइल आइसो साइनेट' से हजारों लोग तत्काल मौत की गोद में सो गये। जो लोग मर गये, वे जीवन मुक्त हो गए। 


लेकिन जो बच गए, वे तिल-तिल कर जीवन जीने के लिए और प्रगतिशील राष्ट्र की वैज्ञानिकता का अभिशाप झेलने को मजबूर हैं। औद्योगिकरण की बढ़ती हुई प्रवृत्ति के कारण, कल-कारखानों से निकली जहरीली गैसें, वायु को विषाक्त कर देती हैं। कारखानों के पास लगे पेड़-पौधों पर कालिमा की परतें चढ़ जाती हैं, तो वहां रहने वाले लोगों का तो कहना ही क्या? अंतरिक्ष की पराबैंगनी किरणों से बचाने वाली ओजोन-परत में भी छेद हो गया है।



प्रकृति के प्रति मानव का अनुचित व्यवहार, इस समस्या को और भी उग्र कर देता है। वनों को काटना, उद्यानों को उजाड़ना और वातावरण को शुद्ध रखने वाले पेड़-पौधों को नष्ट करना मानव का स्वभाव बन गया है। यदि अभी 'वृक्षारोपण अभियान' को तीव्र गति से नहीं चलाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब प्रदूषण एक असाध्य रोग बन जाएगा।


आज कृषि का लगभग मशीनीकरण हो चुका है। उससे भी पर्यावरण प्रदूषित होता है। खेतों में अधिकाधिक उपज के लिए फसलों पर लाखों टन कीटनाशक रसायन छिड़के जाते हैं। उनकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए लाखों टन रासायनिक उर्वरक फसल बोने से पहले डाले जाते हैं। इस बढ़ती हुई उपज के लिए मानव को क्या कीमते चुकानी पड़ेगी, इससे शायद मानव आज अपरिचित है। यही रसायन खाद्यों द्वारा हमारे शरीर में धीरे-धीरे पहुंचते हैं और अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं।


 
आजकल ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए फलों, चावल, हल्दी आदि पर तरह-तरह के कृत्रिम रंग किये जाते हैं। यह रंग हमारे शरीर में पहुंचकर हानिकारक सिद्ध होते हैं। सारी पृथ्वी को प्रदूषित करके भी मानव को चैन नहीं मिला कि उसने खाद्य पदार्थों को भी दूषित करना प्रारम्भ कर दिया।
ताप प्रदूषण भी मानव जीवन के लिए घातक है। वातावरण में तनिक भी तापवृद्धि होते ही हिमखंड पिघलने लगते हैं। यदि पहाड़ों की बर्फ जल में परिवर्तित हो जायेगी, तो समस्त विश्व इसकी चपेट में आ जाएगा।



इस समस्या के समाधान के लिए अनेक वर्षों से वैज्ञानिक चिन्तित है। अनेक प्रयासों से कुछ सफलता मिली है। कल-कारखाने घनी आबादी से दूर लगाए जाये, जहरीली गैस निकासी के लिए ऊंची चिमनियां बनाई जायं। विषैली गैसों को निकासी से पहले ही नष्ट किया जाए। कूड़े-कचरे को निचले स्थान भरने के काम में लाया जाए। फसलों पर रासायनिक छिड़काव कम किया जाए और फसलों को स्वाभाविक रूप में ग्राहकों तक पहुंचने दिया जाए। गांवों से बुद्धिजीवियों का पलायन रोकने के लिए गांवों में रोजगार उपलब्ध कराये जाएं। वृक्षारोपण अभियान युद्ध स्तर पर छेड़ा जाए और वृक्षों का काटना रोका जाए। 


उद्योगों में उत्सर्जित गन्दे जल को साफ करने के लिए 'ऍफ्फलुऍन्ट ट्रीटमेंट प्लांट' लगाये जाये। वाहनों से प्रदूषण कम किया जाए। 'बायोडिग्रेडेबल वैग्स' प्रयोग में लाए जाएं।  विश्व में सर्वाधिक चर्चा का विषय प्रदूषण है। वैज्ञानिक प्रदूषण रोकने के लिए नई-नई तकनीकें विकसित करने में लगे हैं। प्रत्येक व्यक्ति को इस कार्य में महत्वपूर्ण योगदान देना चाहिए। यदि हम स्वयं प्रदूषण को कम करने में सहयोग नहीं देंगे, तो हम स्वर्ग से प्यारी पृथ्वी को 21वीं सदी में प्रवेश कराने से पूर्ण, हम इसकी क्या हालत बना देंगे, यह हम अच्छी तरह जान गए हैं। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए । और आगे दिया हुआ दूसरा निबंध पढ़ना मत भूलियेगा धन्यवाद  ।

निबंध 2

पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध हिंदी में 500 शब्दों (500 words )  Pollution Essay in Hindi Language

आज सारी दुनिया के सामने प्रदूषण की एक बड़ी समस्या खड़ी है। प्रदूषण का अर्थ है, मलिनता अथवा गंदगी की अधिकता। प्रदूषण की समस्या विकसित और विकासशील, दोनों प्रकार के देशों में भयानक रूप धारण कर चुकी है। दुनिया में प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे मानवजाति के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो गया है। क प्रदूषण चार प्रकार का होता है- भूमि-प्रदूषण, वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण और ध्वनि-प्रदूषण। विश्व की जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। सन २००० में विश्व की कल जनसंख्या ६ अरब ६७ करोड़ आँकी गई थी। इस विशाल और तीव्र गति से बढती


उदरपूर्ति के लिए विपुल मात्रा में अनाजों, दालों, साग-सब्जियों, फलों आदि करना पड़ता है। इसके लिए खेतों में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों आदि भारी मात्रा में उपयोग करना जरूरी हो गया है। इनके अत्यधिक उपयोग के कारण धरती धार-धीरे अनुपजाऊ और बंजर बनती जा रही है। 


इस विशाल जनसंख्या की मकान, ईंधन माद का जरूरतें पूरी करने के लिए जंगलों का व्यापक रूप से विनाश किया जा रहा इसके फलस्वरूप प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है और हरे-भरे क्षेत्र रेगिस्तान बनते जा रहे हैं। आणविक शस्त्रास्त्रों के भूगर्भ परीक्षणों से भूमि में रेडियो सक्रियता बढ़ती जा रही है।


औद्योगिक क्रांति के बाद उद्योग-धंधे बहुत तेजी से बढ़े हैं। कारखानों की चिमनियों से निकलनेवाले धुएँ में जहरीली गैसें होती हैं, जिनके कारण वायुमंडल प्रदूषित होता जा रहा है। इस प्रदूषण के फलस्वरूप अनेक स्थानों में बड़ी-बड़ी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें सबसे भयंकर दुर्घटना भोपाल गैस त्रासदी थी। यह दुर्घटना ३ दिसंबर, १९८४ को हुई थी। इसमें लगभग ३,००० लोग मरे थे और ४०,००० लोग गंभीर रूप से बीमार पड़े थे।


दुनिया भर में स्थापित २०० से अधिक अणु केंद्र वायुमंडल में लगातार रेडियो-सक्रिय किरणे छोड़ रहे हैं। इससे सारा वातावरण प्रदूषित होता जा रहा है और जीव-जंतु तथा वनस्पतियाँ प्रभावित हो रही हैं। यातायात और परिवहन के साधनों से निकलनेवाली गैसों तथा धुएँ से भी वायुमंडल में प्रदूषण बढ़ रहा है।


दुनिया भर में नगरों की संख्या और उनका विस्तार तेजी से बढ़ता जा रहा है। इन नगरों में इकट्ठा होनेवाला कूड़ा-कचरा पास की नदियों, झीलों अथवा समुद्रों में बहा दिया जाता है। इससे उनका जल दूषित हो जाता है। बड़े-बड़े कारखानों से भारी मात्रा में निकलनेवाले जहरीले रसायनों से भरपूर गंदा पानी तथा शहरों के नाले-नालियों का गंदा पानी पास की नदी, झील या सागर में छोड़ दिया जाता है। इससे उन जलाशयों का पानी भयानक रूप से दूषित हो जाता है। कपड़े धोने, पशुओं को नहलाने, शव आदि बहाने से भी नदियों तथा जलाशयों का जल दूषित हो जाता है।


छोटे-मोटे उद्योगों की मशीनों, मोटरकारों, मालवाही ट्रकों, रेलगाड़ियों, वायुयानों आदि यातायात तथा परिवहन के साधनों से पैदा होनेवाले शोर से ध्वनि-प्रदूषण बढ़ रहा है। उत्सव और त्योहारों के अवसरों पर लाउडस्पीकरों तथा पटाखों के शोर से भी ध्वनि-प्रदूषण की मात्रा बढ़ती जा रही है। यह प्रदूषण मानव के लिए असह्य बन गया है।



आज सारी मानवजाति को प्रदूषण के अनेक हानिकारक परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं। वनों की अंधाधुंध कटाई से प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है तथा मौसम अनिश्चित प्रकार का बन गया है। वर्षा की मात्रा में कमी आ गई है और बार-बार अकाल की स्थिति पैदा होने लगी है। जल-प्रदूषण के कारण जलीय वनस्पतियाँ और जीव-जंतु बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। बहुत बड़ी संख्या में लोग पेट के घातक रोगों से पीड़ित हो रहे हैं। 



जहरीली गैसों तथा रेडियो-सक्रिय कणों द्वारा होनेवाले वायु-प्रदूषण से बड़ी संख्या में लोग कैंसर, हृदयरोग, मानसिक तनाव आदि के शिकार हो रहे हैं। ध्वनि-प्रदूषण से लोगों में चिड़चिड़ापन, सिरदर्द, मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप आदि रोग फैल रहे हैं। नौकरियों के आकर्षण तथा अन्य अनेक कारणों से गाँवों के लोग शहरों में आ रहे हैं। इससे शहरों में गंदी बस्तियों का विस्तार होता जा रहा है, जिससे प्रदूषण और अधिक बढ़ रहा है।



प्रदूषण बढ़ने के कारण वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का अनुपात बढ़ता जा रहा है। इससे वायुमंडल को चारों ओर से घेरे रहनेवाली ओजोन गैस की परत में छेद हो गए हैं और वे बढ़ते ही जा रहे हैं। यदि ओज़ोन गैस की परत नष्ट हो गई, तो सूर्य की पराबैंगनी किरणें बेरोकटोक धरती तक पहुँचने लगेंगी और उनके प्रभाव से सभी प्राणियों का विनाश हो जाएगा।


प्रदूषण की समस्या हल करने के लिए अनेक उपाय सुझाए गए हैं। प्रदूषण कम करने अथवा रोकने का सबसे प्रभावकारी उपाय जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाना है। इसके अलावा, हमें अधिक से अधिक संख्या में वृक्ष लगाने चाहिए। उचित कानून बनाकर कारखानों की चिमनियाँ पर्याप्त ऊँची बनाने के लिए उद्योगपतियों को बाध्य करना चाहिए। 


ऐसा कानून बनाना चाहिए कि उद्योगपति अपने कारखानों से निकलनेवाले जहरीले रसायनों से युक्त गंदे जल को नदियों अथवा सागरों में न छोड़ें, बल्कि शुद्धिकरण की प्रक्रिया द्वारा उससे शुद्ध जल और ऊर्जा प्राप्त कर लें। यातायात तथा परिवहन के साधनों की कड़ाई से जाँच की जानी चाहिए और उनके द्वारा छोड़ी जानेवाली कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों की मात्रा घटाने की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए। रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग को नियंत्रित करना चाहिए। लोगों को प्रदूषण के बढ़ते खतरे के बारे में जानकारी देनी चाहिए। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।