मन के हारे हार है, मन के जीते जीत पर हिंदी निबंध | Man Ke Hare Har Hai Man Ke Jeete Jeet Essay in Hindi

 

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत पर हिंदी निबंध | Man Ke Hare Har Hai Man Ke Jeete Jeet Essay in Hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम मन के हारे हार है, मन के जीते जीत इस विषय पर निबंध जानेंगे। प्रस्तावना-यदि आपसे कोई पूछे कि “कोई व्यक्ति यदि कोशिश करके थक जाये तो उसे दोबारा क्या करना चाहिये"? तो आप कहेंगे कि उसे दोबारा कोशिश करनी चाहिये। इस प्रश्नोत्तर में जीवन की सफलता और जीवन्तता का रहस्य छिपा है। 


कोशिश का विकल्प केवल कोशिश है कुछ और नहीं, जो व्यक्ति जीवन के इस सत्य को समझ लेता है, वह कभीनिराश नहीं होता। कोशिश के बाद अगली कोशिश और इस तरह लक्ष्य पाने की उसकी आशा कभी मरती नहीं। वह जीवन को सजीव होकर जी लेता है, भले ही उसका अभीष्ट उसे हासिल न हो। 


हालांकि व्यवहार में ऐसा होता नहीं, जो अनर्थक प्रयास करता चला जाता है, सफलता उसका किसी न किसी रूप में अवश्य वरण करती है। लेकिन कभी ऐसा हो ही जाये कि सारी कोशिशें निरर्थक चली जायें, तब भी आशान्वित होकर लगातार कोशिशें करते रहने वाला व्यक्ति कभी मायूसी के अन्धकार में नहीं डूबता। 


उसके अंदर कोई हीन भावना, कोई अपराध बोध जन्म नहीं ले पाता। लगातार की गई कोशिशें उसके अस्तित्व को बढ़ाती चली जाती हैं-और अन्ततः उसका जीवन एक सार्थक अवसान का भागी बनने में सफल हो जाता है।संकुचित भावना का रूप निराशावाद-नैराश्यभाव का एक मात्र कारण है-जीवन को संकुचित अर्थों में स्वीकार कर लेना हम यह पा लेंगे तो हमारा जीवन सफल हो जायेगा। हमें अमुक लक्ष्य हासिल नहीं हुआ।


अतः हमारा जीवन व्यर्थ चला गया। इस तरह का संकुचित नजरिया ही जीवन में निराशा के भाव पैदा करने का मूलभूत कारण है, जबकि यह नजरिया जीवन के सम्बन्ध में पाले गये असत्य भ्रम के अलावा और कुछ नहीं, सच यह है जीवन असीम सम्भावनाओं का क्षेत्र है और एक या दो लक्ष्यों के हासिल न हो पाने मात्र से इसकी सम्भावनायें खत्म नहीं हो जाती हैं।


मानव के पास अपनी ऊर्जा के खपाव के लिए असीमित सम्भावनाओं का क्षेत्र पड़ा हुआ है और किसी भी दिशा में सफलता हासिल कर जीवन को सुखद एवं संतोषप्रद बनाया जा सकता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्रयासों का स्वयं भी अपना मूल्य होता है, बल्कि व्यक्ति के आध्यात्मिक जीवन के सन्दर्भ में तो केवल इन्हीं का महत्व होता है। 


हमारे व्यक्तित्व को विशाल से विशालतर बनाने में हासिल लक्ष्यों की नहीं बल्कि उनकी प्राप्ति हेतू किये गये निष्ठापूर्ण प्रयासों की ही मुख्य भूमिका होती है। माना कि प्राप्त लक्ष्य जीवन को थोड़ा रोचक जरूर बनाते हैं लेकिन आत्मिक आनन्द की उपलब्धि दून लक्ष्यों को हासिल करने के लिये किये गये प्रयासों की अन्तरानुभूति में ही होती है।


सामान्य अनुभव की बात है कि थोड़े से प्रयासों द्वारा हासिल बड़ी उपलब्धि हमें स्थायी तौर पर सुख-शान्ति नहीं देती, जो भरपूर प्रयासों द्वारा हासिल छोटी-सी उपलब्धि दे सकती है। विज्ञान के एक छोटे-से सिद्धान्त की खोज करने वाले उस वैज्ञानिक को आत्मिक आनन्द की क्या उस विद्वान के आनन्द से तुलना की जा सकती है? जिसमें बड़े-बड़े वैज्ञानिक सिद्धान्तों का दिन-रात जाप करके उन्हें हृदयंगम कर लिया हो, कदापि नहीं। 


अलैक्जैण्डर ने अपने आविष्कार (बल्ब) से दुनिया भर में प्रकाश फैला दिया, उसकी इस खोज ने इसे पागल-सा कर दिया था। क्यों? इसलिये क्योंकि वह इस मामूली समझे जाने वाले आविष्कार की खोज में खाना, पीना, सोना, उठना, बैठना सब कुछ भूल गया था। 


बहुत कड़ी मेहनत की थी उसने उस बल्ब की खोज करने में, इसलिये जब यह आविष्कार उसका सफल हुआ तो वह चिल्ला पड़ा-“मैंने पा लिया, पा लिया मैंने।" जो अलैक्जैण्डर के जीवन में हुआ वह इसके जीवन का यथार्थ है। आवश्यकता है इस यथार्थ को स्मरण करने की।


प्रयास करने में ही सफलता है-अगर मनुष्य लगातार प्रयास करता रहे तो उसे आगे चलकर अपने जीवन में सफलता हासिल हो ही जाती है। ध्यान रखें कि असफलता से निराशा और निराशा से ईर्ष्या जन्म लेती है। यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है, पर इससे भी बड़ा सत्य है कि परिश्रम या प्रयास इस सम्पूर्ण शृंखला को तितर-बितर कर देता है।


कारण इसका स्पष्ट है कि जब तक मानव के अन्दर प्रयास करने का हौसला बना रहेगा, तब तक वह अपने आपको असफल मान नहीं सकता और जब तक वह स्वयं को असफल नहीं मानेगा, तब तक निराशा और ईर्ष्या का उदय उसके जीवन में नहीं होगा। इसलिए अनवरत प्रयास और जब थककर चूर हो जाये तो एक बार कोशिश और करनी चाहिये।


उपसंहार- प्रयास की दिशा अपनी रुचि एवं स्वभाव के शक्ति एवं सामर्थ्य के अनुरूप होनी चाहिए, लक्ष्यों से तो यह समस्त संसार पटा हुआ है। प्रत्येक मनुष्य अपने स्वाभाव के अनकल क्षेत्र में प्रयास करके अभीष्ट हासिल कर सकता है, पर एक ही व्यक्ति सब कुछ नहीं कर सकता।


इसलिये सब कुछ हासिल करने के लिए अपनी उपलब्धियों तथा सामर्थ्य के साथ समझौता करना सीखे। प्रत्येक प्रतिभा वरेण्य है, शलाहय है, जो भी आप अंदर हो उसी का जाग्रत करो। आपका जीवन सार्थक होगा और निराशा लेशमात्र भी उसमें प्रवेश नहीं कर सकेगी। 


अपने परिश्रम पर तथा प्रयासों पर विश्वास रखो, मंजिल आपको अवश्य प्राप्त होगी। प्रयासों से मन में हार मत मानिये? कबीर जी का दोहा हमेशा याद रखिये कि

"मन हारा तो हार है, मन जीता तो जीत। 

कह कबीर हरि पाइये, मन ही की परतीत।।"दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।