मतदान केंद्र पर एक घंटा/ चुनाव का दिन हिंदी निबंध Matdan kendra par ek ghanta essay in hindi
भारतवर्ष में हर पाँच वर्ष पर आम चुनाव होते है। अठारह वर्ष या उससे अधिक उम्र के प्रत्येक भारतीय को मत देने का अधिकार है। चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा होते ही हमारे देश की राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियाँ अपना-अपना प्रचार शुरू कर देती हैं। काँग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी तथा साम्यवादी पार्टी आदि पार्टियाँ सभाओं, जुलूसों आदि द्वारा जनता को अपनी ओर आकर्षित करने में कोई कसर नहीं छोड़ती। पिछले चुनाव के दृश्य अभी भी मुझे याद हैं।
चुनाव के दिन सुबह से चहल-पहल और हलचल दिखाई पड़ने लगीं। ठीक आठ बजते ही मतदान शुरू हो गया। लोग मतदान के लिए मतदान केंद्रों की ओर जाते हुए नजर आने लगे। दोपहर तक बहुत से लोग मतदान कर चुके थे। शाम को करीब चार बजे मैं भी अपने घर के समीप के मतदान केंद्र पर जा पहुंचा।
मतदान केंद्र से कुछ दूरी पर विभिन्न राजनीतिक दलों के स्वयंसेवक अपने-अपने पक्ष के चुनाव-कार्यालय में बैठे हुए थे। अलग-अलग पक्षों के ध्वज लहरा रहे थे। जगह-जगह भिन्न-भिन्न पार्टियों के चुनाव-चिह्न भी दिखाई दे रहे थे। सारा वातावरण उत्साह और उत्सुकता से भरा हुआ था।
ज्यों-ज्यों समय बीतता गया, त्यों-त्यों मतदाताओं की कतारें लंबी-लंबी होती गईं। कुछ बूढ़े और बीमार व्यक्ति ताँगों में बैठकर आए थे। कतार में कुछ बाबू लोग थे और कुछ घुटनों तक धोती पहने मजदूर भी खड़े थे। मतदान केंद्र से थोड़ी दूर पर ताँगों, रिक्शों और टैक्सियों का तांता लगा हुआ था। कुछ भेल-पूड़ीवाले, खोमचेवाले और फेरीवाले भी अपने-अपने खोमचे लेकर सड़क के किनारे खड़े थे। पुलिस का कड़ा इंतजाम था।
मतदान केंद्र के आसपास प्रचार पर पूरी रोक थी। मैंने देखा कि बारी-बारी से पाँच-पाँच मतदाताओं को मतदान केंद्र में दाखिल किया जाता था। प्रत्येक मतदाता अपना क्रमांक बताकर मतपत्र प्राप्त करता, मतदान केंद्र के भीतर एकांत केबिन में जाता और अपनी पसंद के उम्मीदवार को मत देता। मतदान के लिए जाते समय बाएँ हाथ के अंगूठे के पास की तर्जनी अंगुली पर पक्की स्याही का निशान लगा दिया जाता था। मतदान के लिए इलेक्ट्रोनिक मशीनों की व्यवस्था थी। देखते-ही-देखते आधा घंटा बीत गया। अब केवल आधा घंटा ही बाकी रहा था। उस समय कहीं-कहीं मतदान केंद्र के आसपास लोगों की भीड़ जमा हो जाती तो पुलिस फौरन उसे बिखर देती थी।
शाम के पाँच बज गए। मतदान का समय पूरा होने के बाद भी कुछ मतदाता आए, लेकिन बेचारों को उलटे पाँव लौट जाना पड़ा ! मतदान केंद्र के आसपास से लोग बिखरने लगे। थोड़ी ही देर में सारा वातावरण शांत और सूना हो गया। चुनाव का वह दिन कितना जल्दी बीत गया ! मतदान केंद्र की इस चहल-पहल में मुझे भारतीय लोकतंत्र की शक्ति के दर्शन हुए। मतदान के रूप में मुझे जागृत जनता की शक्ति को देखने का मौका मिला। मैने सोचा कि जल्दी ही मुझे भी मताधिकार मिल जाए !
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