इक्कीसवीं सदी का भारत पर निबंध | India In 21st Century In Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम इक्कीसवीं सदी का भारत इस विषय पर निबंध जानेंगे।प्रस्तावना-हमारे भारत देश का मनुष्य प्रगतिशील है, वह बात-बात में प्रगति की बातें करता है, प्रगति के बारे में ही सोचता है क्योंकि प्रगति ही जीवन है; प्रगतिशीलता मनुष्य को उन्नति की ओर ले जाती है। उन्नति की ओर बढ़ना मनुष्य का कर्तव्य और स्वभाव भी है।
मानव नयी खोज एवं उनके विकास के पथ पर तेजी से बढ़ता चला रहा रहा है। नव-निर्माणों की प्रथम सीढ़ी संकल्प-शक्ति होती है। इन नव-निर्माणों की पूर्ति के लिए हमें श्रेष्ठ ज्ञान की आवश्यकता होती है, क्योंकि अगर मनुष्य के पास ज्ञान का भण्डार नहीं होगा तो उसकी प्रगति असम्भव है, क्योंकि अपने द्वारा निर्माण की अच्छाई एवं बुराई ज्ञान के द्वारा ही जानी जा सकती है।
इच्छा ज्ञान के साथ श्रेष्ठ कर्म भी जुड़ा हुआ है। इस विशक्ति के सम्यक् योग होने पर मनुष्य 'इच्छित वस्तु' को भी प्राप्त कर सकता है। इसमें मनुष्य का अभ्यास भी एक अलग महत्व रखता है। मनुष्य को अपने जीवन में प्रगति के लिए व उन्नति पाने के लिए निरन्तर अभ्यास करते रहना बहुत जरूरी है। अभ्यास के बारे में किसी कवि ने कहा है कि
“करत-करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत-जावत तेसिल ते परत निशान ॥"
इन पंक्तियों से स्पष्ट होता है कि मनुष्य अभ्यास-पर-अभ्यास करता रहेगा तो उसे एक-न-एक दिन जरूर कामयाबी हासिल होगी। यह भी स्पष्ट है कि अभ्यास से ही विद्या बढ़ती है, क्योंकि नीति वचनों में एक मुख्य सूक्ति है कि- “अभ्यासेन विद्या वर्धते।” यानि निरन्तर अभ्यास से ही विद्या आती है, ज्ञान आता है, संकल्प-शक्ति जागती है।
संकल्प-शक्ति से असम्भव भी सम्भव-यह बात शत-प्रतिशत सत्य है कि हम अपनी संकल्प-शक्ति से असम्भव को भी सम्भव बना सकते हैं। अपने ज्ञान, विज्ञान और कर्म के होते हुए भी कौन होगा जो अपने देश को महान् बनाने की संकल्प-शक्ति नहीं रखता होगा।
हम सदियों तक अंग्रेजों के गुलाम रहे एवं उन्होंने हमारा शोषण किया, इसका परिणाम यह था कि हम ज्ञान, विज्ञान, कर्म, खनिज एवं प्राकृतिक सम्पदा के धनी होते हुए भी प्रगति के क्षेत्र में पिछड़े रहे। जबकि जापान एक छोटा-सा देश होते हुए भी अपनी संकल्प-शक्ति के कारण परमाणु बमों के प्रहारों को सहन कर संसार में श्रेष्ठ बन गया।
इसी तरह इजराइल जैसा छोटा-सा देश भी आज सर्वोच्च शिखर पर खड़ा है लेकिन हम क्यों नहीं? इसका मुख्य कारण यह है कि हमारे अन्दर संकल्प-शक्ति का अभाव है। लेकिन अब इक्कीसवीं सदी की नयी चुनौतियों को हमने स्वीकार कर अपनी संकल्प-शक्ति को बढ़ा लिया है। जिसके परिणामस्वरूप हम अपनी शक्ति को अब क्रियात्मक रूप देने में जुट गये हैं।
(1) शिक्षा द्वारा प्रोन्नति-संसार के प्रत्येक देश में उन्नति का आधार शिक्षा ही है। अतः इक्कीसवीं सदी में हमने ज्ञान-विज्ञान का आधार लेकर शिक्षा प्रसार का कार्य तीव्र गति से आरम्भ कर दिया है।
जिससे मेडिकल एवं तकनीकी शिक्षा में काफी उन्नति हो रही है। दरदर्शन के माध्यम से विभिन्न प्रकार के ज्ञान का प्रकाश देशभर में फैल रहा है। यह क्रान्ति ही हमें विश्व के विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देगी।
(2) विज्ञान के क्षेत्र में-इक्कीसवीं सदी के पूर्व कहा जाता था कि भारत विज्ञान के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। लेकिन जब हमने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में पैर जमाने आरम्भ किये तो विश्व में हमारी वैज्ञानिकता की प्रशंसा की जाने लगी। कृषि विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, सैन्य विज्ञान आदि के क्षेत्र में हमारे वैज्ञानिक महान कार्य कर रहे हैं।
प्रत्येक क्षेत्र में हमारे यहाँ अब कम्प्यूटर द्वारा कार्य किया जा रहा है, जिससे जाहिर है कि विज्ञान के क्षेत्र में अपने देश में जो भी प्रगति हो रही है वह सन्तोषजनक है। यह प्रगति इससे भी अधिक आगे बढ़ने की सम्भावना है, ऐसा विज्ञानियों का कहना है।
(3) स्वास्थ्य के क्षेत्र में देश की उन्नति बढ़ाने में सबसे अधिक श्रेय स्वास्थ्य को जाता है। हमारे देश में आयुर्वेद पद्धति श्रेष्ठ चिकित्सा पद्धति मानी जाती है। अनेक प्रयोगों द्वारा यह स्पष्ट हो चुका है कि जड़ी-बूटियों द्वारा मनुष्य के स्वास्थ्य को ठीक रखा जा सकता है।
ऐलोपेथिक दवायें बनाने में भी अब जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जा रहा है। अतः इस क्षेत्र में हमारी प्रगति आज भी भले ही उतनी न हो जितनी अमेरिका की है, पर प्रगति की ओर बढ़ रहे चरण यह संकेत अवश्य देते हैं कि भविष्य में हम निश्चित रूप से अति विशिष्ट बनेंगे और चिकित्सा के क्षेत्र में इससे भी अधिक श्रेष्ठता प्राप्त करने का प्रयास करेंगे।
(4) कृषि के क्षेत्र में सदियों से भारत कृषि-प्रधान देश रहा है। प्राचीन तरीकों से की जाने वाली खेती में अधिक समस्याएँ थीं, परन्तु अब इक्कीसवीं सदी में कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा कई शोध संस्थान स्थापित किये हैं, जिनके द्वारा अनेक किस्म के अनाजों को पैदा करने की तकनीक विकसित कर ली गई है।
गेहूँ की आज अपने देश में कई किस्में हैं। जिनकी सफलतापूर्वक उपज ली जा रही है। अतः हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि आज कृषि के क्षेत्र में हम काफी विकसित, सम्पन्न और आत्मनिर्भर हैं तथा भविष्य में इससे कुछ और अधिक विकसित और महान होने की सम्भावना है।
उपसंहार-जैसा कि हम देख चुके हैं कि इक्कीसवीं सदी में हमारी दृढ़ संकल्प-शक्ति कामयाब रही है, अगर मनुष्य में चाहत हो तो मंजिलें आसान हो जाती हैं, चाहे भारत प्रगति के क्षेत्र में अमेरिका के बराबर न हो फिर भी हमें इसमें ही काफी संतोष है। ऐसी बात नहीं, भारत देश भी कभी अमेरिका से कंधे से कंधा मिलाकर चलेगा बस जरूरत है तो दृढ़-संकल्प शक्ति की। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।