आदर्श शिक्षक पर निबंध in Hindi | adarsh shikshak ki bhumika essay in hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम आदर्श शिक्षक इस विषय पर निबंध जानेंगे। इस लेख मे कुल 3निबंध दिये गये हे जिन्हे आप एक -एक करके पढ सकते हे । हमारी शिक्षा आज उन मूलभूत शैक्षिक मूल्यों की अपेक्षा से अलग हो गयी है और लगातार उससे दूर होती जा रही है। जिसके बिना शिक्षा अर्थहीन मानी जाती है। जो ज्ञान और मूल्य बच्चे परिवारों में सीख लेते थे, आज माता-पिता चाहते हैं कि वह भी स्कूलों में सिखाया जाये। परिवारों का अपना रसायन बदल रहा है।
भौतिक उपलब्धियां प्राप्त करने की दौड़ तेज हो रही है। परस्पर विश्वास घट रहा है। परिणाम लगातार सामने आ रहे हैं। एक तरफ लोगों की अपेक्षाएं बढ़ रही हैं और दूसरी तरफ शिक्षा व्यवस्था पर उनका विश्वास घट रहा है। ये सत्य है कि अच्छी शिक्षा के लिए अच्छे अध्यापक चाहिए क्योंकि वे ही उसकी धुरी हैं।
100 करोड़ के देश के लिए जब प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की जायेगी तो निश्चय ही इसके लिए आवश्यक अध्यापकों की खोज एक बहुत बड़ी चुनौती होगी।
ऐसे अध्यापक जो अपने उत्तरदायित्व की महत्ता और गरिमा को समझते हों और उसे आत्मसात् करते हों। उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए और उनके मूल्यों को सुदृढ़ करने के लिए शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं का उत्तरदायित्व कई गुणा बढ़ जायेगा।
अध्यापक के प्रशिक्षण में कौन-कौन-से ऐसे दृष्टिकोण क्षमताएं, कौशल, मूल्य और गुणा होने चाहिएं जो उसे आदर्श अध्यापक बना सकें। ऐसा माना जाता है कि क्षमताएं, प्रतिबद्धता और कार्य निष्पादन ये तीनों गुण किसी भी व्यक्ति को अच्छा अध्यापक बनाने के लिए काफी हैं।
इसे समझने के लिए मुख्य रूप से 4 प्रश्न पूछे जा सकते है-(1) कौन पढ़ाए? (2) किसे पढ़ाए? (3) क्या पढ़ाए? (4) कैसे पढ़ाए?
हर अध्यापक को उस संदर्भ को समझना चाहिए तथा उससे परिचित होना होगा जहाँ पर वह अध्यापन कर रहा है। वहाँ के समुदाय के रीति-रिवाज, आर्थिक स्थिति, सांस्कृतिक परिवेश से अपने को जोड़े बिना कोई भी अध्यापक अपना कार्य सुचारू रूप से नहीं कर सकता।
अध्यापक को क्षमतावान होना ही काफी नहीं उसे अपने कार्य की प्रतिबद्धता, सम्मान और लगन भी होनी चाहिए। यह प्रतिबद्धता बच्चों के प्रति, समाज के प्रति, शिक्षक वर्ग के प्रति और मानव मूल्यों के प्रति इनकी सारी परिकल्पनाओं में दृष्टिगोचर होनी चाहिए।
हर अध्यापक के अन्दर यह विचार मुद्र उपस्थित रहनी आवश्यक है कि उसे अपने कार्य की गुणवत्ता लगातार बढ़ाते रहना है। एक क्षमतावान और प्रतिबद्ध अध्यापक अपने कर्तव्य निर्वाह तभी कर पाता है जब वह अपने कार्य की परिधि को अच्छी तरह समझ ले कि उसे कक्षा में क्या पढ़ाना है ?
कक्षा के बाहर किन्तु स्कूल के अन्दर बच्चों में अनेक गुणों का विकास करना है। स्कूल के बाहर बच्चों तथा समुदाय के साथ मिलकर अनेकानेक गतिविधियों द्वारा अपने छात्रों के अन्दर केवल पाठ पढ़ाना, प्रश्नों के उत्तर कंठस्थ करा देना ही अध्यापन नहीं है, बल्कि मानवीय गुण और मूल्यों का विकास करना है।
यहाँ पर अध्यापकों की क्षमता, प्रतिबद्धता और कार्य निष्पादन के सम्बन्ध में जो कुछ कहा गया है वह असम्भव या अप्राप्य नहीं है।
सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत पढ़ाने की विधि से अध्यापकों को प्रशिक्षण काल में परिचित कराया जाता है, परन्तु किसी भी विद्यार्थी के लिए या स्थान विशेष कर शिक्षक विद्यार्थी का क्या स्वरूप होगा, यह स्थानीय स्तर पर अध्यापक ही तय करता है।
देश के अधिकांश स्कूलों में प्रारम्भिक शिक्षा के लिए जो बच्चे आ रहे हैं उनमें से अधिकांश उन परिवारों से आते हैं जहाँ परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं, इसी को ध्यान में रखकर कई कार्यक्रम; जैसे-दोपहर का भोजन निःशुल्क, पुस्तक व्यवस्था, पहनने के लिए यूनिफार्म इत्यादि की योजना बनाई गयी हैं।
अब हर अध्यापक के लिए इन परिस्थितियों में यह जानना जरूरी है कि जिस बच्चे को वह पढ़ा रहा है वह किस प्रकार के वातावरण से आता है और उसकी अपनी विशेष आवश्यकता क्या है ?
हमारे देश में अधिकांश विद्यालयों में आज भी वही है जो हमें विदेशी शासकों के द्वारा मिली थीं। निश्चित रूप से इन व्यवस्थाओं के विकसित होने में जो बालक केन्द्र-बिन्दु में थे वह भारतवर्ष के बच्चे नहीं थे। आज आवश्यकता है कि हम यह जानें कि भारतीय बालक कौन है, कैसा है और उसकी सीखने और पढ़ने की अपने संदर्भ में क्या आवश्यकताएं हैं ?
पिछले पाँच दशकों में शिक्षा के पाठ्यक्रमों में परिवर्तन करने के कई प्रयत्न किये गये। पाठ्यक्रम परिवर्तन लगातार होने चाहिएं। कोई भी परिवर्तन बाहर होने वाले परिवर्तन से अपने को अछूता नहीं रख सकता है।
यह प्रक्रिया इस समय देश में प्रारम्भ की गयी है और इस पर चर्चा भी देश भर में ही हो रही है।एन०सी०ई०आर०टी० ने चर्चा के लिए जो बिन्दु उठाए हैं, उनमें बस्ते का बोझ, पाठ्यक्रम का स्थानीय, क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय सन्दर्भो का समावेश मानव अधिकारों और कर्तव्यों का आकलन, मानवाधिकार और कर्तव्यों का आकलन, मानवाधिकार और मानव मूल्यों से परिचय और साक्षात्कार तथा राष्ट्रीय एकता और अखण्डता की समझ बढ़ाने के बिन्दु शामिल हैं,
सभी धर्मों की जानकारी तथा उससे परिचय आगे चलकर सभी धर्मों के प्रति आदर के विकास में सहायक होगा। बच्चों को भारतीय चिन्तन तथा ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में भारतीयों द्वारा किये गये योगदानों से परिचित कराना भी आवश्यक है। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और अपने देश के गौरव से जुड़ाव होता है।
सबके लिए प्रारम्भिक शिक्षा, प्रौढ़ साक्षरता, व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था नई तकनीकी का प्रयोग और भारतवर्ष में जन्मी विचारधाराओं तथा अनुभवों और प्रयोग के आधार पर स्कूल शिक्षा की सारी व्यवस्था का पुनर्निर्माण आवश्यक है।
स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में विशेषकर शिक्षा के सार्व नीकरण को लेकर हम बहुत पीछे रह गये हैं। विकास जिस तेजी से हो रहा है उसके लिए आवश्यक है कि अब हमारा देश शिक्षा के क्षेत्र में सभी को साथ लेकर ऐसे प्रयास करे जो व्यावहारिक हों और जिनके परिणाम हमें सही समय पर दृष्टिगोचर हो सकें।
शिक्षा के लिए एक अलग दृष्टि की आवश्यकता है जो भारतीय गरिमा, गौरव, विविधता और एकता का एकसाथ सम्मान कर सके और ऐसे नागरिक तैयार करने का प्रयत्न करे जो स्वतन्त्रता सेनानी के समान अज्ञान और अनाचर से संघर्ष करने की क्षमता विकसित कर सके और इस यज्ञ में जी-जान से जुटने के लिए तैयार रहे। अतः हमारे शिक्षक का देश के अच्छे नागरिक तैयार करने में विशेष योगदान है।दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।