मेरा प्रिय लेखक हिंदी निबंध | Mera Priya Lekhak Essay In Hindi

 

मेरा प्रिय लेखक हिंदी निबंध | Mera Priya Lekhak Essay In Hindi 


नमस्कार  दोस्तों आज हम  मेरा प्रिय लेखक इस विषय पर निबंध जानेंगे। हिंदी में अनेक लेखकों ने महत्त्वपूर्ण साहित्य का सृजन किया है। वे सब उत्तम कोटि के साहित्यकार हैं। सबकी अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। लेकिन उनमें मुझे सबसे अधिक प्रेमचंद की रचनाएँ प्रिय लगती हैं। प्रेमचंद ही मेरे सर्वप्रिय लेखक हैं।


प्रेमचंद का जन्म लमही (वाराणसी) गाँव में 13 जुलाई 1880 को हुआ था। उनका असली नाम धनपतराय था। उनकी प्रारंभिक रचनाएँ उर्दू में थी। बाद में उन्होंने हिंदी में लिखना शुरू कर दिया। तब इन्होंने अपना नाम प्रेमचंद रखा।


प्रेमचंदजी सही अर्थों में लोकजीवन के साहित्यकार है। उनकी रचनाओं में लोकचेतना को प्रमुखता मिली है। जिस समय प्रेमचंदजी ने साहित्य-रचना आरंभ की, उस समय हिंदी में केवल रहस्य, रोमांच जैसे विषयों पर ही कथासाहित्य लिखा जाता था। 



सामाजिक समस्याओं की ओर किसी का ध्यान नहीं था। प्रेमचंदजी एक गंभीर विचारक थे। साहित्यकार के दायित्व को उन्होंने भली-भाँति समझ लिया। साहित्य में उन्होंने समाज को ही प्रमुखता दी। किसान, मजदूर, दलित, पीडित वर्ग को उन्होंने अपने साहित्य का विषय बनाया। 



भारतीय किसानों तथा मजदूरों के संघर्ष, अंध:विश्वास, अशिक्षा, प्रेम, सहानुभूति के जीते-जागते चित्र प्रस्तुत किए। प्रेमचंदजी का साहित्य देहाती जनजीवन का लेखा-जोखा है। हिंदी साहित्य में जनसामान्य का चित्रण प्रेमचंदजी की रचनाओं में पहली बार हुआ।



प्रेमचंदजी का जमाना स्वाधीनता आंदोलन तथा राष्ट्रीय जनजागरण का था। ब्रिटिशों के विरोध में जनआंदोलन बडे जोरों पर था। सामाजिक कुरीतियों पर भी गहरे आघात हो रहे थे। देश की राजनीतिक तथा सामाजिक समस्याओं को प्रेमचंदजी ने अपने साहित्य का विषय बनाया। 


उनकी रचनाओं में जो यथार्थवाद है, वह आदर्शोन्मुख है। उनका साहित्य समाज को उँचा उठाने की प्रेरणा देनेवाला, आदर्श की ओर ले जानेवाला है। उनके उपन्यासों में रंगभूमि, सेवासदन, निर्मला, गबन, गोदान आदि प्रमुख हैं। इनमें 'गोदान' को विशेष ख्याति मिली है। 



भारतीय किसानों के जीवन का वह महाकाव्य ही है। 'शतरंज के खिलाडी', 'कफन', 'पूस की रात', 'बडे घर की बेटी', 'दूध का दाम' आदि उनकी कहानियाँ कला की दृष्टि से बेजोड हैं।



प्रेमचंदजी की भाषा बडी सरल, मुहावरेदार तथा पात्रानुसार परिवर्तनशील है। उनका चरित्र-चित्रण अनूठा है। गाँधीजी की विचारधारा का उनपर बडा प्रभाव था। उनके विचारों से प्रभावित होकर ही प्रेमचंदजी ने सरकारी नौकरी का त्याग किया और अंत तक साहित्य सेवा तथा जनजागरण के कार्य में लगे रहें। 



अपने साहित्य द्वारा वे सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वासों का दूर करने तथा गुलामी से मुक्त होकर देश को उन्नत बनाने की कोशिश करते रहे। हिंदू तथा मुसलमानों में सामंजस्य स्थापित करने का भी उन्होंने प्रयत्न किया। लेखनी के ये धनी हिंदी में 'उपन्यास सम्राट' के नाम से विख्यात हो गये। ऐसे महान साहित्यकार मेरे प्रिय लेखक हों, इसमें आश्चर्य नहीं !  दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।