खेल के मैदान पर एक घंटा हिंदी निबंध | khel ke maidan par ek ghanta essay in hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम खेल के मैदान पर एक घंटा हिंदी निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे।
खेल का मैदान या क्रीडांगण एक ऐसा आनंद-स्थल है, जहाँ बच्चों और किशोरों की चहल-पहल देखते ही बनती है। अभी तक मैं केवल सिनेमा हॉल और नाट्यशाला को ही मनोरंजन के स्थान मानता था; किंतु उस दिन शाम के समय जब मैं अपने मित्र के साथ खेल के मैदान पर पहुँचा तो सचमुच मुझे लगा कि आनंद की असली जगह तो यही है।
खेल का मैदान बहुत विशाल और समतल था। हरी घास और खुली जगह होने के कारण वहाँ का वातावरण सुहाना लग रहा था। खेल के मैदान के एक हिस्से में कई खिलाड़ी क्रिकेट खेल रहे थे। उनका खेल देखने के लिए काफी भीड़ जमा हुई थी। चौका या छक्का लगने पर लोग मारे खुशी के तालियाँ बजाते थे। दूसरी ओर फुटबॉल के खिलाड़ियों ने रंग जमाया था। उनकी उछल-कूद और मस्ती देखने लायक थी। कभी गेंद इधर जाता, तो कभी उधर। लोगों की नजर भी गेंद के पीछे-पीछे दौड़ती रहती थी।
खेल के मैदान के एक हिस्से में कबड्डी का मैच खेला जा रहा था। जब कभी कोई खिलाड़ी 'आउट' हो जाता तो दर्शक मारे खुशी के उछल पड़ते थे। एक बार तो 'आउट' होने के बारे में मतभेद होने से बात बढ़ गई। ऐसा लगा कि कुछ ही क्षणों में खेल का मैदान रणांगण बन जाएगा ! पर कप्तान के आदेश पर सभी खिलाड़ी फिर से मिल-जुलकर खेलने लग गए।
खेल के मैदान का एक हिस्सा छोटे बच्चों के लिए सुरक्षित था। कहीं झूले की बहार थी, तो कहीं सरकपट्टी का मजा। सीढ़ी पर चढ़कर बच्चे पत्थर के हाथी पर बैठकर फूले नहीं समाते थे। कुछ बच्चे टोलियाँ बनाकर तरह-तरह के खेल खेल रहे थे। यहाँ की चहल-पहल दर्शनीय थी।
खेल के मैदान में सबसे अलग एक अखाड़ा था, जहाँ कुश्ती के जोड़ आपस में भिड़ रहे थे। पहलवानों के दाँव-पेंच देखने योग्य थे। अखाड़े के बीच में मलखम का एक ऊँचा खंभा था। कुछ किशोर उन पर चढ़ने की धुन में मस्त थे। एक लड़का खंभे पर चढ़कर टाँगों से लटक रहा था। लोग उसकी ओर एकटक देख रहे थे। खेल के मैदान के एक छोर पर कुछ लोग बैठे हुए थे। वे अपनी बातों में मग्न थे। खेल के मैदान के बाहर खोमचेवालों और खिलौनेवालों की भीड़ थी। लोग चाव से भेल-पूरी, आईसक्रीम आदि का मजा ले रहे थे। कुछ लोग बच्चों के लिए खिलौने खरीद रहे थे।
धीरे-धीरे अँधेरा बढ़ने लगा। खिलाड़ियों ने खेलना बंद कर दिया। लोग भी बिदा होने लगे। सबके चेहरों पर प्रसन्नता और ताजगी झलक रही थी। खेल के विभिन्न दृश्यों ने मुझे उत्साह से भर दिया। 'जीवन भी एक खेल ही है '-ऐसा सोचते हुए मैं घर लौटा। मुझे पता भी न चला कि खेल के मैदान में एक घंटा कैसे बीत गया!
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