mahatma gandhi hindi essay | महात्मा गांधी पर निबंध


भारत में, अनेक महान् व्यक्तियों ने जन्म लिया है किन्तु महात्मागांधी उनमें महानतम थे। उनके व्यक्तित्व और कार्य हिमालय के सर्वोच्च शिखर एवरेस्ट की तरह थे। वे अपनी तुलना स्वयं आप थे। अन्य सभी व्यक्ति उनके सामने बौने जान पड़ते है। वे आदर्शों की साकार और जीवित प्रतिमा थे। अहिंसा, सत्य, न्याय, समता, समानता, सेवा और राष्ट्र-समर्पण जैसे आदर्शों व जीवन-मूल्यों के वे सर्वोत्तम उदाहरण थे।

हिंसा, स्वार्थ, असत्य, राजनीति, जात-पांत, घृणा, द्वेष और लोभ-लालच के इस कलियुग में भी उन्होंने मानवता के बहुत ऊँचे कीर्तिमान अपने विचारों और व्यवहार से स्थापित किये। आने वाली पीढ़ियां शायद विश्वास भी नहीं कर पायेंगी कि ऐसे आदर्शों की एक प्रतिमूर्ति वास्तविकता थी। गांधी जी ने वह सबकुछ कर दिखाया जो असाधारण, असंभव और अविश्वसनीय लगता था। युग-युगांतरों तक उनका जीवन, उनके आदर्श, उनके उच्च विचार, सादगी, और सच्चाई लोगों को प्रेरणा देते रहेंगे।


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उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। गांधीजी का जन्म पोरबंदर (काठियावाड) में 2 अक्टूबर 1869  में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद था, और माता का पुतली बाई। उनके पिता काठियावाड के छोटे-से जागिरदार के दीवान थे। उनकी माता ईश्वर भक्त, श्रद्धालु, सीधी-सादी और बहुत धार्मिक महिला थीं। उनका विवाह 13 वर्ष की छोटी आयु में ही कस्तूरबा गांधी से हो गया था। 7 वर्ष की उम्र में ही उनका परिवार पोरबन्दर से राजकोट आ गया था।

अपने किशोरपन में ही गांधीजी ने अहिंसा, ब्रह्मचर्य और करुणा का व्रत ले लिया था। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात्, विधी का अध्ययन करने के लिए वे लंदन चले गये, लेकिन लंदन की फैशनपरस्त और कृत्रिम जीवनशैली उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आई। सन् 1891 में वे भारत लौट आये और वकालत करने लगे। तभी उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा।

वहां उन पर अनेक तरह के अत्याचार किये गये। अंग्रेजों ने रेलगाड़ी से उतार फेंका क्योंकि वे प्रथम श्रेणी के डिब्बे में यात्रा कर रहे थे जिसमें केवल श्वेतरंग के अंग्रेजी ही यात्रा कर सकते थे। उन्हें कई बार जेल में बंद किया गया, मारा-पीटा गया और समय-समय पर अपमानित किया गया। इससे उनके आदर्शों को और अधिक बल मिला और उन्होंने सच्चा कर्मयोगी बनने का निश्चय कर लिया। गीता उनका आदर्श ग्रंथ बन गया और वहां रहते-रहते उन्होंने सत्य और अहिंसा के कई व्यावहारिक प्रयोग किये। सत्याग्रह इनमें प्रमुख था।

सन् 1915 में वे भारत लौट आये। उन्होंने अहमदाबाद के निकट साबरमती के किनारे अपना आश्रम स्थापित किया और अपने आदर्शोंका प्रचार-प्रसार करने लगे। उन्होंने गरीब किसानों, मिल मजदूरों और श्रमिकों की अन्याय के विरुद्ध लड़ाइयां लड़ी और विजय पायी।

उस समय भारत में स्वतंत्रता आंदोलन काफी बल पकड़ रहा था। गांधी-जी उस में कूद पड़े और सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आन्दोलन और असहयोग का बड़ा सार्थक प्रयोग किया। भारत की सारी जनता और नेतागण उनके साथ हो गये और उन्हें भरपूर प्यार व समर्थन दिया। उनसे प्रेरणा और सहयोग पाकर हजारों लोग स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। सारे भारतवर्ष में खादी, स्वदेशी, स्वतंत्रता, असहयोग और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की एक तेज आंधी चल पड़ी और अंग्रेजों की सत्ता की नींव हिलने लगी।


गांधीजी ने भारत के गांव-गांव, शहर-शहर की विस्तृत यात्रा की, जनता, नेताओं, जन-प्रमुखों आदि से मिले और अपने विचारों से उन्हें अवगत करवाया। सारा राष्ट्र उनके पीछे चलने लगा। उधर अंग्रेजों का दमन-चक्र और तेज हो गया और गांधीजी पर कई आरोप लगाकर उन्हें जेल भेज दिया गया। उनके साथ अन्य सैंकड़ों नेता भी गिरफ्तार किये गये। वे कई बार जेल गये, सत्याग्रह किया, लम्बे-लम्बे उपवास किये और जनता को संगठित किया।

12 मार्च, 1930 को गांधी ने अपनी प्रसिद्ध यात्रा 'डांडी यात्रा' आरंभ की और विदेशी जुल्मी सरकार व शासन को हिला कर रख दिया। लेकिन गांधीजी के मन में ऐसे अंग्रेज शासकों के प्रति भी कोई घृणा और द्वेष का भाव नहीं था। वे कहते थे पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। उन्होंने 'यंग इंडिया' पत्र का प्रकाशन और संपादन भी किया जिससे स्वतंत्रता आंदोलन को बड़ा बल मिला। कांग्रेस और भारत को गांधीजी ने ही 'स्वराज' का नारा दिया। उन्हीं के नेतृत्व में 'भारत छोड़ों' आन्दोलन का श्रीगणेश हुआ जो पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ समाप्त हुआ।

अंतत: 15 अगस्त 1947 को गांधीजी के नेतृत्व में, एक लम्बे और अहिंसात्मक आन्दोलन के बाद देश आजाद हुआ और जनता ने राहत की सांस ली। लेकिन उधर सांप्रदायिकता की भयंकर आग भड़क उठी। देश का विभाजन हुआ और हिन्दु-मुस्लिम दंगे जगह-जगह भड़क उठे। इस अंधी और बर्बर आग में हजारों लोग भस्म हो गये, और अरबों रुपयों की संपत्ति नष्ट हो गई।

यह सब देखकर उनकी आत्मा तड़प उठी। वे अपनी पूरी शक्ति से इसका सामना करने में जुट गये। जहां-जहां हिंसा, द्वेष और सांप्रदायिकता की आग भड़क रही थी, वहां-वहां के गांधीजी ने दौरे किये और लोगों को समझाया, उन्हें शांत रहने को कहा। उन्हें अपने इस कार्य में कुछ सफलता भी मिली परंतु काम बडा कठिन और असंभव-सा था। लेकिन गांधीजी प्राणपण से डटे रहे और अपूर्व नैतिक साहस का उदाहरण प्रस्तुत किया।

दुर्भायवश एक दिन शाम को जब गांधीजी दिल्ली में प्रार्थनासभा में जा रहे थे, एक व्यक्ति ने गोली मारकर गांधीजी की हत्या कर दी। यह दिन 31 जनवरी 1948 का था, और हत्यारा था नाथूराम गोडसे। इस दु:खद घटना से सारा देश, अंधकार, निराशा, शोक और संताप में डूब गया। उनकी मृत्यु के साथ ही एक महान युग की मृत्यु हो गई और लोग त्राहि-त्राहि कर उठे।

जवाहरलाल नेहरू ने इस दुःखद घटना पर अपने राष्ट्रीय प्रसारण में कहा, "हमारे जीवन का प्रकाश बुझ गया है और चारों ओर अंधेरा हो गया है ... राष्ट्रपिता अब हमारे बीच नहीं रहे। उनको हमारी सच्ची प्रार्थना और श्रद्धांजली यही होगी कि हम अपने आप को सत्य और उन मूल्यों के प्रति समर्पित कर दें जिनके लिए वे जीये और मरे।"

mahatma gandhi hindi essay | महात्मा गांधी पर निबंध

 

mahatma gandhi hindi essay | महात्मा गांधी पर निबंध


भारत में, अनेक महान् व्यक्तियों ने जन्म लिया है किन्तु महात्मागांधी उनमें महानतम थे। उनके व्यक्तित्व और कार्य हिमालय के सर्वोच्च शिखर एवरेस्ट की तरह थे। वे अपनी तुलना स्वयं आप थे। अन्य सभी व्यक्ति उनके सामने बौने जान पड़ते है। वे आदर्शों की साकार और जीवित प्रतिमा थे। अहिंसा, सत्य, न्याय, समता, समानता, सेवा और राष्ट्र-समर्पण जैसे आदर्शों व जीवन-मूल्यों के वे सर्वोत्तम उदाहरण थे।

हिंसा, स्वार्थ, असत्य, राजनीति, जात-पांत, घृणा, द्वेष और लोभ-लालच के इस कलियुग में भी उन्होंने मानवता के बहुत ऊँचे कीर्तिमान अपने विचारों और व्यवहार से स्थापित किये। आने वाली पीढ़ियां शायद विश्वास भी नहीं कर पायेंगी कि ऐसे आदर्शों की एक प्रतिमूर्ति वास्तविकता थी। गांधी जी ने वह सबकुछ कर दिखाया जो असाधारण, असंभव और अविश्वसनीय लगता था। युग-युगांतरों तक उनका जीवन, उनके आदर्श, उनके उच्च विचार, सादगी, और सच्चाई लोगों को प्रेरणा देते रहेंगे।


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उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। गांधीजी का जन्म पोरबंदर (काठियावाड) में 2 अक्टूबर 1869  में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद था, और माता का पुतली बाई। उनके पिता काठियावाड के छोटे-से जागिरदार के दीवान थे। उनकी माता ईश्वर भक्त, श्रद्धालु, सीधी-सादी और बहुत धार्मिक महिला थीं। उनका विवाह 13 वर्ष की छोटी आयु में ही कस्तूरबा गांधी से हो गया था। 7 वर्ष की उम्र में ही उनका परिवार पोरबन्दर से राजकोट आ गया था।

अपने किशोरपन में ही गांधीजी ने अहिंसा, ब्रह्मचर्य और करुणा का व्रत ले लिया था। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात्, विधी का अध्ययन करने के लिए वे लंदन चले गये, लेकिन लंदन की फैशनपरस्त और कृत्रिम जीवनशैली उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आई। सन् 1891 में वे भारत लौट आये और वकालत करने लगे। तभी उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा।

वहां उन पर अनेक तरह के अत्याचार किये गये। अंग्रेजों ने रेलगाड़ी से उतार फेंका क्योंकि वे प्रथम श्रेणी के डिब्बे में यात्रा कर रहे थे जिसमें केवल श्वेतरंग के अंग्रेजी ही यात्रा कर सकते थे। उन्हें कई बार जेल में बंद किया गया, मारा-पीटा गया और समय-समय पर अपमानित किया गया। इससे उनके आदर्शों को और अधिक बल मिला और उन्होंने सच्चा कर्मयोगी बनने का निश्चय कर लिया। गीता उनका आदर्श ग्रंथ बन गया और वहां रहते-रहते उन्होंने सत्य और अहिंसा के कई व्यावहारिक प्रयोग किये। सत्याग्रह इनमें प्रमुख था।

सन् 1915 में वे भारत लौट आये। उन्होंने अहमदाबाद के निकट साबरमती के किनारे अपना आश्रम स्थापित किया और अपने आदर्शोंका प्रचार-प्रसार करने लगे। उन्होंने गरीब किसानों, मिल मजदूरों और श्रमिकों की अन्याय के विरुद्ध लड़ाइयां लड़ी और विजय पायी।

उस समय भारत में स्वतंत्रता आंदोलन काफी बल पकड़ रहा था। गांधी-जी उस में कूद पड़े और सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आन्दोलन और असहयोग का बड़ा सार्थक प्रयोग किया। भारत की सारी जनता और नेतागण उनके साथ हो गये और उन्हें भरपूर प्यार व समर्थन दिया। उनसे प्रेरणा और सहयोग पाकर हजारों लोग स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। सारे भारतवर्ष में खादी, स्वदेशी, स्वतंत्रता, असहयोग और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की एक तेज आंधी चल पड़ी और अंग्रेजों की सत्ता की नींव हिलने लगी।


गांधीजी ने भारत के गांव-गांव, शहर-शहर की विस्तृत यात्रा की, जनता, नेताओं, जन-प्रमुखों आदि से मिले और अपने विचारों से उन्हें अवगत करवाया। सारा राष्ट्र उनके पीछे चलने लगा। उधर अंग्रेजों का दमन-चक्र और तेज हो गया और गांधीजी पर कई आरोप लगाकर उन्हें जेल भेज दिया गया। उनके साथ अन्य सैंकड़ों नेता भी गिरफ्तार किये गये। वे कई बार जेल गये, सत्याग्रह किया, लम्बे-लम्बे उपवास किये और जनता को संगठित किया।

12 मार्च, 1930 को गांधी ने अपनी प्रसिद्ध यात्रा 'डांडी यात्रा' आरंभ की और विदेशी जुल्मी सरकार व शासन को हिला कर रख दिया। लेकिन गांधीजी के मन में ऐसे अंग्रेज शासकों के प्रति भी कोई घृणा और द्वेष का भाव नहीं था। वे कहते थे पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। उन्होंने 'यंग इंडिया' पत्र का प्रकाशन और संपादन भी किया जिससे स्वतंत्रता आंदोलन को बड़ा बल मिला। कांग्रेस और भारत को गांधीजी ने ही 'स्वराज' का नारा दिया। उन्हीं के नेतृत्व में 'भारत छोड़ों' आन्दोलन का श्रीगणेश हुआ जो पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ समाप्त हुआ।

अंतत: 15 अगस्त 1947 को गांधीजी के नेतृत्व में, एक लम्बे और अहिंसात्मक आन्दोलन के बाद देश आजाद हुआ और जनता ने राहत की सांस ली। लेकिन उधर सांप्रदायिकता की भयंकर आग भड़क उठी। देश का विभाजन हुआ और हिन्दु-मुस्लिम दंगे जगह-जगह भड़क उठे। इस अंधी और बर्बर आग में हजारों लोग भस्म हो गये, और अरबों रुपयों की संपत्ति नष्ट हो गई।

यह सब देखकर उनकी आत्मा तड़प उठी। वे अपनी पूरी शक्ति से इसका सामना करने में जुट गये। जहां-जहां हिंसा, द्वेष और सांप्रदायिकता की आग भड़क रही थी, वहां-वहां के गांधीजी ने दौरे किये और लोगों को समझाया, उन्हें शांत रहने को कहा। उन्हें अपने इस कार्य में कुछ सफलता भी मिली परंतु काम बडा कठिन और असंभव-सा था। लेकिन गांधीजी प्राणपण से डटे रहे और अपूर्व नैतिक साहस का उदाहरण प्रस्तुत किया।

दुर्भायवश एक दिन शाम को जब गांधीजी दिल्ली में प्रार्थनासभा में जा रहे थे, एक व्यक्ति ने गोली मारकर गांधीजी की हत्या कर दी। यह दिन 31 जनवरी 1948 का था, और हत्यारा था नाथूराम गोडसे। इस दु:खद घटना से सारा देश, अंधकार, निराशा, शोक और संताप में डूब गया। उनकी मृत्यु के साथ ही एक महान युग की मृत्यु हो गई और लोग त्राहि-त्राहि कर उठे।

जवाहरलाल नेहरू ने इस दुःखद घटना पर अपने राष्ट्रीय प्रसारण में कहा, "हमारे जीवन का प्रकाश बुझ गया है और चारों ओर अंधेरा हो गया है ... राष्ट्रपिता अब हमारे बीच नहीं रहे। उनको हमारी सच्ची प्रार्थना और श्रद्धांजली यही होगी कि हम अपने आप को सत्य और उन मूल्यों के प्रति समर्पित कर दें जिनके लिए वे जीये और मरे।"