मैं हिमालय बोल रहा हूँ आत्मकथा हिंदी निबंध | Main Himalaya Bol Raha Hoon Atmakatha
नमस्कार दोस्तों आज हम मैं हिमालय बोल रहा हूँ आत्मकथा इस विषय पर निबंध जानेंगे। जी हाँ, मैं हिमालय हूँ-दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत, भूलोक का स्वर्ग, देवों का निवासस्थान, पृथ्वी का मानदंड ! मैं ही भारतीय संस्कृति का जन्मदाता हूँ। भारत का इतिहास मेरा इतिहास है, भारत का गौरव मेरा गौरव है।
भारत के उत्तर में बाईस सौ मील के विस्तार में मैं फैला हुआ हूँ। मुझे अपनी जन्मतिथि तो याद नहीं, पर इतना अवश्य याद है कि युग-युग से मैं भारत की रक्षा करता आया हूँ। एक बार चीनवालों ने भारत पर आक्रमण कर दिया था। वे मुझ पर अधिकार करना चाहते थे, लेकिन महान परंपराओं के इस महान देश ने उनकी चुनौती का मुँहतोड़ जवाब दिया था।
उत्तर के बर्फीले, प्रचंड, शीत पवनों को मैं भारत में प्रवेश करने से रोकता हूँ। अगर मैं न होता, तो भारत वीरान बन जाता ! सचमुच, मैं भारत का पहरेदार हूँ, रक्षक हूँ। मेरे मस्तक पर बर्फ का सुंदर मुकुट है। एवरेस्ट, गॉडविन, कंचनजंघा, लॉन्स, नंदादेवी आदि मेरे मुख्य शिखर हैं। इनमें एवरेस्ट सबसे ऊँचा है।
शेरपा तेनसिंह नोर्के और एडमंड हिलेरी ने मेरे इस अजेय शिखर पर सबसे पहले पदार्पण करके अपूर्व सफलता पाई थी। उनके साहस का मैं अभिनंदन करता हूँ। मेरे वनों में हजारों प्रकार की औषधियाँ और वनस्पतियाँ भरी पड़ी हैं। मैं तरह-तरह के वृक्षों का जन्मदाता हूँ।
मेरी ही छाया में सिमला, मसूरी, नैनीताल, दार्जिलिंग आदि शीतनगर बसे हुए हैं। गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि नदियों का जन्मदाता मैं ही हूँ। मैं ही भारतीय संस्कृति का पिता हूँ। आर्यों का आदिस्थान मैं ही हूँ। प्रारंभिक युग में ऋषि-मुनियों ने यहीं साधना की थी।
रघुकुल के अनेक राजाओं ने मेरे ही आँगन में तपश्चर्या की थी। वाल्मीकि ऋषि ने रामायण एवं महर्षि वेदव्यास ने महाभारत मेरी ही गोद में रचा था। चंद्रगुप्त ने राष्ट्रोद्धार का चिंतन मेरी ही छाया में किया था। पांडवों ने यहीं से स्वर्गारोहण किया था। यही नहीं, सन १८५७ के विद्रोहियों का आश्रयस्थान भी मैं ही बना था।
मैं अपनी महत्ता का गुणगान कहाँ तक करूँ? मैं इतना विशाल हूँ कि संसार के सभी दुख मुझमें समा सकते हैं। मैं इतना शीतल हूँ कि सब प्रकार की चिंता की अग्नि शांत कर सकता हूँ। मैं इतना ऊँचा हूँ कि मोक्ष की सीढ़ी बन सकता हूँ और मैं इतना धनाढ्य हूँ कि देवों के कोषाध्यक्ष कुबेर को भी आश्रय दे सकता हूँ।
ओ भारतवासी, हजारों सालों से मेरा और तुम्हारा अटूट संबंध रहा है। दुनियावालों से कह दो कि “हिमालय हमारा है। " डरो नहीं, मैं तुम्हारी सेवा, रक्षा और सहायता के लिए सदा तैयार खड़ा हूँ। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।