मेरे जीवन की एक अविस्मरणीय घटना पर निबन्ध | Mere Jivan ki Avismarniya Ghatna Essay In Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम मेरे जीवन की एक अविस्मरणीय घटना इस विषय पर निबंध जानेंगे।इस लेख मे कुल २ निबंध दिये गये हे जिन्हे आप एक -एक करके पढ सकते हे । जीवन में कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो भुलाए नहीं भूलती। पिछले साल मेरे जीवन में भी ऐसा ही एक प्रसंग घटित हुआ। उसकी याद मुझे आज भी रोमांचित कर देती है।
पिछले साल अंतर्विद्यालय क्रिकेट स्पर्धा का फाइनल मैच था। हमारे विद्यालय की टीम को नवजीवन विद्यामंदिर की टीम से भिड़ना था। मैं अपने विद्यालय की टीम का कप्तान था। हमारे विद्यालय के छात्रों एवं अध्यापकों को मुझ पर और अपनी टीम पर बहुत भरोसा था।
मुझे उनके भरोसे के योग्य साबित होना था। मैं अपनी टीम को प्रतिदिन अभ्यास कराने लगा। बल्लेबाजी, गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण इन तीनों बातों पर ध्यान दिया गया। कैच पकड़ने में भी निपुणता प्राप्त की गई।स्पर्धा के दिन सुबह आठ बजे मैच शुरू हुआ।
मैंने टोस जीता, परंतु पहले बल्लेबाजी का मौका विपक्षी टीम को ही दिया। पिच की स्थिति देखकर ही मैंने यह निर्णय लिया था। मैंने बहुत सोच-समझकर अपने फिल्डर तैनात कर दिए। गेंदबाजी की जिम्मेदारी मैंने खुद सँभाली। मैंने पहले ओवर का पहला गेंद फेंका और विपक्षी टीम का सलामी बल्लेबाज आउट ! यह बल्लेबाज ही उस टीम का कप्तान था।
मेरा दूसरा बॉल में दूसरा बल्लेबाज भी पेवेलियन लौट गया। मेरा तीसरा गेंद बल्लियों से टकराता हुआ दूर निकल गया और विपक्षी टीम का तीसरा विकेट भी मेरी झोली में आ गिरा ! मैंने शुरू-शुरू में ही लगातार गेंदों में तीन खिलाड़ी आउट ( बाद) किए थे ! यह कोई मामूली सिद्धि नहीं थी। मेरी इस सफलता पर सबने जोरदार तालियाँ बजाकर मेरा अभिनंदन किया।
इसके बाद विपक्षी टीम हावी हो गई। उसके अगले छह खिलाड़ियों ने ५० ओवर में अच्छी फटकेबाजी करके २५६ रन बनाए। अब हमारे सामने विजय के लिए २५७ रन का कठिन लक्ष्य था। हमारी बल्लेबाजी का श्रीगणेश भी बुरा हुआ। हमारे सात खिलाड़ी कुल ९० रन पर आउट हो गए। हमारे शिक्षकों ने विजय की आशा ही छोड़ दी थी।
नवें खिलाड़ी के रूप में मैंने बल्ला सँभाला। पहले ही गेंद पर चार रन। पता नहीं उस दिन मुझे क्या हो गया था। चौकों और छक्कों की बरसात करते हुए मैंने टनाटन १२० रन बनाए। इस प्रकार हमारी टीम ने २५७ रन बनाकर तीन विकेट से स्पर्धा जीत ली।
आखिरी रन बनते ही साथियों ने मुझे घेर लिया। उन्होंने मुझे अपने कंधों पर उठा लिया। हमारे प्रधानाचार्यजी तथा शिक्षकों ने भी मुझे जमकर शाबाशी दी। विपक्षी दल ने भी मेरा अभिनंदन किया। उस अनोखी विजय की प्रशंसा में देर तक तालियाँ बजती रहीं।
मैंच का वह अंतिम दृश्य आज भी मेरी आँखों के सामने नाच उठता है। अब भी मेरे कानों में उन तालियों की गूंज सुनाई पड़ती है। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए । और आगे दिया हुआ दूसरा निबंध पढ़ना मत भूलियेगा धन्यवाद ।