मेरे बचपन के दिन पर निबंध | Mere bachpan ke din essay in hindi

 

 मेरे बचपन के दिन पर निबंध | Mere bachpan ke din essay in hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम  मेरे बचपन के दिन इस विषय पर हिंदी निबंध जानेंगे। बचपन कितना प्यारा होता है ! इस उम्र का आनंद ही निराला है। बड़े होने पर बचपन की यादें बहुत मीठी और प्यारी लगती हैं।


बचपन में स्वभाव बहुत चंचल होता है। इसीलिए अभी जिससे 'बट्टी' है, थोड़ी देर में उसीसे कट्टी' हो जाती है। इस उम्र में मन हर चीज जानने के लिए बड़ा उत्सुक रहता है। बच्चों को सूरज, चाँद, तारे, बादल, इंद्रधनुष आदि बड़े अजीब लगते हैं। 


इन सबके बारे में बालकों के मन में तरह-तरह के प्रश्न उठते रहते हैं। फूल, तितलियाँ, नदी, झरने, पहाड़ आदि भी बच्चों को बहुत आकर्षित करते हैं। उन्हें परियों की कहानियाँ अच्छी लगती हैं। इसीलिए वे परियों की कहानियाँ बड़े चाव से सुनते हैं। दादी-नानी की गोद भी उन्हें बड़ी प्यारी लगती है। 


बचपन के दिन तो खेलने और खाने के दिन होते हैं । इन दो चीजों में ही बच्चों का मन डूबा रहता है। खेलने से मन नहीं भरता। बच्चों को खेलने में इतना मजा आता है कि उन्हें खाने-पीने की भी याद नहीं रहती। साइकिल चलाने में हवाईजहाज उड़ाने जैसा मजा आता है। 


घर के पास बगीचा हो तब तो कहना ही क्या! बचपन में मीठी-चटपटी चीजें बड़ी अच्छी लगती हैं। चाकलेट और चुईंगम खाने में बड़ा मजा आता है।


बचपन में कोई चिंता पास नहीं फटकती। न खाने की चिंता, न पहनने की। पढ़ाई जरूर करनी पड़ती है। परंतु उसकी चिंता भी अक्सर माँ-बाप ही करते हैं।


बचपन मानव-जीवन की नींव है। इसीलिए इस उम्र में बच्चों में अच्छी आदतें डालनी चाहिए। उन्हें अनुशासन और शिष्टाचार सिखाना चाहिए। उन्हें ऐसी कहानियाँ सुनानी चाहिए, जिनसे उनकी सोचने-समझने की शक्ति का विकास हो। 


बालकों को इसी उम्र में महापुरुषों के बचपन के बारे में जानकारी देनी चाहिए।सचमुच, बचपन जीवन का प्रभात है। यह प्रभात सुहावना होना चाहिए। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।