मेरा भारत महान पर निबंध | Mera Bharat Mahan Essay in Hindi

 

मेरा भारत महान पर निबंध | Mera Bharat Mahan Essay in Hindi 

नमस्कार  दोस्तों आज हम  मेरा भारत महान इस विषय पर निबंध जानेंगे।  आज यदि हम मानवतावादी दृष्टिकोण से विचार करते हुए केवल अपने देश ही नहीं वरन् विश्व के परिप्रेक्ष्य में निष्कर्ष निकालें तो पायेंगे कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी की अन्यतम उपलब्धियों और सफलताओं के बावजूद धरती धीरे-धीरे मनुष्य के लिये सुख-शांति से रहने लायक नहीं रहती जा रही है। 


आज भौगोलिक दृष्टि से दूरी कम हो गई है लेकिन आदमी आदमी के बीच बहुत बड़ा अन्तर आ गया है। अपने निहित स्वार्थों जिनमें व्यापारिक, वाणिज्यिक और राजनीतिक स्वार्थ प्रमुख हैं-के कारण किसी के कल्याण से किसी को कुछ लेना-देना नहीं है। 


सभ्यता के विकास के साथ जो मानव मूल्य परक सहयोग और भाईचारा बढ़ना चाहिए था उसका स्थान प्रतिस्पर्धा और उपभोक्तावाद ने ले लिया है। आज विश्व भर में जो उन्मादी हिंसा व्याप्त है, उसे देखते हुए लगता है कि सभी धर्मों में जिस प्रलय के कभी आने की बात कही गई है वह केवल कल्पना की बात नहीं है। 


ऐसे में क्या किया जाये? इतिहासकार आर्नल्ड टायनबी ने कहा है कि सभ्यता के विनाश से बचने का एकमात्र विकल्प भारतीय सोच है। भारत की सोच के सिद्धान्तों में वे भावनाएं और दृष्टिकोण सम्बन्धित हैं जिन्हें अपनाकर मानव जाति अपने संकट को टाल सकती है।


परमाणु युग में अपने को समूल विनाश से बचाने का यही एक मात्र रास्ता है। भारतीय सोच या पद्धति क्या है-यह बताने के लिये हम साररूप में इतना ही कहना चाहेंगे कि सबको रोटी, कपड़ा और मकान मिले, सभी को समानता से देखा जाये, प्रत्येक व्यक्ति अपने पड़ोसी के साथ सद्भाव और सहयोग से रह सके, सभी अपने को सुरक्षित, सम्मानित और खुशहाल अनुभव कर सकें। 


वैसे तो विश्व को एक परिवार के समान बनाने के ये सरल और सहज सिद्धान्त हैं, किन्तु आज दार्शनिक सोच तथा कल्पना की उड़ान कहकर इन्हें नकार दिया जाता है। इन पंक्तियों को पढ़ने वाले अनेक पाठक भी इन बातों को दार्शनिकता की उपज बताकर टाल देंगे, परन्तु बात ऐसी नहीं है। 


अंग्रेजों ने अंग्रेज घुड़सवारों के साथ कश्मीर के राजा के पास कुछ घोड़े स्थल मार्ग से भेंट स्वरूप भेजे थे तो एक दार्शनिक ने सड़क पर उछल-उछल कर शोर मचाया था-"शैतान ने रास्ता देख लिया है अब खैर नहीं।" तब लोगों ने उसे पागल कहकर टाल दिया था।


कुछ ही दिनों बाद कश्मीर अंग्रेजों के हाथों में चला गया। जैसा कि उपरोक्त दृष्टान्त से पता चलता है हम भारतीय कुल मिलाकर कम सचेत और अत्यधिक उदार हैं। इतिहास के अनेक पृष्ठों में मूल्यों के प्रति अति संवेदनशील होने के कारण हम अनुचित अत्याचारों, असहिष्णुता व्यवहार और अन्याय को सहज ही सहन कर जाते हैं। 


इस विषय में कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा चलाये जाने वाले आतंकवाद को हमारे द्वारा निरन्तर सहते चले जाने का दृष्टान्त हमारी सहिष्णुता, धैर्य और सहन शक्ति का ज्वलन्त उदाहरण है। सब कुछ जानकर-समझकर व शक्ति सम्पन्न होते हुए भी इसे सहते चले जा रहे हैं।


यह अच्छी बात है कि सहिष्णुता, अहिंसात्मकता, नैतिक मूल्यों के प्रति जागरूकता और सभी धर्मों और विश्वासों के प्रति सम दृष्टि अपनाई जाये। भावना से कर्त्तव्य अधिक ऊंचा है। भाव तो श्रेष्ठ हो पर उनको व्यवहार में न लायें तो क्या लाभ?


इसी तरह विचार तो उन्नत हों पर क्रिया अवनत हो तो सब बेकार है। यही कारण है हमारा प्राचीन आज की अपेक्षा अधिक उन्नत था। आणविक हथियार वाले आधुनिक भारत की अपेक्षा तब भारत अधिक सशक्त था। आज दिनदहाड़े नृशंस और अमानवीय अपराध होते हैं तो साधारण-सी बात माने जाते हैं।


विधि का पालन न करने वाले पुरस्कृत होते हैं और कानून का पालन करने वाले तिरस्कृत। मन की गहराइयों में हम सभी बातों से परिचित हैं मगर कह नहीं सकते। अपने स्वयं के व्यक्तित्व के अभाव में कुपात्र अपनी पात्रता को सिद्ध करने के लिये लाल और नीली बत्ती बन गया है। बत्ती गुल हुई और उससे जुड़ा आदमी धराशायी हो जाता है। 


श्री राम के बाण से जब रावण का नीली बत्ती रूपी अमृत कुण्ड सूखा तो वह तुरन्त धराशायी हो गया। आज हम ऐसी प्रणाली बनाये हुए हैं जो नेतृत्व के नाम पर धोखाधड़ी और चालबाजी से चल रही है। यह अविश्वास पर आधारित है और निहित स्वार्थों से प्रदूषित है। हमारा कहना है-'सत्य मेव जयते'–पर आज ऐसा नहीं लगता कि सत्य की जीत होती है। ऐसी दशा में क्या किया जाये? दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।