कावेरी जलविवाद हिंदी निबंध | KAVERI JAL VIVAD HINDI NIBANDH
नमस्कार दोस्तों आज हम कावेरी जल विवाद इस विषय पर निबंध जानेंगे। कर्नाटक और तमिलनाडु के मध्य कावेरी जल विवाद कोई नया विवाद नहीं है। यह विवाद सदियों पुराना है। यह अलग बात है कि इसमें आये दिन नये अध्याय जुड़ते रहते हैं।
पिछले एक दशक में जिस मुद्दे को लेकर दोनों के मध्य टकराव की स्थिति बनती रही है। 1991 के अंतरिम आदेश का पालन दोनों राज्यों के मध्य जल विवाद तब अधिक तीव्र हो जाता है जब मानसून की बारिश कम होती है। इस बार भी कावेरी बेसिन में बारिश की स्थिति है।
तमिनाडु द्वारा अपने किसानों की दुर्दशा का ब्यौरा देते हुए कहा जा रहा है कि कर्नाटक द्वारा पानी न छोड़ने के कारण सितम्बर के अन्त में तैयार होने वाली कुरुवई की फसल चौपट हो गयी है और यदि अब भी उसको पानी नहीं मिला तो अक्टूबर में रोपाई वाली साम्बा की रोपाई प्रभावित होगी।
दूसरी तरफ कर्नाटक का कहना है उसके बांध जलाशयों में पानी भी कम है और उसकी अपनी जमीन पर धान और गन्ने की फसल तैयार होने की स्थिति है, ऐसे में वह जरूरी पानी तमिलनाडु को देने की स्थिति में नहीं है। समग्र रूप से देखा जाये तो यह प्रतीत होता है कि दोनों ही राज्य के राजनीतिक दल कावेरी जल पर राजनीति कर रहा है।
दोनों राज्यों के दल अपने आपको सर्वोच्च हित साधक व किसान समर्थक दिखाने की कोशिश में अडियल रुख अपनाते रहे हैं, जिसमें पिसता रहा आपसी भाईचारा, राष्ट्रीयता प्रभावित होती रही है, राष्ट्रीयता नष्ट होती रही है लाखों लोगों की ऊर्जा धरना-प्रदर्शन में तथा करोड़ों की सरकारी सम्पत्ति की तोड़-फोड़ में।
भारत में अन्य राज्यों में भी नदी जल विवाद है। अतः नदी पर एक समग्र रणनीति व व्यापक सहमति बनाये जाने की जरूरत है। इसके अभाव में आने वाले समय में जब जल-संकट और बढ़ेगा तब देश व्यापक अराजकता की स्थिति में जा सकता है।
1991 के कावेरी न्यायाधिकरण के आदेश आने के बाद यह अच्छा मौका है और इस वर्ष का दूसरा मौका जबकि तमिलनाडु ने अन्तरिम आदेश के क्रियान्वयन के लिये सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
तमिलनाडू द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बी०एन० किरपाल की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खण्डपीठ ने 23 सितम्बर, 2002 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री एस०एम० कृष्णा सहित पाँच लोगों को कारण बताओ नोटिस जारी की है।
इसमें पूछा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना और कावेरी नदी प्राधिकरण के निर्देशों का पालन न करने के कारण क्यों न उसके खिलाफ कार्यवाही की जाये। इसके पूर्व सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 3 सितम्बर, 2002 को तमिलनाडु को अन्तरिम आदेश लागू कराने सम्बन्धी याचिका पर निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक सरकार को निर्देश दिया था कि वह अपने बाँधों से तमिलनाडु के लिए प्रतिदिन 1:25 टीएमसी फीट पानी छोड़े।
इसी आदेश में आगे कहा गया कि यह व्यवस्था तब तक लागू रहेगी जब तक कि नदी प्राधिकरण इस पर कोई अन्तिम निर्णय नहीं ले लेता। कर्नाटक के अनुरोध पर प्रधानमंत्री द्वारा 8 सितम्बर, 2002 को कावेरी नदी प्राधिकरण की बैठक बुलाई गयी, जिसमें कर्नाटक, केरल व पाण्डिचेरी के मुख्यमंत्री तथा तमिलनाडु के वित्तमंत्री ने हिस्सा लिया।
इसमें यह निर्णय लिया गया कि कर्नाटक प्रत्येक दिन तमिलनाडु के मेटूर बाँध के लिए 0.8 टीएमसी फीट पानी सितम्बर-अक्टूबर माह में छोड़े, C.R.A. के इस फैसले का तमिलनाडु की मुख्यमंत्री ने विरोध किया और इसको अलोकतांत्रिक बताया तथा न्याय के लिए सर्वोच्च न्यायालय में पुनः जाने की बात कही।
इस बीच 4 सितम्बर से कर्नाटक के क्याबिनी बाँध से पानी छोड़े जाने का कर्नाटक के मांड्या व मैसूर में भारी विरोध हुआ और प्रदर्शनकारियों ने जबरन बन्द करा दिया। आगे चले प्रदर्शनों में एक किसान की काबिनी जलाशय में डूबने से मृत्यु हो गयी जिसके बाद कर्नाटक ने तमिलनाडु की पानी आपूर्ति बन्द कर दी।
तमिलनाडु ने कर्नाटक के प्रदर्शनों को राज्य सरकार द्वारा अभिप्रेरित बताया और सर्वोच्च न्यायालय में अवमानना की याचिका दायर कर दी। प्रथम बार कावेरी विवाद 19वीं शताब्दी में तत्कालीन मैसूर राज्य तथा मद्रास प्रेसीडेन्स के मध्य सिंचाई के मुद्दे को लेकर हुआ।
1892 में दोनों के मध्य समझौता हुआ और 1924 में दोनों के मध्य एक पचास वर्षीय करार हुआ। इस करार के समाप्त होने के बाद पुनः विवाद की स्थिति पैदा हो गयी। तमिलनाडु ने विवाद में बदले अन्तर्राष्ट्रीय जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत न्यायाधिकरण जनहित याचिका पर फैसला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार को न्यायाधिकरण गठित करने का निर्देश दिया।
इस निर्देश के तहत केन्द्र सरकार ने 2 जून, 1990 को कावेरी जल प्राधिकरण का गठन कर दिया। 1998 में कावेरी नदी प्राधिकरण प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में व कावेरी निगरानी समिति जल संसाधन सचिव की अध्यक्षता में बनी, परन्तु अब इन संस्थाओं की प्रभाविता भी खतरे में दिख रही है।
जब-जब कावेरी नदी की बात होती है तो उसमें केवल कावेरी ही नहीं बल्कि नदियों का एक समूह होता है जिसमें हेमावती, काबिनी, भवानी, अमरावती आदि नदियाँ भी सम्मिलित रहती हैं। चूँकि भवानी आदि नदियाँ केरल से निकलती हैं और कावेरी के निचले हिस्से में कराइकल भी पड़ता है जो पाण्डिचेरी का हिस्सा है।
अतः तमिलनाडु और कर्नाटक के साथ केरल व पाण्डिचेरी भी कावेरी विवाद में लपेटे में रहते हैं। कावेरी नदी विवाद की प्रकृति पर चिन्तन किया जाये तो इसके चार पहलू नजर आते हैं। प्रथम-ऐतिहासिक। द्वितीय-दोनों राज्यों में कृषि भूमि का विस्तार।
तृतीय-जनसंख्या वृद्धि के चलते पेय जल तथा उद्योगों के लिए बढ़ती जल की माँग । चतुर्थ-राजनीतिक लाभ उठाना। तमिलनाडु मानता है कि कर्नाटक नियन्त्रण की स्थिति में है अतः वह कावेरी नदी जल का अपने हिस्से से ज्यादा प्रयोग करता है और तमिलनाडु की कृषि हितों से खिलवाड़ करता है।
राष्ट्रीय स्तर पर नदी जल विवाद सुलझाने के दो सुझाव दिये जाते हैं। प्रथम-जल को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में रखना। द्वितीय-राष्ट्रीय जल ग्रिड का निर्माण। क्योंकि अभी जल राज्य सूची में है अतः नदी के जल विवाद में केन्द्र की बहुत सीमित भूमिका होती है।
इसको समवर्ती सूची में रखने पर केन्द्र सारे देश के लिए नियम बना सकेगा व उसकी भूमिका अधिक सकारात्मक व प्रभावशाली हो सकेगी। कावेरी विवाद सुलझाने के दो तरीके हैं। प्रथम-दोनों राज्य एक-दूसरे की आवश्यकताओं के आधार पर सहयोग करें। दूसरा-बेहतर जल प्रबन्धन के तरीके अपनाये जाने चाहिएं। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।