कटे पेड़ की आत्मकथा हिंदी निबंध | kate ped ki atmakatha in hindi essay
नमस्कार दोस्तों आज हम कटे पेड़ की आत्मकथा इस विषय पर निबंध जानेंगे। मुझ पर झुका था कभी नीला गहरा आकाश छायी थी कभी बहारें भीगे मौसम कीआज चूर हूँ मगर उस जिंदगी की जुदाई मेंभरा-भरा सा हूँ यादगार में बहार के दिनों की! उपर्युक्त काव्य पंक्तियों की आज मुझे रह-रहकर याद आ रही है। मेरे स अब कुछ भी नहीं बचा हैं। मेरे पास शेष हैं, केवल उन हरे-भरे दिनों की सुनहली यादें।
मेरे पास उन दिनों की सुंदर यादों के सिवा क्या होगा, जब कि मृत्यू मेरे सिर पर मँडरा रही है ? कुछ ही समय में उस काल के गाल में मैं समा जाऊँगा। मेरा नामोनिशान तक मिट जाएगा। मुझे अच्छी तरह याद है, जब यहाँ आसपास फैले हुए हरेभरे खेत के मालिक ने मुझे बडे प्यार से यहाँ लगाया।
तब मैं बहुत छोटा था। पौधे के रूप में मैं धीरे-धीरे बढने लगा। मेरे शरीर पर छोटे-छोटे कोंपले निकल आई। कोंपले विकसित होकर उन्होंने पत्तों का रूप ले लिया। उन मुलायम चिकनें पत्तों को देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। मालिक ने मेरी निगरानी में कोई कसर नहीं छोडी। मैं दिन दूना रात चौगुना फलने-फूलने लगा। मेरा कद बढने लगा।
बदन पर अनेक शाखाएँ तैयार हो गई। डालियाँ धीरे-धीरे बढने लगी। कुछ ही वर्षों में मेरा परिवर्तन एक सघन वृक्ष में हो गया। मैं उन सुखभरे दिनों को कभी भूल नहीं सकता। मेरे जीवन में उन दिनों बसंत की बहार आई थी। काश! यौवन और सुख के वे दिन कभी न बीतते सीने से रहता लगाए...! मुझे याद है वे दिन...
मेरी घनी छाया में लोग आकर बैठे जाते, खाना खाते, कुछ समय विश्राम करते और फिर अपनी राह चल देते। मालिक का परिवार तो सुबह से शाम तक मेरे पास ही रहता। छोटे बच्चे मेरी डालियों पर चढकर खेलते रहते। मनुष्य के साथ जानवर, पशु-पक्षी आदि को भी मैंने आश्रय प्रदान किया।
उन्हें शीतल छाया तथा मीठे फल देता रहा। सुगंधित पुष्पों से पूरे वातावरण को सुरभि से भर दिया। दूषित पर्यावरण को साफ करने का काम किया। मेरे कारण आसमान के मेघ आकर्षित होकर पानी बरसाते रहें। कई सालों तक मैं पूरी लगन और ईमानदारी से परोपकार का यह कार्य करता रहा। मेरे फल तथा पुष्पों से, शीतल छाया से मैंने सभी को सुख दिया।
मैं दूसरों के लिए ही जीता रहा। क्योंकि-'परोपकाराय पुण्याय। पापाय परपीडनम्।' का अर्थ मैं अच्छी तरह समझता था। मैंने यह सब मनुष्य जाति के लिए नि:स्वार्थ भाव से किया। मगर मानव जाति की कृतघ्नता का परिचय मुझे अब हो गया है।
जिस मालिक ने मुझे बडे प्यार से यहाँ लगाया था, प्यार से पाला-पोसा था, उसी के एक लडके ने मुझे काट दिया। पैसों के मोह में उसने मुझे बेच दिया। पीछले दो दिनों से मजदूर आकर मेरी डाली-डाली काट रहे हैं। मैं अब एक ढूँठ मात्र रह गया हूँ।
मुझे इस बात का दुःख है कि, उपकार के बदले में मुझे मनुष्य से अपकार मिला। कृतघ्नता मिली। यह दु:ख सीने से लगाकर ही मैं परलोक की यात्रा पर जा रहा हूँ। लेकिन इस बात का संतोष भी है कि, मैंने किसी को कभी दु:ख नहीं दिया। परोपकार को ही जीवन मानकर मैंने जिंदगी बिताई। काश! मानव भी यदि इस बात को समझ पाता।दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।